पटना हाईकोर्ट ने योजनागत संविदा कर्मियों की नियमितीकरण याचिकाएं खारिज कीं

पटना हाईकोर्ट ने योजनागत संविदा कर्मियों की नियमितीकरण याचिकाएं खारिज कीं

निर्णय की सरल व्याख्या

CWJC No. 8026 of 2019 और संबंधित याचिकाओं में, पटना हाईकोर्ट ने उन कर्मियों की याचिकाएं सुनीं जो विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत संविदा पर नियुक्त किए गए थे। इनमें नेशनल हेल्थ मिशन (NHM), सर्व शिक्षा अभियान (SSA) जैसी योजनाओं के कर्मचारी शामिल थे। इन सभी की माँग थी कि उन्हें सरकारी सेवा में स्थायी रूप से समायोजित (absorb) किया जाए या कम से कम उनकी सेवा समाप्त न की जाए।

याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि:

  • उनकी नियुक्ति उचित चयन प्रक्रिया के तहत हुई थी।
  • वे कई वर्षों से लगातार काम कर रहे हैं।
  • उनकी सेवा समाप्ति मनमानी है।
  • उनकी जरूरत अब भी बनी हुई है और सरकार उनकी सेवाओं का उपयोग कर रही है।
  • CWJC No. 6546 of 2017 में दिए गए निर्णय के अनुसार उन्हें भी नियमित किया जाना चाहिए।

राज्य सरकार का पक्ष:

  • याचिकाकर्ता विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत अस्थायी रूप से नियोजित किए गए थे।
  • इन योजनाओं की अवधि सीमित थी और इनकी नियुक्ति नियमित पदों पर नहीं हुई थी।
  • उनकी नियुक्ति किसी प्रतियोगी परीक्षा या वैधानिक चयन प्रक्रिया के तहत नहीं हुई थी।
  • उमादेवी बनाम कर्नाटक राज्य (2006) के निर्णय के अनुसार, इस तरह की नियुक्तियाँ नियमित नहीं की जा सकतीं।

हाईकोर्ट का निर्णय:

  • अदालत ने साफ कहा कि उमादेवी केस के अनुसार, संविदा या परियोजना आधारित कर्मचारियों को केवल लंबे समय तक सेवा देने के आधार पर नियमित नहीं किया जा सकता।
  • केवल वही कर्मी नियमितीकरण के पात्र हो सकते हैं जिनकी नियुक्ति स्वीकृत पदों पर, वैधानिक प्रक्रिया के अनुसार हुई हो।
  • याचिकाकर्ताओं की सेवाएं केंद्र या राज्य सरकार की सीमित अवधि की योजनाओं से जुड़ी थीं, जो अब समाप्त हो चुकी हैं या जिनका ढांचा बदल चुका है।
  • ऐसे में नियमितीकरण की कोई वैधानिक या संवैधानिक गारंटी नहीं है।

अंतिम निर्णय:

  • सभी याचिकाएं खारिज कर दी गईं।
  • किसी भी याचिकाकर्ता को सेवा में बनाए रखने या नियमित करने का आदेश नहीं दिया गया।
  • सरकार को योजनागत पदों को बंद करने या सेवाएं समाप्त करने से रोका नहीं गया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बिहार में हजारों संविदा कर्मियों के लिए स्पष्ट संदेश है कि योजना आधारित सेवा केवल अस्थायी है और इसका नियमितीकरण की कोई गारंटी नहीं है। इस निर्णय से सरकार को यह अधिकारिक समर्थन मिला है कि वह परियोजना समाप्त होने पर कर्मचारियों की सेवा समाप्त कर सकती है।

सामाजिक विकास की योजनाओं में लगे कर्मियों—जैसे स्वास्थ्य कार्यकर्ता, शिक्षक, डाटा एंट्री ऑपरेटर—को अब यह समझना होगा कि इन सेवाओं का स्थायी रोजगार से कोई कानूनी संबंध नहीं है। वहीं सरकार को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि योजनाओं में नियोजन करते समय यह बात स्पष्ट रहे कि यह अस्थायी सेवा है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या योजनागत कर्मचारियों को नियमितीकरण का अधिकार है?
    नहीं। केवल स्वीकृत पदों पर वैधानिक प्रक्रिया से नियुक्त कर्मचारी ही नियमितीकरण के पात्र हैं।
  • क्या सरकार ऐसी नियुक्तियों के लिए नियमितीकरण नीति बनाने के लिए बाध्य है?
    नहीं। अदालत ने सरकार को कोई ऐसा निर्देश देने से इनकार कर दिया।
  • क्या CWJC No. 6546 of 2017 का लाभ इन याचिकाकर्ताओं को मिल सकता है?
    नहीं। वह निर्णय केवल स्वीकृत पदों पर नियुक्त कर्मचारियों तक सीमित था।
  • क्या योजनाओं के बंद होने पर सेवा समाप्ति को मनमानी कहा जा सकता है?
    नहीं। जब योजना समाप्त हो जाए तो कर्मचारी की सेवा स्वतः समाप्त हो जाती है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • State of Karnataka vs. Umadevi (2006) 4 SCC 1

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • उमादेवी केस (2006)
  • State of Bihar v. Upendra Narayan Singh
  • CWJC No. 6546 of 2017 (परिसीमित प्रभाव स्पष्ट किया गया)

मामले का शीर्षक
CWJC No. 8026 of 2019 and analogous cases

केस नंबर
CWJC No. 8026 of 2019

उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 273

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री राजेन्द्र प्रसाद (याचिकाकर्ताओं की ओर से)
श्री संदीप कुमार, GP 14 (राज्य की ओर से)

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTI5MjEjMjAxOSMxI04=—ak1–J6u–am1–GMsq2M=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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