पटना हाई कोर्ट का फैसला: बीडीओ की निलंबन आदेश रद्द — 2021

पटना हाई कोर्ट का फैसला: बीडीओ की निलंबन आदेश रद्द — 2021

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने 18 फरवरी 2021 को एक महत्वपूर्ण फैसला दिया जिसमें एक प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) के निलंबन आदेश को रद्द कर दिया गया। यह अधिकारी भोजपुर जिले के चरपोखरी प्रखंड में पदस्थापित थे।

2017 में उन पर ₹25,000 रिश्वत लेने का आरोप लगा और निगरानी (Vigilance) विभाग ने मामला दर्ज कर गिरफ्तारी की। गिरफ्तारी के बाद अधिकारी को निलंबित किया गया। बाद में जमानत मिलने पर उन्होंने 23 मार्च 2017 को दोबारा ज्वाइन किया और निलंबन आदेश रद्द कर दिया गया।

लेकिन 11 मई 2017 को फिर से निलंबन का आदेश जारी किया गया, और यह आदेश पिछली तारीख से (retrospective effect) लागू किया गया। इस बार निलंबन का आधार सिर्फ यह बताया गया कि उन पर आपराधिक मुकदमा लंबित है।

अधिकारी ने इस निलंबन को हाई कोर्ट में चुनौती दी। उनका तर्क था कि यह आदेश मनमाना है, नियमों के तहत उचित कारण नहीं है और पिछली तारीख से निलंबन लागू करना कानूनन गलत है।

अदालत ने बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियमावली, 2005 की धारा 9(1) का अध्ययन किया। इसमें स्पष्ट है कि निलंबन सिर्फ तीन स्थितियों में किया जा सकता है:

  1. जब विभागीय कार्यवाही लंबित हो या विचाराधीन हो।
  2. जब सरकारी सेवक की गतिविधि राज्य की सुरक्षा के खिलाफ हो।
  3. जब किसी आपराधिक मामले की जांच या ट्रायल चल रहा हो और सक्षम प्राधिकारी “लोकहित” (public interest) में निलंबन आवश्यक माने।

अदालत ने पाया कि इस मामले में इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं हुई थी। न तो कोई विभागीय कार्यवाही लंबित थी, न ही राज्य की सुरक्षा का सवाल था, और न ही आदेश में यह लिखा गया कि यह निलंबन “लोकहित” में है।

इसलिए, अदालत ने इसे मनमाना करार दिया और निलंबन आदेश को रद्द करते हुए अधिकारी को सभी रोकी गई सुविधाओं और वेतन के साथ बहाल करने का आदेश दिया।

हालांकि, 17 नवंबर 2020 को विभाग ने खुद ही निलंबन आदेश वापस ले लिया था, लेकिन अधिकारी को काम और वेतन नहीं दिया गया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि काम देना विभाग का अधिकार है, लेकिन वेतन अधिकारी का हक है और इसे देना ही होगा।

अंत में अदालत ने यह भी कहा कि पहले जो ₹1,000 का जुर्माना राज्य पर लगाया गया था (समय पर जवाब दाखिल न करने के लिए), उसे वापस लिया जाता है क्योंकि बाद में राज्य ने उचित स्पष्टीकरण दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

  • सरकारी कर्मचारियों के लिए: यह फैसला बताता है कि निलंबन आदेश मनमाने ढंग से नहीं हो सकते। हर आदेश में नियमों का पालन और स्पष्ट कारण होना चाहिए।
  • सरकारी विभागों के लिए: निलंबन आदेश हमेशा “speaking order” होना चाहिए यानी उसमें साफ लिखा होना चाहिए कि क्यों निलंबन जरूरी है।
  • आम जनता के लिए: यह निर्णय दर्शाता है कि अदालतें सरकारी कार्रवाई की गहन जांच करती हैं ताकि कर्मचारियों के अधिकार सुरक्षित रहें।
  • निगरानी और भ्रष्टाचार निरोधक मामलों के लिए: केवल मुकदमा लंबित होने से निलंबन अपने आप सही नहीं हो जाता, जब तक कि लोकहित में आवश्यकता साबित न की जाए।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • मुद्दा 1: क्या सिर्फ आपराधिक मामला लंबित होने से कर्मचारी को निलंबित किया जा सकता है?
    • निर्णय: नहीं, जब तक आदेश में यह न लिखा हो कि यह लोकहित में जरूरी है।
  • मुद्दा 2: क्या पिछली तारीख से निलंबन आदेश लागू किया जा सकता है?
    • निर्णय: नहीं, यह कानूनन गलत है।
  • मुद्दा 3: क्या यह निलंबन आदेश मनमाना था?
    • निर्णय: हाँ, क्योंकि इसमें न तो विभागीय कार्यवाही, न सुरक्षा का मुद्दा और न ही लोकहित का उल्लेख था।
  • मुद्दा 4: क्या अधिकारी वेतन और रोकी गई सुविधाओं के हकदार हैं?
    • निर्णय: हाँ, अदालत ने आदेश दिया कि सभी बकाया वेतन और लाभ दिए जाएँ।
  • मुद्दा 5: क्या राज्य पर लगाया गया ₹1,000 का जुर्माना बनेगा?
    • निर्णय: नहीं, स्पष्टीकरण स्वीकार कर जुर्माना हटा दिया गया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • CWJC No. 8229 of 2014 (पटना हाई कोर्ट) — इसमें कहा गया था कि निलंबन आदेश में “लोकहित” का आधार दर्ज होना जरूरी है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • CWJC No. 8229 of 2014 (पटना हाई कोर्ट) — वही निर्णय लागू किया गया।

मामले का शीर्षक

याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (नाम गोपनीय)

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 21815 of 2018

उद्धरण (Citation)

2021(1) PLJR 821

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति बिरेंद्र कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: मोहम्मद अनीसुर रहमान
  • प्रतिवादी / राज्य की ओर से: श्री विकास कुमार, SC-11

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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