निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक ठेकेदार द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें 10 वर्षों के लिए की गई ब्लैकलिस्टिंग को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसे सुने बिना ही काली सूची में डाल दिया गया, जो कि न्यायसंगत नहीं है।
यह मामला एक सरकारी ठेके की निविदा प्रक्रिया से जुड़ा है। याचिकाकर्ता ने गया नगर निगम द्वारा जारी टेंडर में भाग लिया था। टेंडर की शर्तों के अनुसार, निविदा जमा करने के साथ कुछ निश्चित राशि की सावधि जमा (Term Deposit) जमा करनी थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने तीन सावधि जमा रसीदें लगाईं, जिनकी राशि क्रमशः ₹2,95,000, ₹2,30,000 और ₹3,30,000 थी, और ये सभी लाखीसarai पोस्ट ऑफिस से जारी थीं।
याचिकाकर्ता ने तकनीकी और वित्तीय दोनों चरणों में उत्तीर्ण होकर सबसे कम बोली (L1) लगाई थी। लेकिन जब संबंधित अधिकारियों ने इन सावधि जमा रसीदों की पुष्टि की, तो पता चला कि असली जमा राशि काफी कम थी — केवल ₹29,500, ₹23,000 और ₹33,000। इस फर्जीवाड़े के चलते उसकी बोली रद्द कर दी गई और बाद में 10 साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया गया।
इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की और कहा कि उसे अपनी बात रखने का मौका नहीं मिला। लेकिन कोर्ट ने पाया कि पोस्ट ऑफिस के अधिकारियों ने बाकायदा हलफनामा देकर बताया है कि जमा राशि कम थी। उन्होंने इसके समर्थन में मूल आवेदन और रसीदें भी पेश कीं। इसके विपरीत, याचिकाकर्ता कोई पुख्ता जवाब नहीं दे पाया और न ही सावधि जमा की असली रसीदें प्रस्तुत कर सका।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के व्यवहार को “न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग” माना और इस तरह की याचिका को गंभीरता से खारिज कर दिया। कोर्ट ने याचिका को ₹15,000 के जुर्माने के साथ खारिज किया और यह राशि बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को दो हफ्ते में जमा करने का आदेश दिया। यदि राशि नहीं जमा होती है, तो ज़िला अधिकारी के माध्यम से भू-राजस्व की तरह वसूली की जा सकती है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बताता है कि अगर कोई व्यक्ति या संस्था सरकारी निविदा में झूठे दस्तावेजों का सहारा लेती है, तो उस पर सख्त कार्यवाही की जा सकती है। कोर्ट ने साफ संदेश दिया है कि निविदा प्रक्रिया में पारदर्शिता और ईमानदारी जरूरी है।
सरकारी विभागों के लिए यह निर्णय एक मिसाल है कि वे निविदाओं की सत्यता की जांच करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं और यदि कोई फर्जीवाड़ा सामने आता है, तो वे ब्लैकलिस्ट करने के लिए अधिकृत हैं।
निजी कंपनियों और ठेकेदारों के लिए यह चेतावनी है कि झूठे दस्तावेज लगाने से न केवल ठेका रद्द हो सकता है, बल्कि 10 साल तक सरकारी कामों से बाहर भी किया जा सकता है। साथ ही, अदालत में झूठी याचिका दायर करने पर जुर्माना भी भुगतना पड़ सकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या याचिकाकर्ता को बिना सुनवाई के ब्लैकलिस्ट किया गया?
- कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने फर्जी दस्तावेज पेश किए, और उसके खिलाफ पुख्ता साक्ष्य हैं, इसलिए ब्लैकलिस्टिंग उचित है।
- क्या सावधि जमा रसीदों में गड़बड़ी की गई थी?
- हां, पोस्ट ऑफिस ने हलफनामे के साथ सबूत दिया कि वास्तविक जमा राशि बहुत कम थी।
- क्या याचिका स्वीकार करने योग्य थी?
- नहीं। कोर्ट ने इसे अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग मानते हुए खारिज कर दिया।
- क्या कोर्ट ने कोई दंड भी लगाया?
- हां, ₹15,000 का जुर्माना लगाया और समय पर जमा न करने पर वसूली की चेतावनी दी।
मामले का शीर्षक
M/s P.K. Construction Pvt. Ltd. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 4845 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन
माननीय न्यायमूर्ति श्री पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री श्याम किशोर, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
डॉ. कृष्ण नंदन सिंह (ASG) — प्रतिवादियों की ओर से
श्री अमरेंद्र नाथ वर्मा, वरिष्ठ पैनल अधिवक्ता — प्रतिवादियों की ओर से
श्री राकेश कुमार, CGC — प्रतिवादियों की ओर से
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