निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया कि केवल मौखिक दावे या गवाहों की गवाही से नौकरी को नियमित (Regularization) नहीं कराया जा सकता। यदि कोई दैनिक मजदूरी पर काम करता है और वह अपनी सेवा को स्थायी कराना चाहता है, तो उसे ठोस दस्तावेजी सबूत देने होंगे, जैसे—नियुक्ति पत्र, उपस्थिति रजिस्टर, वेतन पर्ची या अन्य आधिकारिक रिकॉर्ड।
इस मामले में एक पति-पत्नी ने दावा किया कि उन्हें 2007 में कॉलेज के प्रिंसिपल ने मौखिक आदेश से दैनिक मजदूर के रूप में रखा था। उन्हें शुरू में ₹200 और बाद में ₹300 मासिक दिया जाने लगा। उन्होंने कहा कि उन्होंने साल में 240 दिन से अधिक काम किया, इसलिए उनकी सेवा नियमित की जानी चाहिए। लेकिन अप्रैल 2009 से उनकी मजदूरी रोक दी गई और सेवा समाप्त कर दी गई।
उन्होंने श्रम आयुक्त से गुहार लगाई और मामला लेबर कोर्ट, छपरा को भेजा गया। सवाल था: क्या इनकी सेवा नियमित न करना सही था?
लेबर कोर्ट ने गवाहों की गवाही सुनी, लेकिन पाया कि कोई भी ठोस दस्तावेज नहीं दिया गया। यहां तक कि याचिकाकर्ताओं ने खुद माना कि उन्होंने कभी उपस्थिति रजिस्टर में हस्ताक्षर नहीं किए। बिना 240 दिनों की निरंतर सेवा के सबूत के, उनका दावा टिक नहीं पाया।
लेबर कोर्ट ने मामला खारिज कर दिया। फिर उन्होंने हाईकोर्ट के एकल पीठ में याचिका दायर की, लेकिन वहां भी हार गए। अंत में उन्होंने खंडपीठ (डिवीजन बेंच) में अपील की, परंतु मुख्य न्यायाधीश और एक अन्य न्यायाधीश ने भी कहा कि निचली अदालतों का निर्णय सही है। अपील खारिज कर दी गई।
इस प्रकार, अदालत ने दोहराया कि नियमितीकरण का हक केवल उन्हीं को है जो पुख्ता सबूतों के साथ अपनी सेवा को साबित कर सकें।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
- मजदूरों के लिए: यह फैसला बताता है कि यदि कोई व्यक्ति लंबे समय तक काम करता है और नौकरी स्थायी कराना चाहता है, तो उसे सबूत रखना बेहद जरूरी है। केवल मौखिक बयान पर्याप्त नहीं है।
- संस्थानों के लिए: यह निर्णय संस्थानों को अवांछित और बेबुनियाद दावों से सुरक्षा देता है।
- न्याय व्यवस्था के लिए: यह फैसला स्पष्ट करता है कि रोजगार के अधिकार कानूनी प्रमाणों पर आधारित होने चाहिए, न कि केवल अनुमान या दावे पर।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या अपीलकर्ताओं को दैनिक मजदूर के रूप में सेवा नियमित करने का अधिकार था?
❌ नहीं। उन्होंने 240 दिनों की सेवा का कोई प्रमाण नहीं दिया। - क्या लेबर कोर्ट का निर्णय गलत था?
❌ नहीं। कोर्ट ने सही तरीके से सबूतों की समीक्षा की। - क्या डिवीजन बेंच को हस्तक्षेप करना चाहिए था?
❌ नहीं। खंडपीठ ने कहा कि निचली अदालतों का आदेश सही है और अपील खारिज कर दी।
मामले का शीर्षक
Suresh Ram एवं अन्य बनाम State of Bihar एवं अन्य
केस नंबर
Letters Patent Appeal No. 1465 of 2018
(in Civil Writ Jurisdiction Case No. 18545 of 2016)
उद्धरण (Citation)
2021(1) PLJR 639
न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
- माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री मोहम्मद अबु हैदर — अपीलकर्ताओं की ओर से
- श्री चितरंजन सिन्हा (Paag-2) — प्रतिवादियों की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyMxNDY1IzIwMTgjMSNO-qoPQIgd
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