पटना उच्च न्यायालय 2024: व्यक्तिगत सुनवाई न होने पर जीएसटी आदेश निरस्त, मामला पुनः विचार हेतु भेजा गया

पटना उच्च न्यायालय 2024: व्यक्तिगत सुनवाई न होने पर जीएसटी आदेश निरस्त, मामला पुनः विचार हेतु भेजा गया

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जो वस्तु एवं सेवा कर (GST) से जुड़े मामलों में करदाताओं के अधिकारों को और स्पष्ट करता है। इस मामले में एक याचिकाकर्ता ने जीएसटी आकलन आदेश (assessment order) को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने दो मुख्य आधार दिए—पहला, आकलन आदेश सीमावधि (limitation) के बाहर है, और दूसरा, उसे व्यक्तिगत सुनवाई (personal hearing) का अवसर नहीं दिया गया।

न्यायालय ने पहले यह देखा कि सीमावधि से जुड़ा मुद्दा पहले ही पटना उच्च न्यायालय की एक समन्वय पीठ (coordinate bench) द्वारा तय किया जा चुका है। उस पुराने निर्णय में अदालत ने करदाताओं के पक्ष में कोई राहत नहीं दी थी। इसलिए इस याचिका में भी सीमावधि वाला तर्क मान्य नहीं हुआ।

लेकिन, अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत सुनवाई नहीं दी गई थी, जबकि जीएसटी अधिनियम की धारा 75(4) के अनुसार, जब भी कर अधिकारी करदाता के खिलाफ प्रतिकूल आदेश पारित करने वाले हों, तो सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है। अदालत ने माना कि इस प्रावधान की अनदेखी से पूरी कार्यवाही अवैध हो जाती है।

इस कारण, उच्च न्यायालय ने जीएसटी आकलन आदेश और उससे संबंधित फॉर्म DRC-07 (जिसमें बकाया कर की जानकारी दी जाती है) को रद्द कर दिया। हालांकि अदालत ने करदाताओं को सीधी राहत नहीं दी, बल्कि मामला फिर से कर निर्धारण अधिकारी (Assessing Officer) को भेजा ताकि वह सभी प्रक्रिया पूरी करके नया आदेश दे सके।

साथ ही, अदालत ने यह भी तय किया कि करदाता को 15 जनवरी 2025 को अधिकारी के सामने उपस्थित होना होगा। यदि वह उस दिन या अगली तारीख (यदि स्थगन मिले) पर पेश हो जाता है, तो अधिकारी को तीन महीने के भीतर नया आदेश पारित करना होगा। यह समय सीमा न्यायालय के आदेश से तय की गई है, या यदि कानून में निर्धारित समयसीमा अभी शेष है तो उसके भीतर।

इस प्रकार, अदालत ने एक संतुलित रास्ता निकाला—जहां कर विभाग की वसूली की प्रक्रिया जारी रह सके, वहीं करदाता के अधिकारों की भी रक्षा हो।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

  1. व्यक्तिगत सुनवाई का अधिकार मजबूत हुआ
    अदालत ने साफ कहा कि सुनवाई का अवसर केवल औपचारिकता नहीं है। यह करदाता का कानूनी अधिकार है। यदि अधिकारी इसे नज़रअंदाज़ करते हैं तो पूरा आदेश रद्द हो जाएगा।
  2. राजस्व विभाग के लिए सख्त संदेश
    विभाग को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि हर प्रतिकूल आदेश से पहले सुनवाई का अवसर दिया जाए। नहीं तो न्यायालय आदेश को निरस्त कर देगा।
  3. व्यवसायियों और आम जनता के लिए सीख
    करदाताओं को चाहिए कि वे व्यक्तिगत सुनवाई की मांग ज़रूर करें और उपस्थित होकर अपना पक्ष रखें। यदि उन्हें यह अवसर नहीं दिया जाता है, तो वे अदालत से राहत प्राप्त कर सकते हैं।
  4. तेज़ और निश्चित प्रक्रिया
    अदालत ने समयसीमा तय करके यह भी सुनिश्चित किया कि मामला लंबा न खिंचे। इससे करदाता और विभाग, दोनों को स्पष्टता और समय पर निर्णय मिलेगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • सीमावधि (Limitation) का मुद्दा
    • निर्णय: करदाता के खिलाफ।
    • कारण: पहले ही पटना उच्च न्यायालय की समन्वय पीठ ने इस पर फैसला दिया था, जिसे दोबारा खोला नहीं जा सकता।
  • व्यक्तिगत सुनवाई न देना
    • निर्णय: करदाता के पक्ष में।
    • कारण: धारा 75(4) के अनुसार व्यक्तिगत सुनवाई अनिवार्य है। इसकी अनदेखी से आदेश अवैध हो गया।
  • मामले का पुनः विचार (Remand)
    • निर्णय: मामला पुनः कर निर्धारण अधिकारी को भेजा गया।
    • कारण: ताकि सुनवाई के बाद नया आदेश पारित किया जा सके। समयसीमा भी तय की गई।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • M/s Barhonia Engicon Private Limited बनाम Union of India & Ors., C.W.J.C. No. 4180 of 2024, निर्णय दिनांक 27.11.2024 (सीमावधि के मुद्दे पर भरोसा किया गया)।

मामले का शीर्षक

  • याचिकाकर्ता बनाम भारत संघ एवं अन्य

केस नंबर

  • Civil Writ Jurisdiction Case No. 11543 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय मुख्य न्यायाधीश
  • माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथि
    (मौखिक निर्णय दिनांक 18.12.2024)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री डी. वी. पाठी, अधिवक्ता
  • प्रतिवादियों की ओर से: डॉ. के. एन. सिंह, ए.एस.जी.; श्री अंशुमान सिंह, वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता (CGST & CX); श्री विवेक प्रसाद, जीपी-7

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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