निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला पति द्वारा दायर तलाक की याचिका से जुड़ा है, जिसमें उसने दावा किया था कि पत्नी ने उसके साथ “मानसिक क्रूरता” की है और विवाह के कुछ ही समय बाद उसे “परित्याग” कर दिया।
दोनों की शादी जुलाई 2003 में हिंदू रीति-रिवाज से हुई थी। पति ने 2005 में पारिवारिक न्यायालय, कटिहार में विवाह विच्छेद (तलाक) की अर्जी दाखिल की। उसका कहना था कि पत्नी ने घर पर झगड़े किए, उसके बूढ़े माता-पिता और दिव्यांग भाई का अपमान किया और 2005 से लगातार अलग रह रही है। उसने यह भी तर्क दिया कि अब विवाह पूरी तरह से टूट चुका है और साथ रहना असंभव है।
पत्नी ने इन आरोपों को नकारा। उसका कहना था कि पति और ससुराल वालों ने शादी के शुरुआती समय में उसके साथ गलत व्यवहार किया। उसने यह भी बताया कि पति ने पहले पत्नी के साथ रहने के लिए पुनःस्थापन (Restitution of Conjugal Rights) का मुकदमा डाला था, लेकिन बाद में खुद ही वापस ले लिया।
निचली अदालत ने पति की तलाक याचिका खारिज कर दी थी। पति ने इसके खिलाफ पटना हाई कोर्ट में अपील दायर की।
हाई कोर्ट ने सबूतों का मूल्यांकन करते हुए पाया कि—
- पति के गवाह ज्यादातर दोस्त और दूर के रिश्तेदार थे, जो घर पर रहने वाले सदस्य नहीं थे।
- गवाहों के बयान में समय और स्थान को लेकर विरोधाभास थे।
- गंभीर और ठोस घटनाएँ पेश नहीं की गईं जो “मानसिक क्रूरता” के दायरे में आती हों।
इसी तरह, “परित्याग” साबित करने के लिए यह दिखाना जरूरी था कि पत्नी लगातार कम-से-कम दो साल तक पति को छोड़कर रही हो और उसका इरादा पति के साथ संबंध खत्म करने का हो। लेकिन पति ने इस तरह का स्पष्ट सबूत नहीं दिया।
जहाँ तक “विवाह के अपूरणीय रूप से टूट जाने” (Irretrievable Breakdown of Marriage) की बात है, कोर्ट ने साफ किया कि यह अपने आप में तलाक का आधार नहीं है। केवल उच्चतम न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत यह अधिकार है कि वह केवल इस आधार पर विवाह को समाप्त कर सकता है।
इसलिए, हाई कोर्ट ने पति की अपील खारिज कर दी और पारिवारिक न्यायालय का फैसला बरकरार रखा।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- मानसिक क्रूरता का मानक: केवल छोटे-छोटे झगड़े या सामान्य वैवाहिक तनाव को अदालत मानसिक क्रूरता नहीं मानती। इसके लिए गंभीर और लगातार उत्पीड़न साबित करना आवश्यक है।
- परित्याग का प्रमाण: यह दिखाना जरूरी है कि जीवनसाथी लगातार दो साल तक बिना उचित कारण और बिना सहमति के साथ छोड़कर रहा है।
- विवाह टूटने का आधार: केवल यह कहना कि शादी टूट चुकी है, तलाक के लिए पर्याप्त नहीं है। इसके लिए कानूनी आधार (जैसे क्रूरता, परित्याग, व्यभिचार आदि) साबित करना जरूरी है।
- नीति पर असर: यह निर्णय बताता है कि पारिवारिक विवादों में सबूत और सटीक दलीलें बहुत अहम हैं। साथ ही यह भी कि परिवारिक अदालतों में शुरुआती दौर में ही समझौता और मध्यस्थता का प्रयास जरूरी है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या मानसिक क्रूरता साबित हुई?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: सबूत विरोधाभासी, गवाह प्रत्यक्षदर्शी नहीं थे, गंभीर और लगातार उत्पीड़न का प्रमाण नहीं।
- क्या परित्याग साबित हुआ?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: दो साल की निरंतर अलगाव की अवधि और पत्नी का इरादा साबित नहीं हुआ।
- क्या विवाह टूटने को स्वतंत्र आधार माना जा सकता है?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: हिंदू विवाह अधिनियम में यह आधार नहीं है। केवल उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 142 के तहत ऐसा कर सकता है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Samar Ghosh v. Jaya Ghosh, (2007) 4 SCC 511 — मानसिक क्रूरता की परिभाषा समझाने के लिए।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- A. Jayachandra v. Aneel Kaur, AIR 2005 SC 534 — मानसिक क्रूरता के मानक।
- K. Srinivas Rao v. D.A. Deepa, (2013) 5 SCC 226 — झूठे आरोप और बार-बार शिकायतें मानसिक क्रूरता मानी जा सकती हैं।
- Savitri Pandey v. Prem Chandra Pandey, (2002) 2 SCC 73 — परित्याग के तत्व: अलग रहना, इरादा, बिना सहमति और बिना उचित कारण।
- Naveen Kohli v. Neelu Kohli, (2006) 4 SCC 558 — विवाह टूटने के सिद्धांत पर चर्चा।
- Anil Kumar Jain v. Maya Jain, (2009) 10 SCC 415 — केवल उच्चतम न्यायालय ही अनुच्छेद 142 के तहत विवाह टूटने के आधार पर तलाक दे सकता है।
मामले का शीर्षक
Subhash Chandra Jha v. Archana (Miscellaneous Appeal) — Patna High Court
केस नंबर
Miscellaneous Appeal No. 618 of 2013 (Matrimonial Case No. 53 of 2005)
उद्धरण (Citation)
2021(1) PLJR 883
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरविंद श्रीवास्तव
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
अपीलकर्ता (पति) की ओर से: श्री सिद्धार्थ प्रसाद
प्रत्यर्थी (पत्नी) की ओर से: नाम उपलब्ध नहीं
निर्णय का लिंक
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