पटना उच्च न्यायालय 2024 : बीजीएसटी अधिनियम की धारा 161 में सुधार (Rectification) पर प्रतिकूल आदेश देने से पहले व्यक्तिगत सुनवाई ज़रूरी

पटना उच्च न्यायालय 2024: बीजीएसटी अधिनियम की धारा 161 में सुधार (Rectification) पर प्रतिकूल आदेश देने से पहले व्यक्तिगत सुनवाई ज़रूरी

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है, जो बिहार गुड्स एंड सर्विस टैक्स अधिनियम, 2017 (BGST Act) से जुड़ा है। इस मामले में एक निर्माण कंपनी ने कर अधिकारी के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उनकी सुधार (Rectification) की अर्जी को बिना सुनवाई के खारिज कर दिया गया था।

मामला यह था कि कंपनी ने BGST अधिनियम की धारा 161 के तहत आवेदन किया था। इस धारा में यह प्रावधान है कि यदि किसी आदेश या निर्णय में कोई स्पष्ट और रिकॉर्ड पर दिखने वाली गलती है, तो उसे सुधारा जा सकता है। लेकिन यहाँ अधिकारी ने यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि इसमें कोई “स्पष्ट गलती” नहीं है।

कंपनी की मुख्य शिकायत यह थी कि उनका आवेदन बिना किसी व्यक्तिगत सुनवाई के ही खारिज कर दिया गया। न्यायालय ने इस तर्क को गंभीरता से लिया और पाया कि धारा 161 का तीसरा प्रावधान साफ कहता है—अगर सुधार का आदेश किसी व्यक्ति के खिलाफ प्रतिकूल असर डाल सकता है, तो उसे सुनवाई का अवसर ज़रूर दिया जाना चाहिए।

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि चाहे अधिकारी को यह लगे कि आवेदन योग्य नहीं है, फिर भी आवेदक को नोटिस देकर बुलाना और व्यक्तिगत सुनवाई देना ज़रूरी है। इससे पारदर्शिता बनी रहती है और करदाता का विश्वास भी बना रहता है।

इसलिए, पटना उच्च न्यायालय ने आदेश को केवल इस आधार पर रद्द कर दिया कि सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया था। साथ ही मामला पुनः कर अधिकारी के पास भेज दिया गया, ताकि वह सुनवाई कर नए सिरे से निर्णय दे। अदालत ने यह भी कहा कि यदि कंपनी तय तारीख पर उपस्थित नहीं होती, तो अधिकारी एकतरफा (ex parte) फैसला ले सकता है।

इस मामले में एक और मुद्दा समय-सीमा (Limitation) से जुड़ा था। कंपनी का कहना था कि आदेश देरी से दिया गया। लेकिन अदालत ने साफ कर दिया कि इस सवाल का पहले ही समाधान हो चुका है और समय-सीमा बढ़ाने का प्रावधान वैध है। इसलिए अब इस पर दोबारा विवाद करने की ज़रूरत नहीं है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला आम करदाताओं और व्यवसायियों के लिए बेहद अहम है।

  • करदाताओं के लिए संदेश यह है कि यदि वे सुधार की अर्जी लगाते हैं और अधिकारी उसे खारिज करना चाहता है, तो अधिकारी को पहले उन्हें बुलाकर सुनवाई देनी होगी।
  • सरकार और विभागों के लिए यह याद दिलाने जैसा है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत (Principles of Natural Justice) हर निर्णय का हिस्सा होना चाहिए। बिना सुनवाई के लिया गया फैसला अदालत में टिक नहीं पाएगा।
  • इससे विभाग की कार्यवाही पारदर्शी बनेगी और अनावश्यक मुकदमों से भी बचा जा सकेगा।
  • साथ ही, अदालत ने यह भी सुनिश्चित किया कि करदाता यदि सुनवाई में उपस्थित नहीं होते तो अधिकारी स्वतंत्र है एकतरफा फैसला लेने के लिए। इसका मतलब यह है कि जिम्मेदारी दोनों तरफ बराबर है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या सुधार (Rectification) की अर्जी खारिज करने से पहले व्यक्तिगत सुनवाई अनिवार्य है?
    ✔ हाँ, यदि फैसला करदाता के खिलाफ जा सकता है तो अधिकारी को सुनवाई देनी ही होगी।
  • क्या उच्च न्यायालय को सुधार के मुद्दे पर मेरिट्स (गुण-दोष) तय करने चाहिए थे?
    ✘ नहीं। अदालत ने केवल प्रक्रिया की गलती (सुनवाई न देना) को देखते हुए आदेश रद्द किया और मामला पुनः विचार के लिए भेजा।
  • यदि करदाता सुनवाई में उपस्थित नहीं होता तो क्या होगा?
    ✔ अधिकारी एकतरफा (ex parte) फैसला कर सकता है।
  • समय-सीमा (Limitation) से जुड़ा विवाद क्या मान्य है?
    ✘ नहीं। अदालत ने स्पष्ट किया कि पहले ही यह तय हो चुका है कि समय-सीमा का विस्तार वैध है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • M/s Barhonia Engicon Pvt. Ltd. बनाम राज्य बिहार एवं अन्य, CWJC No. 4180 of 2024 (पटना उच्च न्यायालय, दिनांक 27.11.2024)
    – इसमें समय-सीमा विस्तार को वैध माना गया था। इसी आधार को यहाँ भी लागू किया गया।

मामले का शीर्षक

Shreeya Construction Pvt. Ltd. बनाम Union of India एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 6868 of 2024

माननीय न्यायमूर्ति गण

  • माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन
  • माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अजय कुमार झा, अधिवक्ता; श्री संजीव कुमार, अधिवक्ता; श्री अमन राजा, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से: श्री विकास कुमार, SC-11

निर्णय का लिंक

MTUjNjg2OCMyMDI0IzEjTg==-sRWYgFQsfn0=

“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News