निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला बिहार राज्य स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत एक डॉक्टर से जुड़ा है। डॉक्टर ने 1987 में सेवा जॉइन की थी। साल 2005 में व्यक्तिगत और पारिवारिक कारणों से उन्होंने सरकार को आवेदन दिया कि उन्हें स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (Voluntary Retirement) दी जाए, जो 1 फरवरी 2006 से प्रभावी हो। साथ ही उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि नवंबर 2005 से जनवरी 2006 की अवधि को “अतिरिक्त अवकाश” (extra-ordinary leave) माना जाए।
अप्रैल 2006 में उन्होंने एक और पत्र भेजकर कहा कि अगर तकनीकी कारणों से तुरंत स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति नहीं दी जा सकती तो उन्हें उस तारीख से सेवा से मुक्त कर दिया जाए।
लेकिन सरकार ने उनकी मांग पर कोई फैसला नहीं किया। इसके बजाय उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई (departmental proceeding) शुरू कर दी गई, आरोप था कि वे बिना अनुमति के अनुपस्थित थे और किसी अन्य राज्य में सेवा कर रहे थे। लंबी जांच के बाद 2013 में उन्हें आरोपों से बरी कर दिया गया और उनकी अनुपस्थिति की अवधि को “नो वर्क, नो पे” के आधार पर अतिरिक्त अवकाश मान लिया गया।
इसी बीच जनवरी 2013 में सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर दी जिसमें डॉक्टर के पुराने आवेदन को इस्तीफ़ा (resignation) का आवेदन मान लिया गया। इसका मतलब था कि उन्हें पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ नहीं मिलते।
डॉक्टर ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी और कहा:
- उन्होंने कभी इस्तीफ़ा नहीं दिया था, केवल स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति मांगी थी।
- 2013 तक उन्होंने 30 साल की सेवा भी पूरी कर ली थी और 50 साल की उम्र भी पार कर चुके थे, यानी नियम 74(b), बिहार सेवा संहिता के अनुसार वे पात्र थे।
- सरकार का फैसला मनमाना और गैरकानूनी था।
कोर्ट का निर्णय:
हाई कोर्ट ने माना कि आवेदन को इस्तीफ़ा मानना पूरी तरह गलत था। 2013 तक डॉक्टर सभी आवश्यक शर्तें पूरी कर चुके थे, इसलिए उनका आवेदन स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए था।
कोर्ट ने आदेश दिया कि 2 जनवरी 2013 से उनकी सेवा समाप्ति को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति माना जाए और उन्हें सभी सेवानिवृत्ति लाभ दिए जाएं। सरकार को यह लाभ तीन महीने के अंदर अदा करने का निर्देश दिया गया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा – यह फैसला दिखाता है कि किसी कर्मचारी के आवेदन को गलत अर्थ में लेकर उसके पेंशन व लाभ नहीं छीने जा सकते।
- स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के नियम स्पष्ट – कोर्ट ने बताया कि बिहार सेवा संहिता के नियम 74(b) के तहत या तो 30 साल की सेवा या 50 साल की उम्र पूरी होने पर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति मांगी जा सकती है।
- अधिकारियों की सीमा तय – स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति पर निर्णय केवल सक्षम अधिकारी ही ले सकता है। कॉलेज प्रिंसिपल जैसे पदाधिकारी को यह अधिकार नहीं है।
- सेवा कानून में निष्पक्षता – यह फैसला बताता है कि तकनीकी आधार पर कर्मचारी के अधिकार नहीं छीने जा सकते। न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि कर्मचारी को उसका वैध हक़ मिले।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के आवेदन को इस्तीफ़ा माना जा सकता है?
✘ नहीं। कोर्ट ने कहा यह अवैध और मनमाना है। - क्या याचिकाकर्ता स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए पात्र थे?
✔ हाँ। 2013 तक उनकी उम्र 50 साल से अधिक और सेवा 30 साल पूरी हो चुकी थी। - क्या प्रिंसिपल को आवेदन अस्वीकार करने का अधिकार था?
✘ नहीं। केवल सक्षम प्राधिकारी ही इस पर निर्णय ले सकता है। - क्या याचिकाकर्ता सेवानिवृत्ति लाभ पाने के हकदार हैं?
✔ हाँ। कोर्ट ने तीन महीने में सभी लाभ देने का आदेश दिया।
मामले का शीर्षक
डॉ. विनॉय बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 1556 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 113
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति बिरेंद्र कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री प्रभात रंजन द्विवेदी, श्री राजीव रंजन, श्री चंदन कुमार, अधिवक्ता
- प्रतिवादी राज्य की ओर से: श्री बिर्जू प्रसाद (GP-13); श्री अजीत आनंद, AC टू GP-13; सुश्री श्वेता आनंद, AC टू GP-13
निर्णय का लिंक
MTUjMTU1NiMyMDE5IzEjTg==-VsUchKl6tq8=
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