निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला गोपालगंज जिले के एक निवासी से जुड़ा है, जिनके खिलाफ अतिक्रमण कार्यवाही शुरू की गई थी। याचिकाकर्ता ने पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर अतिक्रमण की पूरी प्रक्रिया को रद्द करने की मांग की।
सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि हथुआ प्रखंड के अंचल अधिकारी ने पहले ही 13.12.2017 को अंतिम आदेश पारित कर दिया था, जिसमें याचिकाकर्ता को अतिक्रमणकारी माना गया था। जब कोई अंतिम आदेश पारित हो चुका होता है, तो सही कानूनी उपाय यह होता है कि प्रभावित व्यक्ति जिला पदाधिकारी (कलेक्टर) के समक्ष अपील दायर करे, न कि सीधे उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करे।
इस परिस्थिति को देखते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से कहा कि याचिकाकर्ता कलेक्टर, गोपालगंज (प्रतिवादी संख्या 2) के समक्ष अपील दायर करना चाहता है। साथ ही, यह भी अनुरोध किया कि अदालत इस तथ्य को दर्ज करे कि याचिकाकर्ता का मामला उन लोगों से मिलता-जुलता है, जिन्हें पहले ही अतिक्रमण कार्यवाही से छूट दी गई थी।
माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए याचिका का निस्तारण निम्नलिखित निर्देशों के साथ किया:
- याचिकाकर्ता को चार सप्ताह के भीतर कलेक्टर, गोपालगंज के समक्ष अपील दायर करने की स्वतंत्रता दी गई।
- कलेक्टर को निर्देश दिया गया कि वह अपील दायर होने के 12 सप्ताह के भीतर उसका निपटारा करें।
- इस बीच, याचिकाकर्ता को संरक्षण देने के लिए अदालत ने आदेश दिया कि चार सप्ताह तक यथास्थिति (status quo) बनाए रखी जाएगी, ताकि याचिकाकर्ता अपील दायर कर सके और अंतरिम राहत प्राप्त कर सके।
इस प्रकार, अदालत ने सीधे अतिक्रमण आदेश को रद्द नहीं किया, बल्कि मामले को उचित वैधानिक अपीलीय प्रक्रिया के माध्यम से सुलझाने का मार्ग प्रशस्त किया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- भूमि मालिकों और ग्रामीणों के लिए: यदि अंचल अधिकारी ने अतिक्रमण का अंतिम आदेश पारित कर दिया है, तो सही रास्ता है कि कलेक्टर के समक्ष अपील की जाए। यह फैसला इसी बात को स्पष्ट करता है।
- सरकारी अधिकारियों और राजस्व विभाग के लिए: यह निर्णय बताता है कि अपीलीय अधिकार क्षेत्र मुख्य रूप से कलेक्टर का है। इससे प्रशासनिक जवाबदेही भी तय होती है और उच्च न्यायालय पर अनावश्यक बोझ कम होता है।
- सामान्य जनता के लिए: अदालत ने भरोसा दिलाया कि यदि कोई व्यक्ति सीधे रिट याचिका दायर करता है, तब भी न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि उसे उचित मौका मिले। यही कारण है कि अदालत ने चार सप्ताह तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।
- कानूनी व्यवस्था के लिए: यह फैसला दर्शाता है कि न्यायालय नागरिकों को हमेशा सही कानूनी रास्ता अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं और पहले वैधानिक उपायों को अपनाने की अपेक्षा रखते हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या उच्च न्यायालय अंचल अधिकारी द्वारा दिए गए अंतिम अतिक्रमण आदेश को सीधे रद्द कर सकता है?
- नहीं। सही उपाय अपील है, जिसे कलेक्टर के समक्ष दायर किया जाना चाहिए।
- याचिकाकर्ता को क्या राहत दी गई?
- कलेक्टर, गोपालगंज के समक्ष चार सप्ताह के भीतर अपील दायर करने की स्वतंत्रता दी गई।
- क्या याचिकाकर्ता को अंतरिम सुरक्षा दी जानी चाहिए?
- हाँ। अदालत ने आदेश दिया कि चार सप्ताह तक यथास्थिति बनी रहे ताकि अपील दाखिल की जा सके।
मामले का शीर्षक
सफ़ी आलम खान बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 1361 of 2018
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 131
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री रंजन कुमार श्रीवास्तव, अधिवक्ता
- प्रतिवादियों की ओर से: श्री साजिद सलीम खान (SC-25), अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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