निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने 2021 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि नियमितीकरण (regularisation) से पहले की दैनिक वेतन सेवा को पूरी तरह न सही, लेकिन आंशिक रूप से पेंशन के लिए गिना जाएगा।
मामला उन कर्मचारियों से जुड़ा था जो सड़क निर्माण विभाग में वर्ष 1984 से दैनिक वेतन पर काम कर रहे थे। इनकी नियुक्ति उस समय हुई जब सरकार ने क्लास-III और क्लास-IV पदों पर नियुक्ति पर रोक लगा रखी थी। इन कर्मचारियों ने लगातार काम किया और बाद में 2013 में जाकर इनकी सेवाओं को नियमित किया गया।
लेकिन जब ये लोग रिटायर हुए तो इन्हें पेंशन देने से मना कर दिया गया। कारण यह बताया गया कि दैनिक वेतन पर किया गया काम “सरकारी सेवा” नहीं माना जाएगा और 2006 की नई योजना के तहत नियमित होने के बाद की ही सेवा गिनी जाएगी।
कर्मचारियों ने इस निर्णय को अदालत में चुनौती दी। उनका कहना था कि वे 1985 से पहले काम कर रहे थे और सरकार की नीतियों के मुताबिक उन्हें प्राथमिकता और लाभ मिलना चाहिए। अदालत ने माना कि सरकार ने जानबूझकर नियमितीकरण में देरी की और फिर पेंशन का लाभ देने से इनकार किया। यह सरकार का “अपनी गलती का फायदा उठाना” है, जो कानूनन स्वीकार्य नहीं है।
अदालत ने कहा कि पूरी सेवा को गिनना जरूरी नहीं है, लेकिन कम से कम 10 साल की पिछली सेवा पेंशन के लिए मान्य की जाएगी। इस प्रकार कर्मचारियों को आंशिक राहत मिली और उनका पेंशन का अधिकार सुरक्षित हुआ।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- यह फैसला उन हजारों कर्मचारियों के लिए राहतभरा है जो लंबे समय तक दैनिक वेतन पर काम करने के बाद नियमित हुए।
- अदालत ने साफ किया कि पेंशन “सरकारी दया” नहीं है बल्कि एक सामाजिक सुरक्षा का अधिकार है।
- सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि जब कोई नीति बनाई जाती है तो उसका समान रूप से पालन हो, न कि चुन-चुनकर किसी को लाभ दिया जाए।
- इस फैसले से यह संदेश गया कि यदि सरकार देर से नियमित करती है तो वह बाद में यह नहीं कह सकती कि पुरानी सेवा का कोई मूल्य नहीं है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या नियमितीकरण से पहले की दैनिक वेतन सेवा पेंशन में गिनी जा सकती है?
- निर्णय: हाँ, लेकिन सीमित रूप में। अदालत ने 10 वर्ष तक की सेवा गिनने का आदेश दिया।
- क्या सरकार 2006 की नई योजना या नई पेंशन योजना का सहारा लेकर पुराने कर्मचारियों को पेंशन से वंचित कर सकती है?
- निर्णय: नहीं। अदालत ने कहा कि सरकार अपनी देरी का फायदा नहीं उठा सकती।
- क्या समान परिस्थितियों में काम करने वाले कर्मचारियों को समान लाभ मिलना चाहिए?
- निर्णय: हाँ। यदि कुछ कर्मचारियों को पेंशन लाभ मिला है तो वैसे ही कर्मचारियों को उससे वंचित नहीं किया जा सकता।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Bhagwan Singh बनाम बिहार राज्य, 2014 (4) PLJR 229
- Secretary, State of Karnataka v. Umadevi (3), (2006) 4 SCC 1
- RN Gosain v. Yashpal Dhir, AIR 1993 SC 352
- Union of India v. Wg. Cdr. Subrata Das, AIR 2019 SC (Supp) 199
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Direct Recruit Class-II Engineering Officers’ Association v. State of Maharashtra, AIR 1990 SC 1607
- Netram Sahu v. State of Chhattisgarh, Civil Appeal No. 1254 of 2018
- Amarkant Rai
मामले का शीर्षक
Bimal Kumar Roy & Ors. v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 18826 of 2018
उद्धरण (Citation)
2021(1) PLJR 823
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अजय कुमार चक्रवर्ती, अधिवक्ता
- प्रतिवादी-राज्य की ओर से: श्री मनोज कुमार अंबष्ठा, स्थायी अधिवक्ता-26
निर्णय का लिंक
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