निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एनडीपीएस (NDPS) कानून के तहत दोषी ठहराए गए दो व्यक्तियों की सजा रद्द कर दी और उन्हें बरी कर दिया। निचली अदालत ने दोनों को 12 साल की कठोर कैद और ₹1 लाख जुर्माना की सजा दी थी, लेकिन हाई कोर्ट ने पाया कि मामले में गंभीर प्रक्रियात्मक त्रुटियां और गवाहों की गवाही में विरोधाभास मौजूद हैं।
पृष्ठभूमि
28 फरवरी 2013 की रात गोपालगंज जिले के विजयेपुर थाना पुलिस को सूचना मिली कि एक सफेद इंडिगो कार में भारी मात्रा में गांजा ले जाया जा रहा है। पुलिस ने कार को मझबेलिया बाजार के पास रोका और उसमें से दो बोरे और एक पॉलिथीन बैग बरामद किए। पुलिस का दावा था कि कुल 66 किलो गांजा मिला।
पुलिस ने नमूना लिया और जप्ती सूची तैयार की। 2016 में ट्रायल कोर्ट ने दोनों आरोपियों को धारा 20(b)(ii)(C) NDPS Act के तहत दोषी मानकर 12 साल की कैद और जुर्माने की सजा दी।
अपील में आरोपियों के तर्क
- जप्ती गवाहों की गवाही नहीं कराई गई।
- बरामद गांजा अदालत में कभी प्रस्तुत नहीं किया गया और न ही सुरक्षित रखे जाने का सबूत दिया गया।
- पुलिस गवाहों में विरोधाभास था कि तौल और नमूना कहाँ लिया गया – घटनास्थल पर या थाने में।
- फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) रिपोर्ट अधूरी और अस्पष्ट थी – वजन, सील और परीक्षण विधि का जिक्र नहीं था।
- NDPS Act की धारा 42 और 57 का पालन नहीं हुआ – न तो लिखित सूचना दर्ज हुई और न ही 72 घंटे में वरिष्ठ अधिकारियों को रिपोर्ट दी गई।
राज्य का पक्ष
सरकार की ओर से कहा गया कि जब्ती सूची और एफएसएल रिपोर्ट से बरामदगी सिद्ध होती है और छोटे-मोटे विरोधाभास से पूरा मामला कमजोर नहीं होता।
हाई कोर्ट की राय
हाई कोर्ट ने पाया कि:
- जप्ती गवाहों को पेश नहीं किया गया।
- बरामद गांजा अदालत में प्रस्तुत नहीं हुआ और सुरक्षित रखे जाने का कोई सबूत नहीं था।
- पुलिस गवाहों में विरोधाभास था।
- एफएसएल रिपोर्ट अधूरी और अविश्वसनीय थी।
- धारा 42(2) और धारा 57 NDPS Act का अनुपालन बिल्कुल नहीं हुआ।
- ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों से धारा 313 CrPC के तहत सही तरीके से सवाल-जवाब नहीं किया, जिससे प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ।
अंतिम निर्णय
हाई कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा। संदेह का लाभ आरोपियों को देते हुए सजा और दोषसिद्धि रद्द कर दी गई। दोनों को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
आरोपियों के लिए
यह फैसला बताता है कि NDPS कानून के मामलों में कड़ी से कड़ी प्रक्रिया का पालन जरूरी है। यदि जप्ती या सबूतों में कोई कमी है तो आरोपी को संदेह का लाभ मिलेगा।
पुलिस और जांच एजेंसियों के लिए
यह आदेश सख्त संदेश है कि एनडीपीएस मामलों में स्टेशन डायरी एंट्री, जब्ती सामग्री की पेशी, सुरक्षित अभिरक्षा, और नमूना लेने की प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है।
न्यायपालिका के लिए
कोर्ट ने दोहराया कि धारा 313 CrPC के तहत आरोपियों से सही सवाल पूछना और उन्हें जवाब का मौका देना न्याय का मूल सिद्धांत है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या प्रक्रियागत खामियों के बावजूद दोषसिद्धि कायम रह सकती है?
• नहीं। जब्ती और एनडीपीएस कानून की धाराओं का पालन न होने से संदेह पैदा हुआ। - क्या आरोपियों से धारा 313 CrPC के तहत सही पूछताछ हुई?
• नहीं। अदालत ने उचित सवाल नहीं पूछे, जो प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है। - अंतिम राहत क्या दी गई?
• दोषसिद्धि और 12 साल की सजा रद्द हुई, आरोपियों को बरी कर दिया गया।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- State of U.P. v. Mohd. Iqram, AIR 2011 SC 2296
- Naval Kishore v. State of Bihar, (2004) 7 SCC 502
- Tara Singh v. State of Punjab, AIR 1951 SC 44
- Kurukshetra University v. Prithvi Singh, 2018 (2) PLJR 177 (SC)
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Ashok v. State of M.P., (2011) 5 SCC 123
- Karnail Singh v. State of Rajasthan, (2000) 7 SCC 632
- Kishan Chand v. State of Haryana, (2013) 2 SCC 502
मामले का शीर्षक
Parshuram Bind & Another v. State of Bihar
केस नंबर
Criminal Appeal (DB) No. 404 of 2016 (Vijayepur P.S. Case No. 28 of 2013, Gopalganj)
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 81
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार सिंह
माननीय न्यायमूर्ति अरविंद श्रीवास्तव
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ताओं की ओर से: श्री अंसुल, श्री अभिनव अशोक, श्री आदित्य पांडे, सुश्री सागरिका, श्री नवनीत कुमार
- राज्य की ओर से: श्रीमती शशि बाला वर्मा, APP
निर्णय का लिंक
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