निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक याचिकाकर्ता की अपील को खारिज कर दिया, जिसकी चौथी श्रेणी (Class-IV) सरकारी नौकरी के लिए दी गई अर्जी को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि वह मैट्रिक (10वीं पास) नहीं था। कोर्ट ने यह साफ किया कि सरकार को नियमों में बदलाव कर शिक्षा की न्यूनतम योग्यता बढ़ाने का अधिकार है और यह नियम पुराने पैनल के उम्मीदवारों पर भी लागू होता है यदि नियुक्ति उस समय तक नहीं हुई हो।
इस मामले की पृष्ठभूमि 1992-93 से शुरू होती है जब याचिकाकर्ता को चौथी श्रेणी की सरकारी नौकरी के लिए पैनल में शामिल किया गया था। हालांकि, उन्हें नियुक्ति नहीं मिली। समय के साथ भर्ती प्रक्रिया चलती रही और 2011 में सरकार ने फिर से विज्ञापन निकाले।
शुरुआत में ऐसी नौकरी के लिए आठवीं पास होना ही पर्याप्त था, लेकिन 2011 में इसे बढ़ाकर दसवीं पास (मैट्रिकुलेशन) कर दिया गया। सरकार की सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 26 दिसंबर 2013 को जारी अधिसूचना में स्पष्ट किया गया कि 12 दिसंबर 2012 के बाद से सिर्फ मैट्रिक पास उम्मीदवारों की ही नियुक्ति होगी।
चूंकि याचिकाकर्ता मैट्रिक पास नहीं था, उसकी अर्जी खारिज कर दी गई। उसने कोर्ट में यह दलील दी कि भर्ती प्रक्रिया के दौरान नियम बदलना अनुचित है। इसके समर्थन में उसने सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला (K. Manjushree v. State of Andhra Pradesh, 2008) भी पेश किया।
लेकिन एकल पीठ ने उसकी याचिका पहले ही खारिज कर दी थी और अब डिवीजन बेंच ने भी उस पर सहमति जताई। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की पैनल में सूचीबद्धता 2012 तक सीमित थी और कोई प्रमाण नहीं था कि वह उसके बाद भी सूचीबद्ध रहा। सिर्फ उम्र सीमा में छूट की मांग की गई थी, न कि शैक्षणिक योग्यता में।
कोर्ट ने यह भी बताया कि ऐसे ही मामलों में कई लोगों की याचिकाएं पहले भी खारिज की जा चुकी हैं। इसलिए इस अपील में कोई दम नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला राज्य सरकार को यह स्पष्ट अधिकार देता है कि वह नियुक्ति नियमों में बदलाव कर सकती है, खासकर जब उद्देश्य सेवाओं की गुणवत्ता सुधारना हो।
बिहार में सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए यह फैसला एक चेतावनी है कि सिर्फ पैनल में शामिल होना ही काफी नहीं होता — नियुक्ति से पहले यदि योग्यता के नियम बदल जाएं, तो नए नियम ही लागू होंगे। इसलिए अभ्यर्थियों को शैक्षणिक और नीति परिवर्तनों पर नजर रखनी चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या पैनल में नाम आने के बाद नियम बदलना कानूनन सही है?
✔️ हाँ, कोर्ट ने कहा कि जब तक नियुक्ति नहीं होती, तब तक सरकार को नियम बदलने का अधिकार है। - क्या पुराने पात्रता नियमों के अनुसार उम्मीदवार नियुक्ति का दावा कर सकते हैं?
❌ नहीं। कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता का पैनल सिर्फ एक वर्ष के लिए वैध था और उसके बाद कोई वैधता नहीं रही। - क्या यह नियमों में मध्य में बदलाव की स्थिति है?
❌ नहीं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चयन प्रक्रिया इतनी आगे नहीं बढ़ी थी कि इसे ‘बीच में बदलाव’ कहा जा सके।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- के. मंजुश्री बनाम आंध्र प्रदेश राज्य, (2008) 3 SCC 512
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- CWJC No. 4693 of 2012 (पूर्व में खारिज)
- उसी केस से संबंधित Letters Patent Appeal (LPA) (भी खारिज)
मामले का शीर्षक
Anand Kumar Jha vs. The State of Bihar & Others
केस नंबर
Letters Patent Appeal No. 212 of 2023
In Civil Writ Jurisdiction Case No. 21973 of 2014
उद्धरण (Citation)
2025 (2) PLJR 319
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश अशुतोष कुमार
माननीय न्यायाधीश पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री शांति प्रताप, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री पी.के. वर्मा (AAG-3) — राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
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