पटना उच्च न्यायालय (2024): जीएसटी आकलन से पहले व्यक्तिगत सुनवाई अनिवार्य — आदेश रद्द कर मामला पुनः भेजा गया

पटना उच्च न्यायालय (2024): जीएसटी आकलन से पहले व्यक्तिगत सुनवाई अनिवार्य — आदेश रद्द कर मामला पुनः भेजा गया

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें यह साफ कहा गया कि जीएसटी कानून की धारा 75(4) के तहत व्यक्तिगत सुनवाई (Personal Hearing) देना केवल औपचारिकता नहीं बल्कि कानूनी बाध्यता है। यदि कर अधिकारी बिना सुनवाई के अंतिम आकलन कर लेते हैं, तो ऐसा आदेश टिक नहीं सकता।

इस मामले में याचिकाकर्ता ने अपने जीएसटी आकलन और कर मांग आदेश को चुनौती दी। उनका कहना था कि (1) यह आदेश समय-सीमा (limitation) से बाहर है और (2) उन्हें व्यक्तिगत सुनवाई का मौका नहीं दिया गया।

न्यायालय ने सबसे पहले समय-सीमा से जुड़ी आपत्ति पर विचार किया। यह मुद्दा पहले ही इसी अदालत द्वारा एक अन्य मामले (M/s Barhonia Engicon Private Limited बनाम Union of India, दिनांक 27.11.2024) में तय किया जा चुका था, जिसमें कहा गया था कि ऐसे मामलों में कर अधिकारी की कार्रवाई समय-सीमा से बाहर नहीं है। इसलिए अदालत ने इस याचिकाकर्ता की आपत्ति भी खारिज कर दी।

इसके बाद अदालत ने मुख्य मुद्दे—व्यक्तिगत सुनवाई—पर ध्यान दिया। रिकॉर्ड देखने के बाद यह स्पष्ट हुआ कि कर अधिकारी ने बिना व्यक्तिगत सुनवाई दिए ही 04.12.2023 को आकलन आदेश और 18.12.2023 को कर मांग आदेश जारी कर दिया था। अदालत ने इसे कानून का सीधा उल्लंघन माना और दोनों आदेशों को रद्द कर दिया।

अब मामला फिर से कर अधिकारी के पास जाएगा। न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता 19.12.2024 को कर अधिकारी के समक्ष उपस्थित हों। यदि आवश्यकता हो तो उन्हें एक बार स्थगन (adjournment) लेने की अनुमति होगी। कर अधिकारी को आदेश दिया गया है कि वे तीन महीने के भीतर या कानून में निर्धारित सीमा तक—जो भी आगे हो—नया आदेश पारित करें।

इसका मतलब है कि अब आकलन की पूरी प्रक्रिया फिर से शुरू होगी, लेकिन इस बार याचिकाकर्ता को सुनवाई का पूरा अवसर मिलेगा और कर अधिकारी को कारणयुक्त (reasoned) आदेश पारित करना होगा।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

आम करदाताओं के लिए:
यह फैसला एक बड़ी राहत है। यदि किसी करदाता के खिलाफ बिना सुनवाई के आकलन आदेश पारित किया जाता है, तो वह अदालत में चुनौती देकर आदेश को रद्द करा सकता है। इसका मतलब यह भी है कि जीएसटी मामलों में व्यक्तिगत सुनवाई का अधिकार बेहद अहम है।

सरकार और कर विभाग के लिए:
यह निर्णय कर अधिकारियों के लिए चेतावनी है कि उन्हें धारा 75(4) का पालन करना ही होगा। हर मामले में सुनवाई की सूचना देनी होगी, उपस्थिति दर्ज करनी होगी और करदाता की बातों को आदेश में दर्ज करना होगा। इससे अनावश्यक मुकदमेबाजी घटेगी और आदेश कानूनी रूप से मज़बूत होंगे।

व्यवस्था के लिए:
यह फैसला न्यायिक अनुशासन और निष्पक्षता का प्रतीक है। अदालत ने समय-सीमा का मुद्दा पहले के फैसले से तय माना और केवल सुनवाई के अधिकार पर ध्यान दिया। इससे यह संदेश जाता है कि जीएसटी कानून के सख्त प्रावधानों के बावजूद प्राकृतिक न्याय (natural justice) की अनदेखी नहीं की जा सकती।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या आकलन कार्यवाही समय-सीमा से बाहर थी?
    ✦ अदालत ने कहा: नहीं। पहले के फैसले (27.11.2024) के अनुसार यह कार्यवाही मान्य है।
  • क्या बिना व्यक्तिगत सुनवाई के जारी आकलन और कर मांग आदेश सही है?
    ✦ अदालत ने कहा: नहीं। यह धारा 75(4) का उल्लंघन है। आदेश रद्द किया गया और मामला पुनः कर अधिकारी को भेजा गया।
  • आगे की प्रक्रिया क्या होगी?
    ✦ याचिकाकर्ता 19.12.2024 को कर अधिकारी के समक्ष उपस्थित होंगे।
    ✦ कर अधिकारी नया आदेश तीन महीने के भीतर पारित करेंगे।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • M/s Barhonia Engicon Private Limited बनाम Union of India, C.W.J.C. No. 4180/2024, निर्णय दिनांक 27.11.2024

मामले का शीर्षक

M/S Nishant Enterprises (2017-2018) GSTIN-10AGAPD0206H1ZL through Proprietor बनाम Union of India & Ors.

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 14016 of 2024; निर्णय दिनांक 28.11.2024

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय मुख्य न्यायाधीश (K. Vinod Chandran, CJ)
  • माननीय न्यायमूर्ति Partha Sarthy

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री बिजय कुमार गुप्ता, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री मनीष कुमार, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
  • डॉ. के.एन. सिंह, ASG — भारत संघ की ओर से
  • श्री अंशुमन सिंह, वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता (CGST & CX) — विभाग की ओर से
  • श्री विवेक प्रसाद, GP-7 — बिहार राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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