पटना उच्च न्यायालय 2021 का फैसला: बी.एससी. छात्र का रिज़ल्ट घोषित करने की मांग खारिज

पटना उच्च न्यायालय 2021 का फैसला: बी.एससी. छात्र का रिज़ल्ट घोषित करने की मांग खारिज

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला पूर्णिया जिले के आर.के.के. कॉलेज (भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा से संबद्ध) के एक छात्र से जुड़ा है। छात्र (याचिकाकर्ता) ने पटना उच्च न्यायालय से यह आदेश दिलाने की मांग की कि उसका बी.एससी. (रसायन शास्त्र ऑनर्स) का अंतिम परिणाम घोषित किया जाए और उसकी मार्कशीट व डिग्री दी जाए।

घटनाक्रम इस प्रकार था:

  • 2014 में उसने भाग-I परीक्षा पास की।
  • 2015 में भाग-II परीक्षा दी, परंतु रसायन (ऑनर्स) और गणित (सहायक विषय) में फेल हो गया।
  • 2016 में फिर से परीक्षा दी, इस बार गणित पास किया लेकिन रसायन (ऑनर्स) में फेल हो गया।
  • 2017 में उसने परीक्षा ही नहीं दी।

हालांकि वह पास नहीं हुआ, फिर भी विश्वविद्यालय के नियमों के तहत उसे भाग-III (फाइनल वर्ष) में प्रोन्नति मिल गई। उसने 2016, 2017 और 2018 में परीक्षा नहीं दी और अंततः 2019 में बी.एससी. भाग-III की परीक्षा दी।

लेकिन विश्वविद्यालय ने उसका परिणाम रोक दिया। कारण यह बताया गया कि परीक्षा विनियम (Regulation 7.1) के अनुसार कोई भी छात्र भाग-II पास किए बिना भाग-III में प्रवेश नहीं ले सकता।

छात्र ने तर्क दिया कि जब विश्वविद्यालय ने उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति दी, तो बाद में परिणाम रोकना गलत है। उसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले श्री कृष्ण बनाम कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय (1976) पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि अगर विश्वविद्यालय किसी छात्र को परीक्षा देने देता है, तो बाद में परिणाम नहीं रोक सकता।

विश्वविद्यालय ने जवाब दिया कि:

  • उसने लगातार रसायन (ऑनर्स) में फेल किया और अधिकतम अनुमत प्रयास (तीन) खत्म कर दिए।
  • नियमों के अनुसार, बिना भाग-II पास किए छात्र भाग-III में वैध रूप से नहीं जा सकता।

कोर्ट ने पहले के फैसलों का भी हवाला दिया:

  • मिहिर कुमार झा बनाम बी.एन. मंडल विश्वविद्यालय (2014) – जहाँ अदालत ने कहा कि श्री कृष्ण का सिद्धांत हर मामले पर लागू नहीं होता।
  • सीमा भारती बनाम बिहार राज्य (2018) – जहाँ नियमों के विरुद्ध दी गई प्रोन्नति को रद्द कर दिया गया।
  • रूची रचना बनाम बिहार राज्य (2018) – जहाँ कोर्ट ने कहा कि नियम तोड़े जाने पर रिज़ल्ट घोषित नहीं कराया जा सकता।

अदालत ने कहा कि अगर इस छात्र का रिज़ल्ट घोषित किया गया, तो यह न केवल नियमों का उल्लंघन होगा बल्कि अन्य छात्रों के साथ अनुचित भेदभाव (Article 14 का उल्लंघन) भी होगा, जिन्होंने नियमों का पालन किया।

साथ ही, कोर्ट ने विश्वविद्यालय के कुलपति को जांच करने का निर्देश दिया कि आखिर कैसे इस छात्र को नियमों के खिलाफ भाग-III की परीक्षा में बैठने दिया गया।

अंततः याचिका खारिज कर दी गई।

निर्णय का महत्व और प्रभाव

  • छात्रों के लिए: यह फैसला बताता है कि सिर्फ परीक्षा में बैठ जाना अधिकार नहीं देता। यदि पात्रता पूरी नहीं है तो रिज़ल्ट घोषित करने की मांग मान्य नहीं होगी।
  • विश्वविद्यालयों के लिए: उन्हें नियमों का कड़ाई से पालन कराना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अयोग्य छात्रों को परीक्षा में न बैठने दिया जाए।
  • शैक्षणिक मानक के लिए: अदालत ने साफ किया कि नियमों को दरकिनार कर डिग्री देना शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करेगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या भाग-II पास किए बिना भाग-III का रिज़ल्ट घोषित किया जा सकता है?
    • नहीं। अदालत ने कहा कि केवल परीक्षा देने से पात्रता नहीं बनती।
  • क्या श्री कृष्ण बनाम कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का सिद्धांत लागू होता है?
    • नहीं। यह सिद्धांत सार्वभौमिक नहीं है; लगातार फेल होने और समय सीमा चूकने के मामलों में लागू नहीं होता।
  • क्या परिणाम रोकना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है?
    • नहीं। बल्कि परिणाम घोषित करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता, क्योंकि अन्य छात्रों से भेदभाव होता।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Shri Krishan v. Kurukshetra University, (1976) 1 SCC 311

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Mihir Kumar Jha v. Bhupendra Narayan Mandal University, CWJC No. 21660 of 2013 (पटना हाईकोर्ट, 2014)
  • Sima Bharti v. State of Bihar, CWJC No. 4605 of 2018 (पटना हाईकोर्ट, 2018)
  • Ruchi Rachna v. State of Bihar, CWJC No. 6114 of 2018 (पटना हाईकोर्ट, 2018)

मामले का शीर्षक

Md. Helal बनाम State of Bihar एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 7882 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(1)PLJR 528

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह (निर्णय दिनांक: 04.01.2021)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री जितेन्द्र कुमार पांडेय
  • राज्य की ओर से: श्रीमती शिल्पा सिंह, G.A.-12; सुश्री अभंजलि, AC to G.A.-12
  • विश्वविद्यालय की ओर से: श्री रितेश कुमार

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNzg4MiMyMDIwIzEjTg==-3lT–ak1–JN9kU1w=

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News