पटना उच्च न्यायालय : कोविड-19 के कारण देरी पर निर्माण अनुबंध की समाप्ति रद्द

पटना उच्च न्यायालय : कोविड-19 के कारण देरी पर निर्माण अनुबंध की समाप्ति रद्द

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला एक निर्माण कंपनी और बिहार सरकार के भवन निर्माण विभाग के बीच हुए अनुबंध से जुड़ा है। अनुबंध का विषय था विधायक आवास (Vidhayak Awasan) परिसर का निर्माण, बोरिंग रोड, पटना

पृष्ठभूमि:

  • जून 2017 में अनुबंध हुआ।
  • कार्य पूरा करने की समय-सीमा दो वर्ष (मई 2019) तय थी।
  • लेकिन काम समय पर पूरा नहीं हो पाया।

देरी के मुख्य कारण:

  1. निर्माण स्थल पर 80% तक अतिक्रमण।
  2. पेड़ों की मौजूदगी, जिन्हें हटाना जरूरी था।
  3. भूमि का चिन्हांकन (demarcation) न होना और अधूरी नक्शानवीसी (drawings)।
  4. भूमिगत बिजली की तारें और पानी की पाइपलाइन।
  5. सरकारी नीतिगत बदलाव – नोटबंदी, रेत की कमी, जीएसटी लागू होना।
  6. कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन।

विभाग की कार्रवाई:
जुलाई 2020 में विभाग ने ठेकेदार को कम प्रगति (लगभग 23% कार्य पूरा) बताते हुए अनुबंध समाप्त कर दिया।

निर्माण कंपनी का पक्ष:

  • अनुबंध की धारा 14 के अनुसार, अनुबंध रद्द करने से पहले स्पष्ट कारण बताकर शो-कॉज नोटिस देना जरूरी था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
  • कोविड-19 जैसी अप्रत्याशित परिस्थितियों को नजरअंदाज कर अनुबंध खत्म किया गया।
  • देरी का बड़ा कारण सरकारी विभाग की लापरवाही थी, जैसे – साइट साफ न करना, समय पर नक्शे न देना, भुगतान में देरी।
  • यदि नया टेंडर निकाला जाएगा, तो सार्वजनिक धन की बर्बादी होगी और लागत बढ़ेगी।

राज्य सरकार का पक्ष:

  • ठेकेदार को कई अवसर दिए गए, लेकिन काम की रफ्तार बहुत धीमी थी।
  • जून 2020 में शो-कॉज नोटिस जारी किया गया था।
  • तीन साल में सिर्फ 23% कार्य पूरा हुआ।

न्यायालय का निष्कर्ष:
माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने अनुबंध समाप्ति आदेश को रद्द कर दिया।

मुख्य कारण:

  1. प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: जारी नोटिस पर्याप्त नहीं था। उसमें यह साफ नहीं लिखा था कि अनुबंध समाप्त किया जाएगा, जिससे ठेकेदार को उचित जवाब देने का अवसर नहीं मिला।
  2. स्वतंत्र दिमाग से निर्णय नहीं: अनुबंध समाप्त करने का आदेश कार्यपालक अभियंता ने केवल उच्चाधिकारियों (मुख्य अभियंता और अधीक्षण अभियंता) के निर्देश पर जारी किया, बिना अपनी स्वतंत्र राय बनाए।

न्यायालय ने जिन फैसलों का हवाला दिया:

  • Whirlpool Corporation v. Registrar of Trademarks (1998) – वैकल्पिक उपाय होने पर भी यदि प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हो तो सीधे उच्च न्यायालय में याचिका हो सकती है।
  • Popcorn Entertainment v. CIDCO (2007) – बिना उचित नोटिस के अनुबंध समाप्ति अमान्य।
  • Gorkha Security Services v. Govt. of NCT of Delhi (2014) – शो-कॉज नोटिस में आरोप और संभावित दंड दोनों स्पष्ट लिखना जरूरी है।

अंतिम निर्णय:

  • 02.07.2020 का अनुबंध समाप्ति आदेश निरस्त कर दिया गया।
  • ठेकेदार को अधिकार दिया गया कि वह 12 महीने का अतिरिक्त समय माँगने हेतु आवेदन करे।
  • विभाग को आदेश दिया गया कि वह यह आवेदन चार सप्ताह में निपटाए और कोविड-19 परिस्थितियों व सार्वजनिक धन की बचत पर विचार करे।

निर्णय का महत्व और प्रभाव

  • प्राकृतिक न्याय की पुष्टि: कोई भी सरकारी विभाग अनुबंध खत्म करने से पहले स्पष्ट नोटिस दे और जवाब सुनने का अवसर प्रदान करे।
  • कोविड-19 का प्रभाव: महामारी को अदालत ने देरी का वैध कारण माना।
  • सार्वजनिक धन की बचत: नया ठेका देने पर लागत बढ़ सकती थी। इसलिए अदालत ने ठेकेदार को काम पूरा करने का मौका देने की बात कही।
  • न्यायिक दखल: सरकारी अनुबंधों में भी यदि प्रक्रिया न्यायसंगत न हो, तो उच्च न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या अनुबंध की समाप्ति धारा 14 के अनुसार वैध थी?
    ❌ नहीं, क्योंकि उचित नोटिस नहीं दिया गया।
  • क्या यह प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन था?
    ✅ हाँ, ठेकेदार को पर्याप्त अवसर नहीं दिया गया।
  • क्या कोविड-19 को अतिरिक्त समय का आधार माना जा सकता है?
    ✅ हाँ, अदालत ने अतिरिक्त समय के लिए आवेदन करने की अनुमति दी।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Kems Services Pvt. Ltd. v. SBPDCL (CWJC No. 10091 of 2017)
  • B.K. Enterprises v. State of Bihar (2008) 1 PLJR 473
  • Union of India v. Tantia Construction Pvt. Ltd. (2011) 5 SCC 697
  • Whirlpool Corporation v. Registrar of Trademarks (1998) 8 SCC 1
  • Popcorn Entertainment v. CIDCO (2007) 9 SCC 593

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Gorkha Security Services v. Govt. of NCT of Delhi (2014) 9 SCC 105
  • Commissioner of Police v. Gordhandas Bhanji (AIR 1952 SC 16)
  • Dirghayu Mahavir Diagnostic v. State of Bihar (LPA No. 1288 of 2013)

मामले का शीर्षक

Kashish Developers Limited बनाम State of Bihar & Ors.

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 7234 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 20

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह

(मौखिक निर्णय दिनांक 28.01.2021)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री पी.के. शाहि, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री रंजीत कुमार; श्री योगेश कुमार
  • राज्य की ओर से: श्री उदय शंकर शरण सिंह, GP-19; श्री आर.के. चंद्रम, AC to GP-19

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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