निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला एक बैंक कर्मचारी से जुड़ा था जो अपने सेवानिवृत्ति लाभ (Provident Fund और Gratuity) की देर से हुई अदायगी पर ब्याज चाहता था।
याचिकाकर्ता 1977 में बैंक की सेवा में शामिल हुए थे। 2007 में विभागीय कार्यवाही के बाद उन्हें सेवा से हटा दिया गया। उनकी अपील और पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो गई। यहां तक कि हाई कोर्ट और उसके बाद की एल.पी.ए. (Letters Patent Appeal) में भी हटाने का आदेश बरकरार रहा।
सेवा से हटाए जाने के बाद भी याचिकाकर्ता पर कई स्टाफ लोन बकाया थे, जैसे ओवरड्राफ्ट, हाउस लोन, कोऑपरेटिव लोन और शिक्षा ऋण। उन्होंने लंबे समय तक बैंक को यह अनुमति नहीं दी कि उनके बकाया ऋण को रिटायरमेंट लाभ (PF और Gratuity) से समायोजित किया जाए।
केवल 24 फरवरी 2012 को उन्होंने आवश्यक फॉर्म भरकर बैंक को अनुमति दी। इसके बाद बैंक ने—
- ₹3,50,000 की ग्रेच्युटी 30 मार्च 2012 को दी।
- ₹19,26,199 की भविष्य निधि (PF) राशि 15 मई 2012 को दी (इसमें से ₹1,78,602 PF ऋण के रूप में पहले ही समायोजित कर लिया गया था)।
हालांकि, उन पर अभी भी ओवरड्राफ्ट लोन बाकी था।
इसके बाद याचिकाकर्ता कोर्ट पहुँचे और मांगा:
- मार्च 2010 से मार्च–मई 2012 तक की अवधि के लिए PF और Gratuity पर ब्याज।
- स्टाफ लोन पर जो ब्याज बैंक ने वसूला (करीब ₹92,500), उसे वापस करने का आदेश।
बैंक का तर्क था कि भुगतान में देरी उनकी वजह से नहीं, बल्कि याचिकाकर्ता की लापरवाही के कारण हुई। यदि उन्होंने समय पर अनुमति दे दी होती तो लाभ पहले ही मिल जाते। अनुमति मिलते ही बैंक ने रकम तुरंत जारी कर दी।
कोर्ट ने बैंक की बात सही मानी। कहा कि:
- देरी बैंक की गलती नहीं थी, बल्कि याचिकाकर्ता ने खुद देर से कदम उठाया।
- जब उन्होंने आवश्यक अनुमति दी, बैंक ने तुरंत भुगतान कर दिया।
- इसलिए ब्याज का कोई दावा नहीं बनता।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि वास्तव में कोई और बकाया राशि बची है, तो याचिकाकर्ता बैंक के जनरल मैनेजर (HR) को नया आवेदन दे सकते हैं। बैंक को उसकी जांच कर उचित आदेश देना होगा।
इस तरह कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और ब्याज का दावा मान्य नहीं किया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
कर्मचारियों के लिए:
यह फैसला दिखाता है कि रिटायरमेंट लाभ में देरी पर ब्याज तभी मिलेगा जब देरी बैंक या संस्था की वजह से हो। अगर कर्मचारी खुद ज़रूरी कागजात या अनुमति समय पर नहीं देता, तो वह ब्याज नहीं मांग सकता।
बैंक और नियोक्ता के लिए:
जैसे ही कर्मचारी आवश्यक औपचारिकताएँ पूरी करे, तुरंत रिटायरमेंट लाभ देना ज़रूरी है। लेकिन यदि कर्मचारी खुद देर करे, तो संस्था जिम्मेदार नहीं मानी जाएगी।
कानूनी पेशेवरों के लिए:
यह केस बताता है कि सेवा लाभ संबंधी मामलों में सबसे पहले यह देखना ज़रूरी है कि देरी किसकी वजह से हुई। अदालत उसी आधार पर फैसला करती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या PF और Gratuity की देर से अदायगी पर ब्याज मिलेगा?
➝ नहीं। देरी कर्मचारी की वजह से हुई थी, बैंक की वजह से नहीं। - क्या स्टाफ लोन पर वसूला गया ब्याज वापस किया जाएगा?
➝ नहीं। कर्मचारी ने समय पर लोन चुकाया नहीं, इसलिए ब्याज लेना सही था। - क्या याचिकाकर्ता को कोई और राहत मिली?
➝ हाँ। अगर कोई और बकाया राशि बची हो तो वे जनरल मैनेजर (HR) को नया आवेदन दे सकते हैं।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- CWJC No. 4667 of 2009 (सेवा से हटाने के आदेश को चुनौती – खारिज)
- Letters Patent Appeal (LPA) – खारिज
- CWJC No. 14194 of 2014 (पोस्ट-रिटायरमेंट लाभ पर ब्याज का दावा – LPA पर निर्भर)
मामले का शीर्षक
CWJC No. 15113 of 2018 — Patna High Court (Bank Retirement Dues and Interest Claim)
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 15113 of 2018
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 146
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायाधीश अशुतोष कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: अंतिम सुनवाई पर कोई वकील उपस्थित नहीं
- प्रतिवादी (बैंक) की ओर से: श्री निशी नाथ ओझा, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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