निर्णय की सरल व्याख्या
इस फैसले में पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण कर विवाद को सुलझाया। मामला एक ऐसी कंपनी से जुड़ा था जो भारत के कई राज्यों में कारोबार करती है और हर राज्य में अलग-अलग जीएसटी रजिस्ट्रेशन लेकर रिटर्न दाखिल करती है।
बिहार कर विभाग ने कंपनी का आकलन करते समय उसके पूरे भारत के कारोबार (टर्नओवर) का 40% मानकर उसे बिहार का कारोबार मान लिया और उसी पर टैक्स निकाल दिया। समस्या यह थी कि आकलन अधिकारी (AO) ने यह 40% आंकड़ा किसी कानून या ठोस दस्तावेज़ पर आधारित नहीं किया।
कंपनी का कहना था कि बिहार का कारोबार पहले ही बिहार वाले रजिस्ट्रेशन से दाखिल किए गए वार्षिक रिटर्न (GSTR-9) में मौजूद है। बाकी कारोबार उन राज्यों का है जहाँ कंपनी के अलग-अलग जीएसटी नंबर (GSTIN) हैं और वहाँ टैक्स भी भरा गया है। ऐसे में बिहार में 40% मनमाने ढंग से जोड़ना कानून के खिलाफ है और दोहरी टैक्स वसूली जैसा है।
राज्य सरकार के वकील का तर्क था कि कंपनी ने आकलन के बाद रेक्टिफिकेशन (सुधार याचिका) में दस्तावेज़ दिए, जबकि ये पहले ही देने चाहिए थे। कानून में रेक्टिफिकेशन केवल “स्पष्ट त्रुटियों” को ठीक करने के लिए है, न कि नए दस्तावेज़ों से पूरा आकलन दोबारा खोलने के लिए।
न्यायालय ने मुख्य मुद्दे पर ध्यान दिया — क्या 40% का फॉर्मूला किसी कानून से समर्थित है? कोर्ट ने पाया कि आकलन आदेश दिनांक 20.08.2024 में ऐसा कोई कानूनी आधार नहीं बताया गया। जीएसटी का पूरा ढांचा पंजीकरण आधारित और राज्यवार रिटर्न पर टिका हुआ है। ऐसे में बिना दस्तावेज़ और बिना क़ानून के, कोई मनमाना प्रतिशत लगाना न्यायसंगत नहीं है।
नतीजा यह हुआ कि कोर्ट ने कहा — जब मूल आकलन ही अवैध है तो उसके आधार पर पारित रेक्टिफिकेशन आदेश भी टिक नहीं सकता। दोनों आदेश रद्द कर दिए गए।
साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि मामला पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। अब कंपनी को 20 दिसंबर 2024 को आकलन अधिकारी के सामने उपस्थित होकर सभी ज़रूरी दस्तावेज़ (जैसे कि अन्य राज्यों के जीएसटी रिटर्न, जीएसटी नंबर, ट्रायल बैलेंस, डेबिट नोट्स आदि) प्रस्तुत करने होंगे। अधिकारी को पूरे अवसर देकर कानून के अनुसार नया आकलन करना होगा।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- व्यवसायियों के लिए: यदि आपका कारोबार कई राज्यों में फैला हुआ है, तो बिहार कर विभाग या किसी अन्य राज्य का अधिकारी आपके पूरे भारत का कारोबार नहीं जोड़ सकता। हर राज्य का कारोबार अलग जीएसटी नंबर से ही आंका जाएगा।
- सरकारी विभागों के लिए: यह फैसला याद दिलाता है कि आकलन करते समय कानून के प्रावधान और दस्तावेज़ ही आधार होंगे। अनुमान या मनमाने प्रतिशत पर आधारित आकलन अदालत में नहीं टिकेगा।
- कानूनी प्रक्रिया के लिए: कोर्ट ने साफ किया कि रेक्टिफिकेशन केवल स्पष्ट त्रुटियों को ठीक करने का साधन है। लेकिन जब मूल आकलन ही अवैध हो, तो उसे पूरी तरह से रद्द कर नए सिरे से करना होगा।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या बिना कानूनी आधार के पूरे भारत के कारोबार का 40% बिहार का कारोबार मानकर टैक्स लगाया जा सकता है?
- निर्णय: नहीं। कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है और आदेश रद्द किया।
- जब मूल आकलन ही अवैध है, तो क्या रेक्टिफिकेशन आदेश टिक सकता है?
- निर्णय: नहीं। मूल आधार गलत होने पर उस पर आधारित आदेश भी अवैध है।
- आगे की प्रक्रिया क्या होगी?
- निर्णय: कंपनी को 20 दिसंबर 2024 को सभी दस्तावेज़ों के साथ उपस्थित होना होगा। अधिकारी साक्ष्यों और कानून के आधार पर नया आकलन करेगा।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम भारत संघ एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 18052 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश (के. विनोद चंद्रन) एवं माननीय न्यायमूर्ति नानी टागिया
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अनुराग सौरव, सुश्री शारदा राजे सिंह, श्री अंकश बिधु, श्री अभिषेक कुमार, श्री अभिषेक कुमार, सुश्री प्रीति कुमारी
- प्रतिवादियों की ओर से: स्टैंडिंग काउंसिल-11
निर्णय का लिंक
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