बिना हस्ताक्षर जांच के हटाई गई मुखिया को फिर से पद पर बहाल किया – पटना हाई कोर्ट का फैसला

बिना हस्ताक्षर जांच के हटाई गई मुखिया को फिर से पद पर बहाल किया – पटना हाई कोर्ट का फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत को मजबूत करते हुए बिहार के मधुबनी जिले की एक मुखिया को उनके पद से हटाने का आदेश रद्द कर दिया। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि बिना उचित जांच और हस्ताक्षर सत्यापन के, किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को पद से हटाना न्यायसंगत नहीं है।

यह मामला बेनीपट्टी ग्राम पंचायत की मुखिया के रूप में चुनी गई महिला से जुड़ा है। उन पर आरोप था कि उन्होंने नौ चेकों पर हस्ताक्षर किए थे, जिनके ज़रिए ₹79 लाख की सरकारी राशि अनियमित रूप से निकाल ली गई। पंचायत सचिव के साथ मिलकर धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया गया और उन्हें बिहार पंचायती राज अधिनियम की धारा 18(5) के तहत पद से हटा दिया गया।

मुखिया ने कोर्ट में कहा कि उन्होंने कभी ऐसे चेकों पर हस्ताक्षर नहीं किए, और यह पूरी योजना चेक चोरी कर फर्जी हस्ताक्षर करने की साजिश थी। उन्होंने यह भी कहा कि सभी दस्तावेज पंचायत सचिव के पास रहते हैं और वही असली जिम्मेदार हैं। उन्होंने यह स्पष्ट रूप से कहा था कि उनके हस्ताक्षर की फॉरेंसिक जांच करवाई जाए ताकि सच्चाई सामने आ सके, लेकिन अधिकारियों ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया।

कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा हस्ताक्षर जांच की मांग सही थी और इसे नजरअंदाज करना न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन है। राज्य सरकार ने भी कोर्ट में माना कि याचिकाकर्ता की यह मांग पूरी नहीं की गई।

इसलिए कोर्ट ने मुखिया को फिर से उनके पद पर बहाल कर दिया और निर्देश दिया कि सभी संबंधित दस्तावेज़ों और हस्ताक्षरों की फॉरेंसिक जांच कराई जाए और उसके बाद ही कोई नया निर्णय लिया जाए।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला विशेष रूप से पंचायत स्तर की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि:

  • प्राकृतिक न्याय का पालन करना अनिवार्य है, खासकर जब किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को पद से हटाया जा रहा हो।
  • कोई भी कार्रवाई बिना उचित जांच के नहीं हो सकती, खासकर जब तकनीकी जांच जैसे फॉरेंसिक विश्लेषण की मांग हो।
  • प्रशासन को पारदर्शिता और निष्पक्षता बरतनी चाहिए, ताकि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के अधिकारों का हनन न हो।

यह फैसला यह भी दर्शाता है कि केवल आरोपों के आधार पर निर्वाचित प्रतिनिधियों को हटाना अनुचित है, जब तक कि पूरी प्रक्रिया निष्पक्ष और वैधानिक न हो।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या बिना फॉरेंसिक हस्ताक्षर जांच के मुखिया को पद से हटाना वैध था?
    ❌ नहीं, कोर्ट ने कहा कि यह प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
  • क्या मुखिया को पुनः पद पर बहाल किया जा सकता है?
    ✔ हाँ, जब तक नई जांच पूरी न हो जाए, मुखिया को उनके पद पर बहाल किया गया है।
  • कोर्ट ने क्या विशेष निर्देश दिए?
    ✔ सभी चेक और हस्ताक्षरों की फॉरेंसिक जांच राज्य प्रयोगशाला से कराई जाए।
    ✔ मुखिया से नए सिरे से लिखित हस्ताक्षर लिए जाएं और बैंक एवं पंचायत से भी उनके हस्ताक्षर के नमूने जुटाए जाएं।
    ✔ जांच रिपोर्ट मिलने के बाद, मुखिया को एक बार सुनवाई का अवसर देकर नया निर्णय लिया जाए।

मामले का शीर्षक
Bimla Devi v. The State of Bihar & Ors.

केस नंबर
CWJC No. 8070 of 2020

उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 109

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति श्री अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री अशोक कुमार झा – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री कुमार आलोक (SC-7) और श्री विजय भारती – राज्य सरकार की ओर से

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjODA3MCMyMDIwIzEjTg==-nGok–am1–yLvP0I=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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