पटना हाई कोर्ट 2024: जीएसटी असेसमेंट आदेश को व्यक्तिगत सुनवाई न देने के कारण रद्द किया गया

पटना हाई कोर्ट 2024: जीएसटी असेसमेंट आदेश को व्यक्तिगत सुनवाई न देने के कारण रद्द किया गया

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने 2024 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि जीएसटी (GST) के अंतर्गत असेसमेंट (आकलन) का आदेश पास करने से पहले करदाता को व्यक्तिगत सुनवाई देना अनिवार्य है। यदि यह सुनवाई नहीं दी जाती है, तो पूरा आदेश रद्द हो सकता है।

इस मामले में एक व्यापारी (याचिकाकर्ता) ने हाई कोर्ट में चुनौती दी कि उस पर जो जीएसटी का असेसमेंट आदेश पारित हुआ है, वह दो वजहों से गलत है:

  1. आदेश समय-सीमा से बाहर (limitation) है।
  2. आदेश पारित करने से पहले व्यक्तिगत सुनवाई नहीं दी गई।

कोर्ट ने पहले मुद्दे (समय-सीमा) पर कहा कि यह प्रश्न पहले ही 27.11.2024 को “मि.स. बरहोनीया इंजिकॉन प्रा.लि. बनाम भारत संघ एवं अन्य” मामले में तय हो चुका है। इसलिए याचिकाकर्ता का यह तर्क मान्य नहीं है।

लेकिन कोर्ट ने दूसरा तर्क स्वीकार किया। जीएसटी कानून की धारा 75(4) कहती है कि यदि अधिकारी किसी के खिलाफ आदेश देने जा रहे हैं, तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से सुनवाई का अवसर देना होगा। यहाँ यह प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी। इसी कारण 29.11.2023 का आदेश रद्द कर दिया गया।

हाई कोर्ट ने आदेश को वापस भेजते हुए कहा कि अधिकारी को अब नए सिरे से सुनवाई करनी होगी और याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत सुनवाई देनी होगी। कोर्ट ने यह भी तारीख तय कर दी कि करदाता को 19.12.2024 को अधिकारी के सामने पेश होना होगा। अधिकारी एक बार स्थगन (adjournment) दे सकते हैं और उसके बाद तीन महीने के भीतर “स्पीकिंग ऑर्डर” (कारण सहित आदेश) पारित करना होगा।

यह फैसला दिखाता है कि अदालत केवल कर निर्धारण (tax assessment) की रकम पर नहीं, बल्कि प्रक्रिया की न्यायिकता पर भी ध्यान देती है। कानून के अनुसार यदि सुनवाई जरूरी है, तो उसे टालना संभव नहीं है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला दो स्तरों पर अहम है:

  1. आम जनता (व्यापारी/करदाता) – यदि किसी का असेसमेंट बिना व्यक्तिगत सुनवाई के किया गया है, तो वह आदेश अदालत में चुनौती देकर रद्द करा सकता है। यह अधिकार सभी करदाताओं को सुरक्षा देता है।
  2. सरकार और विभागीय अधिकारी – यह आदेश विभाग के लिए चेतावनी है कि असेसमेंट करते समय प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है। अधिकारी को नोटिस देना, सुनवाई कराना, और आदेश में उसका उल्लेख करना चाहिए। ऐसा न होने पर पूरा आदेश रद्द हो सकता है और सरकारी समय व संसाधन दोनों बर्बाद होते हैं।

इससे प्रशासनिक ईमानदारी और पारदर्शिता बढ़ेगी, और विभाग को भी यह समझ आएगा कि जल्दबाजी में आदेश पारित करना लाभदायक नहीं है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • समय-सीमा (Limitation) का सवाल
    • मुद्दा: क्या असेसमेंट आदेश समय-सीमा से बाहर था?
    • निर्णय: कोर्ट ने कहा कि यह सवाल पहले ही “सी.डब्ल्यू.जेे.सी. नं. 4180/2024” (निर्णय दिनांक 27.11.2024) में तय हो चुका है, इसलिए यहाँ यह तर्क मान्य नहीं।
  • धारा 75(4) का उल्लंघन (व्यक्तिगत सुनवाई)
    • मुद्दा: क्या बिना व्यक्तिगत सुनवाई के आदेश सही है?
    • निर्णय: आदेश अवैध घोषित कर दिया गया और मामले को अधिकारी को वापस भेजा गया ताकि वह व्यक्तिगत सुनवाई के बाद नया आदेश दे।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • “मि.स. बरहोनीया इंजिकॉन प्रा.लि. बनाम भारत संघ एवं अन्य”, सी.डब्ल्यू.जेे.सी. नं. 4180/2024, दिनांक 27.11.2024 (पटना हाई कोर्ट) – समय-सीमा वाले मुद्दे पर।

मामले का शीर्षक

M/s M.D. International बनाम Union of India & Ors. (Patna High Court)

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 15354 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन
  • माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री विजय कुमार गुप्ता, अधिवक्ता
  • प्रतिवादी की ओर से: डॉ. के. एन. सिंह, सहायक सॉलिसिटर जनरल (ASG)

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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