पटना हाई कोर्ट का फैसला: मनरेगा पौधारोपण घोटाले में मुखिया पर लगाया गया वसूली आदेश रद्द

पटना हाई कोर्ट का फैसला: मनरेगा पौधारोपण घोटाले में मुखिया पर लगाया गया वसूली आदेश रद्द

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला मुंगेर जिले की एक पूर्व मुखिया से जुड़ा है, जिन पर मनरेगा (MGNREGA) योजना के तहत किए गए पौधारोपण कार्य में गड़बड़ी का आरोप लगाकर ₹2,48,226 की वसूली का आदेश दिया गया था।

पृष्ठभूमि:

  • याचिकाकर्ता उस समय खर्रा पंचायत, तारापुर की मुखिया थीं।
  • उन्होंने वर्ष 2015 में ही ग्रामीण विकास विभाग को पत्र लिखकर बताया था कि मनरेगा कार्यों में भुगतान पारदर्शी तरीके से नहीं हो रहा है।
  • इसके बाद विभाग ने जांच कराई और तीन सदस्यीय समिति (Accounts Director, Executive Engineer और Programme Officer) ने अपनी रिपोर्ट दिनांक 31.12.2019 में 11 लोगों को दोषी ठहराया।
  • समिति ने कुल ₹36 लाख से अधिक की वसूली की सिफारिश की, जिसमें से याचिकाकर्ता पर ₹2.48 लाख का बोझ डाला गया।
  • इसी आधार पर डिप्टी डेवलपमेंट कमिश्नर, मुंगेर ने 20.02.2020 को आदेश जारी कर दिया कि याचिकाकर्ता 10 दिनों में यह रकम जमा करें।

याचिकाकर्ता का पक्ष:

  • उन्हें कभी जांच रिपोर्ट उपलब्ध नहीं कराई गई।
  • उन्हें यह भी नहीं बताया गया कि उनके खिलाफ इतनी बड़ी वसूली का आदेश पारित होने वाला है।
  • इसलिए उन्हें अपना बचाव पेश करने का पूरा मौका नहीं मिला, जो कि प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

राज्य सरकार का पक्ष:

  • राज्य ने कहा कि याचिकाकर्ता अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल रहीं।
  • 06.08.2019 को उन्हें जवाब देने का एक अवसर दिया गया था, लेकिन उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया।
  • हालांकि, राज्य ने भी यह स्वीकार किया कि वसूली का आदेश पारित करने से पहले उन्हें न तो जांच रिपोर्ट दी गई और न ही कोई स्पष्ट शो-कॉज नोटिस भेजा गया।

कोर्ट का निष्कर्ष:
माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने कहा कि—

  • जांच रिपोर्ट याचिकाकर्ता को नहीं दी गई।
  • जो नोटिस दिया गया, उसमें वसूली जैसे दंडात्मक आदेश का जिक्र ही नहीं था।
  • इस कारण याचिकाकर्ता को अपना पक्ष पूरी तरह रखने का अवसर नहीं मिला।
  • यह स्थिति प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

इसलिए कोर्ट ने वसूली आदेश दिनांक 20.02.2020 को अवैध और शून्य घोषित करते हुए रद्द कर दिया

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

  1. प्राकृतिक न्याय की रक्षा: किसी भी व्यक्ति से पैसा वसूलने से पहले उसे पूरी तरह से सुनना और जांच रिपोर्ट उपलब्ध कराना अनिवार्य है।
  2. प्रशासनिक जिम्मेदारी तय: विभागीय जांच समितियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रभावित व्यक्ति को रिपोर्ट और आरोप दोनों की जानकारी मिले।
  3. स्थानीय जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा: मुखिया जैसे निर्वाचित प्रतिनिधियों पर सीधे आर्थिक दायित्व डालना गलत है, जब तक कि उन्हें बचाव का उचित अवसर न दिया जाए।
  4. न्यायालय की निगरानी: यह फैसला दिखाता है कि हाई कोर्ट प्रशासनिक आदेशों पर निगरानी रखकर जनता के अधिकारों की रक्षा करता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • मुद्दा: क्या बिना जांच रिपोर्ट उपलब्ध कराए और बिना उचित नोटिस दिए वसूली का आदेश पारित किया जा सकता है?
    निर्णय: नहीं। आदेश अवैध है।
  • मुद्दा: क्या केवल एक सामान्य नोटिस देना पर्याप्त था?
    निर्णय: नहीं। नोटिस में स्पष्ट रूप से दंड या वसूली का उल्लेख होना चाहिए था।

मामले का शीर्षक

रंजना ठाकुर बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 7795 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 140

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति श्री मोहित कुमार शाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: सुश्री रितिका रानी, अधिवक्ता
  • प्रतिवादी (राज्य) की ओर से: श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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