पटना उच्च न्यायालय का फैसला: विभागीय जांच में प्रेज़ेंटिंग ऑफिसर की भूमिका को लेकर स्पष्ट निर्देश — 2024

पटना उच्च न्यायालय का फैसला: विभागीय जांच में प्रेज़ेंटिंग ऑफिसर की भूमिका को लेकर स्पष्ट निर्देश — 2024

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने एक सार्वजनिक क्षेत्र की संस्था द्वारा दायर एलपीए (Letters Patent Appeal) को खारिज कर दिया। यह अपील उस एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ थी, जिसमें एक कर्मचारी की बर्खास्तगी को अवैध बताते हुए राहत दी गई थी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि सेवा नियमों के अनुसार विभागीय जांच में प्रेज़ेंटिंग ऑफिसर (Presenting Officer) की नियुक्ति होती है, तो उसकी सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। यदि वह उपस्थित नहीं होता और जांच अधिकारी स्वयं उसका काम करने लगे, तो पूरी जांच प्रक्रिया प्राकृतिक न्याय और नियमों के खिलाफ मानी जाएगी।

मामला संक्षेप में यह था कि कर्मचारी को 05.04.2003 को नौकरी से हटा दिया गया था और उसकी अपील भी 02.12.2003 को खारिज कर दी गई। कर्मचारी ने इस आदेश को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी। 05.07.2019 को एकल न्यायाधीश ने कर्मचारी के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद संस्था ने एलपीए संख्या 1543/2019 दायर किया, लेकिन 10.12.2024 को खंडपीठ ने इसे खारिज कर दिया।

इस दौरान न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि वास्तव में अनुशासनिक कार्रवाई संस्था की कार्यकारी समिति ने की थी और निदेशक मंडल ने अपील का निपटारा किया था। प्रबंध निदेशक ने केवल इन निर्णयों की सूचना दी थी। इसलिए एकल न्यायाधीश के आदेश में जो भ्रम की स्थिति थी, उसे खंडपीठ ने ठीक कर दिया। लेकिन इससे कर्मचारी को दी गई राहत पर कोई असर नहीं पड़ा।

मुख्य दोष यह पाया गया कि यद्यपि एक प्रेज़ेंटिंग ऑफिसर नियुक्त था, उसने कार्यवाही में हिस्सा नहीं लिया। नतीजतन, जांच अधिकारी ने ही संस्था की ओर से आरोप प्रस्तुत करने और निर्णय करने दोनों भूमिकाएँ निभाईं। न्यायालय ने इस स्थिति को सख्ती से खारिज करते हुए कहा कि यह प्रक्रिया नियमों और न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

खंडपीठ ने उच्चतम न्यायालय के फैसले Union of India v. P. Gunasekaran, (2015) 2 SCC 610 पर भरोसा किया। इस फैसले में कहा गया था कि न्यायालय साक्ष्यों की पुनः जांच नहीं करेगा, लेकिन यदि जांच प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय या नियमों का उल्लंघन हो तो हस्तक्षेप किया जा सकता है। यहाँ साफ तौर पर प्रक्रिया में खामी पाई गई, इसलिए एकल न्यायाधीश का आदेश सही ठहराया गया।

अंत में न्यायालय ने कर्मचारी को यह स्वतंत्रता दी कि वह बकाया वेतन व अन्य लाभों के लिए संस्था के पास आवेदन करे। संस्था को निर्देश दिया गया कि ऐसा आवेदन मिलने पर तीन महीने में निर्णय लिया जाए।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

  • यह फैसला बिहार की सभी सरकारी और अर्ध-सरकारी संस्थाओं के लिए चेतावनी है कि विभागीय कार्रवाई करते समय नियमों का पालन पूरी तरह जरूरी है।
  • यदि प्रेज़ेंटिंग ऑफिसर की नियुक्ति हुई है, तो उसे सक्रिय रूप से भाग लेना ही होगा। उसकी अनुपस्थिति में जांच अधिकारी को उसका काम नहीं करना चाहिए।
  • कर्मचारी वर्ग के लिए यह भरोसेमंद संदेश है कि न्यायालय तथ्यात्मक निष्कर्षों में तो दखल नहीं देगा, लेकिन यदि प्रक्रिया ही गलत है, तो राहत जरूर मिलेगी।
  • संस्थाओं के लिए यह जिम्मेदारी है कि वे अपने अनुशासनिक ढांचे को दुरुस्त रखें और समय पर नियमों के अनुसार जांच सुनिश्चित करें।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • प्रश्न: क्या जांच अधिकारी प्रेज़ेंटिंग ऑफिसर की भूमिका भी निभा सकता है?
    — निर्णय: नहीं। यह नियमों का उल्लंघन है और पूरी जांच अवैध हो जाएगी।
  • प्रश्न: क्या उच्च न्यायालय विभागीय जांच के निष्कर्षों में दखल दे सकता है?
    — निर्णय: केवल तब जब प्राकृतिक न्याय या नियमों का उल्लंघन हो।
  • प्रश्न: अनुशासनिक और अपीलीय प्राधिकारी कौन हैं?
    — निर्णय: कार्यकारी समिति अनुशासनिक प्राधिकारी है और निदेशक मंडल अपीलीय प्राधिकारी है। प्रबंध निदेशक ने केवल आदेशों की सूचना दी थी।
  • प्रश्न: कर्मचारी को सेवा लाभ कब मिलेंगे?
    — निर्णय: कर्मचारी आवेदन कर सकता है और संस्था को तीन महीने में निर्णय लेना होगा।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Union of India v. P. Gunasekaran, (2015) 2 SCC 610

मामले का शीर्षक

Managing Director, Bihar State Warehousing Corporation v. [Employee] CWJC संख्या 2621/2004 से उत्पन्न अपील

केस नंबर

LPA No. 1543 of 2019 (arising out of CWJC No. 2621 of 2004)

उद्धरण (Citation)

2025 (1) PLJR 324

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
  • माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. बी. पीडी. सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • अपीलकर्ता (संस्था) की ओर से: श्री मिथिलेश कुमार राय, अधिवक्ता
  • प्रतिवादी (कर्मचारी) की ओर से: श्री अनिल कुमार सिंह, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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