पटना हाईकोर्ट 2021: विवाहित बेटियों को करुणामूलक नियुक्ति का लाभ पुराने मामलों में नहीं मिलेगा

पटना हाईकोर्ट 2021: विवाहित बेटियों को करुणामूलक नियुक्ति का लाभ पुराने मामलों में नहीं मिलेगा

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया कि करुणामूलक नियुक्ति (Compassionate Appointment) का लाभ विवाहित बेटियों को केवल 2014 के बाद से मिलेगा। इससे पहले जिन कर्मचारियों की मृत्यु हुई थी, उनकी विवाहित बेटियां इस योजना का लाभ नहीं ले सकतीं।

इस मामले में याचिकाकर्त्री के पिता, जो पशुपालन विभाग में चौथे वर्ग (Class IV) के कर्मचारी थे, वर्ष 2003 में सेवा के दौरान ही निधन हो गया। याचिकाकर्त्री ने 2007 में करुणामूलक नियुक्ति के लिए आवेदन किया। लेकिन उस समय की नीति में विवाहित बेटियों को इसका हक नहीं था।

बाद में, दिसंबर 2014 में बिहार सरकार ने नई अधिसूचना जारी की, जिसमें विवाहित बेटियों को भी करुणामूलक नियुक्ति का अधिकार दिया गया। याचिकाकर्त्री ने दलील दी कि नई नीति लागू हो चुकी है, इसलिए उसका आवेदन स्वीकार होना चाहिए। उसने सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले (Vijaya Ukarda Athor बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2015) का भी हवाला दिया।

लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि—

  1. करुणामूलक नियुक्ति कोई कानूनी अधिकार नहीं है, बल्कि यह अचानक आई आर्थिक समस्या से निपटने का उपाय है।
  2. जब 2003 में कर्मचारी की मृत्यु हुई और 2007 में आवेदन दिया गया, तब विवाहित बेटियों के लिए कोई प्रावधान नहीं था।
  3. 2014 की अधिसूचना पिछले समय से लागू (Retrospective) नहीं हो सकती। यह केवल आगे के मामलों पर लागू होगी।
  4. आवेदन भी मृत्यु के चार साल बाद किया गया, जो करुणामूलक नियुक्ति के उद्देश्य के विपरीत है।

इसलिए, कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि याचिकाकर्त्री को करुणामूलक नियुक्ति का हक नहीं है और उसकी अपील खारिज कर दी।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

  • परिवारों के लिए: यह फैसला बताता है कि करुणामूलक नियुक्ति केवल अचानक आई आर्थिक कठिनाई से निपटने के लिए है। इसे विरासत या अधिकार की तरह नहीं माना जा सकता।
  • विवाहित बेटियों के लिए: 2014 की नीति से उन्हें भी यह सुविधा मिल गई है, लेकिन यह केवल भविष्य के लिए है। 2014 से पहले की मौत के मामलों में इसका लाभ नहीं मिलेगा।
  • सरकार के लिए: यह निर्णय पुराने मामलों में दायर बड़ी संख्या में संभावित दावों से बचाव करता है और नीति की स्पष्टता बनाए रखता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या 2014 से पहले की मौत के मामलों में विवाहित बेटियों को करुणामूलक नियुक्ति मिल सकती है?
    ❌ नहीं। नीति केवल भविष्य (Prospective) के लिए है।
  • क्या देरी से किया गया आवेदन मान्य है?
    ❌ नहीं। मृत्यु के चार साल बाद किया गया आवेदन करुणामूलक नियुक्ति के उद्देश्य के विपरीत है।
  • क्या सर्वोच्च न्यायालय का 2015 वाला फैसला मददगार था?
    ❌ नहीं। उस मामले में नीति के पीछे की तारीख से लागू होने का प्रश्न शामिल नहीं था।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Vijaya Ukarda Athor बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य (2015) 3 SCC 399

मामले का शीर्षक

Uma Devi @ Uma Kumari बनाम State of Bihar एवं अन्य

केस नंबर

Letters Patent Appeal No. 1018 of 2018
(in Civil Writ Jurisdiction Case No. 15871 of 2010)

उद्धरण (Citation)

2021(1) PLJR 641

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
  • माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री संजीव कुमार, अधिवक्ता — अपीलकर्ता की ओर से
  • श्री मोहम्मद खुर्शीद आलम, एएजी-12 — प्रतिवादी राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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