निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने 10 दिसंबर 2024 को एक अहम फैसला दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि किसी सिविल डिक्री (अदालत का आदेश) को लागू करने की सीमा अवधि (limitation) कब से गिनी जाएगी।
मामला यह था कि ट्रायल कोर्ट ने जनवरी 1998 में एक पक्ष के खिलाफ ex parte डिक्री (एकतरफा आदेश) पारित किया था। इसके बाद उस आदेश को चुनौती देने के लिए विपक्षी पक्ष ने कई कदम उठाए—Order IX Rule 13 CPC के तहत डिक्री को रद्द करने की याचिका, जिला न्यायाधीश के पास अपील, और फिर हाईकोर्ट में रिवीजन। यह सिलसिला कई साल चला और आखिरकार हाईकोर्ट ने 31 अगस्त 2006 को रिवीजन याचिका खारिज कर दी।
डिक्रीधारी (जिसके पक्ष में आदेश था) ने 2018 में डिक्री को लागू करने के लिए execution case दायर किया। दूसरी ओर, खरीददार (याचिकाकर्ता) ने तर्क दिया कि 1998 से 12 साल से ज्यादा हो गए, इसलिए यह केस सीमा अवधि से बाहर (time-barred) है।
मुनसिफ कोर्ट ने दिसंबर 2019 में यह आपत्ति खारिज कर दी। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने अब साफ किया कि मुनसिफ का आदेश सही था।
हाईकोर्ट ने कहा कि सीमा अवधि का नियम आर्टिकल 136, लिमिटेशन एक्ट, 1963 में है। इसमें कहा गया है कि किसी डिक्री को लागू करने के लिए 12 साल का समय है, लेकिन यह समय “जब डिक्री लागू करने योग्य हो” तभी से गिना जाएगा। अगर डिक्री को ऊपरी अदालतों (अपील/रिवीजन) में चुनौती दी गई है और वहां से आदेश पारित हुआ है, तो मूल डिक्री उसी ऊपरी अदालत के आदेश में merge हो जाती है। इसे “डॉक्ट्रिन ऑफ मर्जर” कहा जाता है।
इस मामले में 1998 की डिक्री को चुनौती दी गई और आखिरकार हाईकोर्ट ने 2006 में अंतिम आदेश दिया। इसलिए सीमा अवधि 2006 से शुरू हुई, न कि 1998 से। इस आधार पर 2018 में दायर execution case समय पर था और वैध है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- यह फैसला बताता है कि अगर कोई डिक्री ऊपरी अदालत तक जाती है और वहां से पुष्टि हो जाती है, तो सीमा अवधि वहीं से शुरू होगी।
- आम लोगों के लिए यह राहत की बात है कि अपील या रिवीजन की लंबी प्रक्रिया में समय निकल जाने पर भी, अगर डिक्री अंत में कायम रहती है, तो उसे लागू करने का मौका 12 साल तक मिलता है।
- सरकारी विभागों और राजस्व रिकॉर्ड संभालने वाले अधिकारियों के लिए यह संकेत है कि डिक्री को हल्के में न लें। अगर ऊपरी अदालत ने भी पुष्टि कर दी है, तो डिक्री लागू करने योग्य है।
- दूसरी ओर, यह फैसला उन लोगों को भी चेतावनी देता है जो यह सोचकर इंतजार करते हैं कि समय निकल जाएगा और डिक्री लागू नहीं होगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा: क्या 2018 में दायर किया गया execution case 12 साल की सीमा अवधि से बाहर था?
निर्णय: नहीं। कोर्ट ने कहा कि 2006 के हाईकोर्ट के आदेश से सीमा अवधि शुरू हुई, इसलिए केस वैध था। - मुद्दा: क्या Order IX Rule 13, अपील और रिवीजन की कार्यवाही को “अपील/रिवीजन” मानकर मर्जर लागू किया जा सकता है?
निर्णय: हाँ। कोर्ट ने कहा कि नाम से फर्क नहीं पड़ता, असल में ऊपरी अदालत ने मूल डिक्री की समीक्षा की और उसे बरकरार रखा, इसलिए मर्जर लागू होगा। - मुद्दा: क्या पुराने फैसले, जिनमें कहा गया था कि सीमा अवधि हमेशा मूल डिक्री से गिनी जाएगी, यहाँ लागू होंगे?
निर्णय: नहीं। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट और पटना हाईकोर्ट के बड़े बेंच के फैसलों का सहारा लिया और साफ किया कि इस मामले में सीमा अवधि हाईकोर्ट के 2006 के आदेश से ही शुरू होगी।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Ratan Singh v. Vijay Singh, AIR 2001 SC 469
- Ram Bachan Rai v. Ram Udar Rai, AIR 2006 SC 2248; (2006) 9 SCC 446
- Branch Manager, Central Bank of India v. M/s. A.M. Brothers, 2013 (3) PLJR 807 (Patna)
- Jokhan Rai v. Baikunth Singh, AIR 1987 Pat 133 (Full Bench)
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Kunhayammed v. State of Kerala, (2000) 6 SCC 359
- Shyam Sundar Singh v. Pannalal Jaiswal, (2005) 1 SCC 436
- Ram Murti Choudhary v. Ram Nihora Choudhary, 2016 SCC OnLine Pat 10395; (2017) 2 PLJR 136 (DB)
- पटना हाईकोर्ट का कॉमन ऑर्डर दिनांक 31.08.2006 (Civil Revision Nos. 2189/2000 & 2196/2000)
मामले का शीर्षक
Sudarshan Prasad Vs. Smt. Rajpati Devi
केस नंबर
Civil Miscellaneous Jurisdiction No. 157 of 2020
उद्धरण (Citation)
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न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति संदीप कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री बल भूषण चौधरी, अधिवक्ता
- प्रतिवादी की ओर से: श्री राजेंद्र प्रसाद, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री प्रमोद कुमार, अधिवक्ता; श्री रितेश कुमार, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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