निर्णय की सरल व्याख्या
फरवरी 2021 में पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए एक शिक्षक की याचिका खारिज कर दी। इस शिक्षक की सेवा इसलिए समाप्त कर दी गई थी क्योंकि उसने अपनी नियुक्ति के लिए जो मोलवी प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया था, वह एक ऐसे संस्थान से जारी हुआ था जो मान्यता प्राप्त (recognized) नहीं था।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता की नियुक्ति वर्ष 2010 में पंचायत शिक्षक (उर्दू) के पद पर हुई थी। उसने अपनी योग्यता के रूप में वर्ष 2005 में जामिया रहमानिया हम्दिया, पोखरैरा (शरीफ), सीतामढ़ी से प्राप्त मोलवी प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया।
लगभग 9 साल तक उसने मिडिल स्कूल, इस्लामपुर (वैशाली जिला) में काम किया। लेकिन 2019 में उसे नोटिस मिला कि उसका प्रमाणपत्र फर्जी है क्योंकि यह संस्था बिहार मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त नहीं थी। इसके आधार पर एक एफआईआर भी दर्ज हुई।
शिक्षक ने जवाब दाखिल किया, लेकिन 29.11.2019 को उसका नियुक्ति आदेश रद्द कर सेवा समाप्त कर दी गई।
याचिकाकर्ता की दलील
- उसने कहा कि उसकी नियुक्ति 2008 के नियमों के तहत हुई थी, जिनमें यह शर्त नहीं थी कि मोलवी प्रमाणपत्र केवल मान्यता प्राप्त संस्थान से ही होना चाहिए।
- 2012 के नए नियमों में ऐसी शर्त आई, लेकिन 2010 की नियुक्ति पर ये लागू नहीं हो सकते।
- इसलिए उसकी सेवा समाप्त करना अवैध है।
सरकार का पक्ष
- राज्य ने कहा कि जामिया रहमानिया हम्दिया कभी भी बिहार मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त नहीं था।
- इस वजह से वहां से जारी कोई भी प्रमाणपत्र शुरू से ही अमान्य था।
- नियुक्ति फर्जी दस्तावेज़ के आधार पर हुई, इसलिए शिक्षक को कोई सुरक्षा नहीं मिल सकती।
अदालत का निर्णय
अदालत ने माना कि:
- यह निर्विवाद है कि याचिकाकर्ता ने 2005 में जिस संस्थान से प्रमाणपत्र लिया, वह मान्यता प्राप्त नहीं था।
- मान्यता रहित संस्था का प्रमाणपत्र नियुक्ति के लिए वैध नहीं हो सकता।
- इसलिए याचिकाकर्ता की नियुक्ति ही गलत आधार पर हुई थी और सेवा समाप्त करने का आदेश सही है।
इस प्रकार अदालत ने याचिका को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला शिक्षा व्यवस्था और भर्ती प्रक्रिया दोनों के लिए अहम है। इसके प्रभाव इस प्रकार हैं:
- फर्जी या अमान्य प्रमाणपत्र पर नियुक्ति सुरक्षित नहीं रहेगी।
- भले ही व्यक्ति कई वर्षों तक सेवा कर चुका हो, अगर उसकी नियुक्ति गलत प्रमाणपत्र पर हुई है तो वह न्यायालय में टिक नहीं पाएगी।
- सरकार और शिक्षा विभाग के लिए यह संदेश है कि केवल मान्यता प्राप्त संस्थानों से जारी प्रमाणपत्र ही स्वीकार किए जाएं।
- अभ्यर्थियों के लिए यह चेतावनी है कि मान्यता रहित संस्थानों के प्रमाणपत्र के सहारे नौकरी पाने का प्रयास न करें, वरना नौकरी छिन सकती है और आपराधिक मुकदमा भी हो सकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या मान्यता रहित संस्थान से मिला मोलवी प्रमाणपत्र नियुक्ति के लिए वैध है?
❌ नहीं। यह शुरू से ही अमान्य है। - क्या 29.11.2019 का सेवा समाप्ति आदेश अवैध है?
❌ नहीं। आदेश पूरी तरह से वैध है। - क्या 9 साल की सेवा याचिकाकर्ता को बचा सकती है?
❌ नहीं। फर्जी दस्तावेज़ से मिली नौकरी किसी भी समय रद्द की जा सकती है।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 7422 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(1) PLJR 787
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
(मौखिक निर्णय दिनांक 09.02.2021)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: अधिवक्ता पीयूष कुमार
- राज्य की ओर से: अधिवक्ता जितेंद्र कुमार राय (SC-13)
निर्णय का लिंक
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