पटना हाईकोर्ट : बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ वन-टाइम सेटलमेंट और ब्याज विवाद पर फैसला (2021)

पटना हाईकोर्ट : बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ वन-टाइम सेटलमेंट और ब्याज विवाद पर फैसला (2021)

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला M/s Naturals Dairy Pvt. Ltd., पटना स्थित एक कंपनी से जुड़ा था। इस कंपनी ने वर्ष 2008 में बैंक ऑफ बड़ौदा से डेयरी उत्पाद (दूध, घी, पनीर, दही, आइसक्रीम आदि) बनाने के लिए फैक्ट्री स्थापित करने हेतु ऋण लिया था। बाद में यह खाता अनियमित हो गया और दिसंबर 2010 में इसे NPA (Non-Performing Asset) घोषित कर दिया गया। बैंक ने वसूली के लिए SARFAESI Act, 2002 के तहत कार्रवाई शुरू की, जिससे कई बार मुकदमेबाजी हुई।

2019 में कंपनी ने बैंक से वन-टाइम सेटलमेंट (OTS) का प्रस्ताव दिया और ₹2.40 करोड़ की राशि देकर खाता निपटाने पर सहमति जताई। बैंक ने 24.09.2019 को इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। शर्त यह थी कि पूरी राशि तुरंत (15 दिन के भीतर यानी 30.09.2019 तक) जमा करनी होगी। यह भी लिखा गया था कि यदि देरी हुई तो 13.40% वार्षिक ब्याज बकाया राशि पर लगेगा।

लेकिन कंपनी ने तय समय पर पूरी राशि जमा नहीं की। किस्तों में भुगतान करते हुए उसने पूरा ₹2.40 करोड़ केवल 30.12.2019 तक जमा किया। बैंक ने इसलिए ₹4.83 लाख अतिरिक्त ब्याज वसूला।

कंपनी का तर्क था कि बैंक की Baroda MSME OTS Scheme (09.07.2019) के अनुसार उसे तीन माह का समय बिना ब्याज के मिलना चाहिए था। चूंकि उसने 30.12.2019 तक पूरी राशि चुका दी, इसलिए ब्याज वसूलना गलत है।

पटना हाईकोर्ट ने तथ्यों की जांच के बाद कहा:

  • कंपनी ने अपने OTS प्रस्ताव (29.08.2019) में खुद यह लिखा था कि मंजूरी मिलने पर ₹2.40 करोड़ तुरंत जमा करेगी।
  • बैंक की स्वीकृति पत्र (24.09.2019) में भी यही शर्त थी और 15 दिन की अतिरिक्त मोहलत दी गई थी।
  • कंपनी ने इस स्वीकृति पत्र को कभी चुनौती नहीं दी।
  • जब शर्तें स्पष्ट थीं और कंपनी ने उन्हें मान लिया था, तो बाद में MSME OTS स्कीम का हवाला देकर बचने का हक नहीं है।

अदालत ने यह भी कहा कि कंपनी लगातार भुगतान में चूक करती रही है और मुकदमों का सहारा लेकर भुगतान टालती रही। इसलिए बैंक द्वारा ब्याज लगाना पूरी तरह सही था।

नतीजतन, हाईकोर्ट ने कंपनी की याचिका खारिज कर दी और बैंक का रुख सही माना।

सरल भाषा में, अदालत ने कहा: “अगर आप OTS में तुरंत एकमुश्त भुगतान का वादा करते हैं लेकिन समय पर नहीं करते, तो बैंक को ब्याज लेने का हक है। समझौते की शर्तें माननी ही होंगी।”

निर्णय का महत्व और प्रभाव

  • उधारकर्ताओं के लिए: यह केस चेतावनी है कि OTS की शर्तों का सख्ती से पालन करना जरूरी है। देरी से भुगतान करने पर अतिरिक्त दायित्व उठाना पड़ेगा और अदालत मदद नहीं करेगी।
  • बैंकों के लिए: यह फैसला बैंकों की स्थिति मजबूत करता है। अदालतें उन मामलों में बैंक का समर्थन करेंगी जहाँ उधारकर्ता बार-बार डिफॉल्ट करके मुकदमेबाजी करते हैं।
  • व्यापार/उद्योग के लिए: यह फैसला दिखाता है कि वित्तीय समझौते में सद्भावना और समय पर पालन बेहद जरूरी है। डिफॉल्ट से केवल आर्थिक नुकसान नहीं, बल्कि न्यायालय में प्रतिष्ठा भी प्रभावित होती है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या बैंक OTS की रकम देर से जमा करने पर ब्याज ले सकता है?
    • अदालत का निर्णय: हाँ। कंपनी ने 30.09.2019 तक रकम नहीं दी, इसलिए बैंक को 01.10.2019 से ब्याज लेने का अधिकार है।
  • क्या कंपनी MSME OTS स्कीम का हवाला देकर ब्याज से बच सकती है?
    • अदालत का निर्णय: नहीं। कंपनी का OTS प्रस्ताव और स्वीकृति पत्र उस स्कीम के तहत नहीं था, इसलिए स्कीम लागू नहीं होगी।

मामले का शीर्षक

M/s Naturals Dairy (P) Ltd. बनाम The Bank of Baroda & Ors.

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 5858 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 57

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह (निर्णय दिनांक 05-03-2021)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संजय सिंह, श्री निखिल कुमार अग्रवाल, सुश्री अदिति हंसरिया
  • प्रतिवादी (बैंक) की ओर से: श्री विवेक प्रसाद

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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