पटना हाई कोर्ट का फैसला: एनडीपीएस एक्ट में दोषसिद्धि रद्द, निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांत पर ज़ोर — 2021

पटना हाई कोर्ट का फैसला: एनडीपीएस एक्ट में दोषसिद्धि रद्द, निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांत पर ज़ोर — 2021

निर्णय की सरल व्याख्या

फरवरी 2021 में पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया जिसमें एनडीपीएस एक्ट (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985) के तहत दी गई दोषसिद्धि को रद्द कर दिया गया। अदालत ने कहा कि निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) हर व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है और अगर जाँच व कानूनी प्रक्रिया में गंभीर खामियां हों, तो दोषसिद्धि टिक नहीं सकती।

मामला बक्सर ज़िले का था। पुलिस ने मार्च 2014 में छापेमारी कर आरोपी के घर से लगभग 30 किलो गांजा बरामद करने का दावा किया। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को धारा 20(b)(ii)(C) (व्यावसायिक मात्रा में गांजा रखने) और धारा 27(A) (गैरकानूनी व्यापार को बढ़ावा देने या अपराधियों को शरण देने) के तहत दोषी ठहराया और 10 साल की कठोर कारावास व 1-1 लाख रुपये जुर्माने की सज़ा सुनाई।

आरोपी ने इस सज़ा को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि इस मामले में कई गंभीर खामियां थीं:

  1. गवाहों का समर्थन न करना: जब्ती सूची पर हस्ताक्षर करने वाले स्वतंत्र गवाहों (PW-1, PW-2, PW-3) ने अदालत में बयान दिया कि वे छापेमारी के दौरान मौजूद नहीं थे। उन्हें थाने में खाली कागज़ पर जबरन हस्ताक्षर करवाए गए। अभियोजन पक्ष ने इन्हें “शत्रुतापूर्ण गवाह” (Hostile) भी घोषित नहीं किया, इसलिए इनके बयान अभियोजन के खिलाफ सबूत बन गए।
  2. मैजिस्ट्रेट का बयान न आना: पुलिस ने कहा कि छापेमारी मैजिस्ट्रेट (सर्किल ऑफिसर) की मौजूदगी में हुई, लेकिन अभियोजन ने उस अधिकारी को गवाह के रूप में पेश ही नहीं किया। इससे पूरी कहानी कमजोर हो गई।
  3. मकान की मालिकाना हक़ साबित नहीं हुआ: जांच अधिकारी ने स्वीकार किया कि उसने यह सत्यापित नहीं किया कि बरामदगी जिस मकान से हुई, वह वास्तव में आरोपी का ही था।
  4. धारा 42 एनडीपीएस एक्ट का उल्लंघन: कानून के अनुसार, पुलिस को गुप्त सूचना लिखित रूप में दर्ज करनी चाहिए और अपने वरिष्ठ अधिकारी को सूचित करना चाहिए। इस मामले में ऐसा कोई सबूत नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कहा है कि धारा 42 की पूरी अनदेखी दोषसिद्धि को अमान्य बना देती है।
  5. जांच में पक्षपात: इस मामले में जिसने एफआईआर दर्ज की, वही जांच अधिकारी भी बना। अदालत ने कहा कि यह स्थिति निष्पक्ष जांच पर सवाल खड़े करती है, क्योंकि शिकायतकर्ता और जांचकर्ता एक ही व्यक्ति हो तो पक्षपात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
  6. नमूने भेजने में देरी: जब्त गांजे के नमूने लगभग दो महीने बाद फॉरेंसिक लैब भेजे गए। इस देरी से नमूनों से छेड़छाड़ की आशंका बढ़ गई।
  7. धारा 27(A) में दोषसिद्धि ग़लत: अदालत ने पाया कि कोई सबूत नहीं था कि आरोपी ने मादक पदार्थों के अवैध धंधे को वित्तीय सहायता दी या अपराधियों को शरण दी। इस आधार पर धारा 27(A) के तहत दोषसिद्धि पूरी तरह अवैध थी।

इन सब कारणों से हाई कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी की संलिप्तता साबित करने में पूरी तरह नाकाम रहा। ट्रायल कोर्ट ने जिन पहलुओं को नज़रअंदाज़ किया, वही इस मामले में सबसे अहम थे।

इसलिए पटना हाई कोर्ट ने दोषसिद्धि और सज़ा को रद्द करते हुए आरोपी को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

  • आरोपियों के लिए: यह फैसला बताता है कि गंभीर अपराधों में भी अभियोजन को सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी। केवल बरामदगी दिखाना पर्याप्त नहीं है।
  • पुलिस और अभियोजन के लिए: यह संदेश है कि जाँच निष्पक्ष और नियमों के अनुरूप होनी चाहिए। गुप्त सूचना का रिकॉर्ड रखना, स्वतंत्र गवाहों को शामिल करना और समय पर नमूने भेजना बेहद ज़रूरी है।
  • जनता और न्यायपालिका के लिए: यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निष्पक्ष सुनवाई के महत्व को दोहराता है। अदालतों का दायित्व है कि वे न्याय के हर पहलू की रक्षा करें।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या गवाहों के बयान अभियोजन के खिलाफ मान्य हैं?
    • निर्णय: हाँ।
    • कारण: जब अभियोजन ने गवाहों को शत्रुतापूर्ण घोषित नहीं किया, तो उनके बयान अभियोजन के खिलाफ सबूत बने।
  • क्या धारा 42 एनडीपीएस एक्ट का पालन अनिवार्य है?
    • निर्णय: हाँ।
    • कारण: पूरी तरह पालन न करना दोषसिद्धि को अवैध बना देता है।
  • क्या शिकायतकर्ता और जांच अधिकारी एक ही व्यक्ति हो सकता है?
    • निर्णय: नहीं।
    • कारण: इससे जांच निष्पक्ष नहीं मानी जाएगी।
  • क्या धारा 27(A) के तहत दोषसिद्धि उचित थी?
    • निर्णय: नहीं।
    • कारण: कोई सबूत नहीं कि आरोपी ने धंधे को वित्तीय सहायता दी या अपराधियों को शरण दी।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Mohd. Alam Khan v. Narcotics Control Bureau, 1996 Cri LJ 2001
  • Karnail Singh v. State of Haryana, (2009) 8 SCC 539

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Raja Ram v. State of Rajasthan, (2005) 5 SCC 272
  • Mukhtiar Ahmed Ansari v. State (NCT of Delhi), (2005) 5 SCC 258
  • Md. Alam Khan v. Narcotics Control Bureau, 1996 Cri LJ 2001
  • Karnail Singh v. State of Haryana, (2009) 8 SCC 539

मामले का शीर्षक

Sanjay Kamkar @ Sanjay Kumar v. The State of Bihar

केस नंबर

Criminal Appeal (SJ) No. 1479 of 2019

उद्धरण (Citation)

2021(1) PLJR 793

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति बीरेन्द्र कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • अपीलकर्ता की ओर से: श्री सदा नंद राय, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से: श्री ज़ेयाउल होदा, एपीपी

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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