निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय का यह फैसला वस्तु एवं सेवा कर (GST) कानून के तहत एक अहम बिंदु को स्पष्ट करता है—यदि माल या वाहन को रोका गया है और नोटिस जारी किया गया है, तो सात दिनों के भीतर अंतिम आदेश पारित करना अनिवार्य है। यदि सात दिन से ज़्यादा समय हो जाता है तो आदेश अवैध माना जाएगा।
इस मामले में एक ट्रक को माल ले जाते समय रोका गया।
• 30.03.2024 को वाहन रोका गया और उसी दिन भौतिक जाँच भी हुई।
• 04.04.2024 को नोटिस (GST MOV-07) जारी किया गया। इस पर व्यापारी के प्रतिनिधि के हस्ताक्षर थे, इसलिए अदालत ने इसे वैध सेवा (service of notice) मान लिया।
• नोटिस में जवाब देने के लिए 11.04.2024 तक का समय दिया गया। लेकिन उस दिन सरकारी अवकाश था, इसलिए व्यापारी ने 12.04.2024 को जवाब दाखिल किया।
• विभाग ने 18.04.2024 को पेनाल्टी का आदेश पास किया। यानी नोटिस मिलने के सात दिन से भी ज़्यादा समय बीत गया।
कानून की धारा 129(3) कहती है कि—(i) नोटिस देना है और (ii) सात दिन के भीतर आदेश देना है। यहाँ विभाग ने जवाब की अंतिम तारीख का इंतजार करते हुए आदेश 18.04.2024 को दिया, जो सात दिन की सीमा से बाहर था। अदालत ने साफ कहा कि जवाब की तारीख मायने नहीं रखती, गिनती नोटिस मिलने की तारीख से शुरू होगी।
राज्य की ओर से यह तर्क दिया गया कि 12.04.2024 को जवाब दाखिल हुआ, इसलिए आदेश 18.04.2024 तक वैध था। अदालत ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि क़ानून सिर्फ “नोटिस की सेवा” को आधार मानता है, न कि जवाब की तारीख को।
व्यापारी की ओर से एक आंतरिक परिपत्र (circular) भी पेश किया गया, जिसमें साफ लिखा है कि आदेश सात दिन के भीतर ही पारित होना चाहिए। अदालत ने माना कि इस परिपत्र से भी यही साबित होता है कि सात दिन की समयसीमा अनिवार्य है।
सरकार ने यह भी कहा कि व्यापारी ने 24.04.2024 को पैसा जमा कर दिया, इसलिए मामला समाप्त माना जाए। लेकिन अदालत ने कहा कि जब मूल आदेश ही समयसीमा से बाहर होकर अवैध है, तो बाद में पैसा जमा करने से उसे वैध नहीं बनाया जा सकता। व्यापारी ने सिर्फ वाहन छुड़ाने के लिए पैसा जमा किया था।
अंत में अदालत ने आदेश को रद्द कर दिया और जमा किया गया पैसा वापस करने का निर्देश दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
• व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों के लिए यह निर्णय बहुत महत्वपूर्ण है। अब वे यह जान पाएंगे कि यदि सात दिन से ज़्यादा समय हो गया है, तो पेनाल्टी का आदेश अदालत में चुनौती देकर रद्द कराया जा सकता है।
• विभाग को भी यह सीख है कि उन्हें सख्ती से सात दिन के भीतर आदेश पास करना होगा। वरना उनका आदेश अदालत में टिक नहीं पाएगा।
• इससे माल और वाहन की लंबे समय तक अनावश्यक हिरासत रोकी जा सकेगी।
• यह फैसला जीएसटी कानून में पारदर्शिता और समयबद्ध कामकाज सुनिश्चित करने की दिशा में अहम कदम है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
• क्या विभाग जवाब की तारीख से सात दिन गिन सकता है?
— नहीं। अदालत ने कहा कि गिनती सिर्फ नोटिस की सेवा (service of notice) से होगी।
• क्या बाद में पैसा जमा करने से समयसीमा से बाहर आदेश वैध हो जाएगा?
— नहीं। अवैध आदेश को बाद की कार्यवाही सही नहीं बना सकती।
• क्या आंतरिक परिपत्र भी सात दिन की बाध्यता पर जोर देता है?
— हाँ। अदालत ने माना कि विभाग का परिपत्र भी यही कहता है कि आदेश सात दिन में होना चाहिए।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
• याचिकाकर्ता ने CWJC No. 7985 of 2024 (Pawan Carrying Corporation बनाम Commissioner CGST & Central Excise & Ors.) का हवाला दिया।
• राज्य ने CWJC No. 4924 of 2023 (M/s Sangam Wires बनाम State of Bihar & Ors.) पर भरोसा किया, पर अदालत ने कहा कि वह इस मामले में लागू नहीं होता।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
• अदालत ने ऊपर बताए गए दोनों फैसलों का जिक्र किया और Pawan Carrying Corporation को सही माना।
मामले का शीर्षक
M/s Kedia Enterprises बनाम State of Bihar & Anr.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 11021 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन एवं माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथि
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
• याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अनुराग खोवाला, अधिवक्ता
• राज्य की ओर से: श्री विकास कुमार, SC-11
निर्णय का लिंक
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