पटना हाई कोर्ट का फैसला: सेवानिवृत्त क्लर्क से ग्रेच्युटी की वसूली पर रोक (2021)

पटना हाई कोर्ट का फैसला: सेवानिवृत्त क्लर्क से ग्रेच्युटी की वसूली पर रोक (2021)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने 13 जनवरी 2021 को दिए गए एक महत्वपूर्ण आदेश में एक सेवानिवृत्त क्लास-III कर्मचारी को राहत दी। कर्मचारी से उसकी ग्रेच्युटी (retirement gratuity) से कथित “अधिशेष भुगतान” (excess payment) की वसूली की जा रही थी। कोर्ट ने इसे अवैध करार देते हुए विभाग को पूरा ग्रेच्युटी ब्याज सहित देने का आदेश दिया।

मामला जल संसाधन विभाग से जुड़े एक क्लर्क का था। यह कर्मचारी 31 मार्च 2019 को सेवानिवृत्त हुआ था। सेवा के दौरान वित्त विभाग ने कई परिपत्र जारी किए, जिनसे वर्क्स डिपार्टमेंट के क्लर्क कैडर की वेतन संरचना बदली।

  • 25 मार्च 2015 का परिपत्र (Memo 3111/2015): इसमें अकाउंट्स क्लर्क (लेखा लिपिक) के पद की वेतन संरचना तय की गई।
  • 16 जुलाई 2015 का परिपत्र (Memo 6338/2015): इसमें भंडारपाल (स्टोर कीपर) और पत्राचार लिपिक को अकाउंट्स क्लर्क के बराबरी का लाभ दिया गया।

याचिकाकर्ता को भी इनका लाभ मिला। लेकिन कुछ ही समय बाद, 14 सितम्बर 2015 का परिपत्र (Memo 8059/2015) जारी हुआ, जिसमें पहले दिए गए लाभ वापस ले लिए गए और पहले से भुगतान की गई राशि की वसूली का आदेश दिया गया। इसी आधार पर विभाग ने ग्रेच्युटी से पैसा काटने का प्रयास किया।

याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने दलील दी कि:

  1. उन्हें 16.07.2015 के परिपत्र के अनुसार वैधानिक लाभ मिला था।
  2. बाद में जारी 14.09.2015 वाला परिपत्र पहले ही पटना हाई कोर्ट की दूसरी पीठ द्वारा 27.02.2019 को रद्द किया जा चुका है।
  3. सुप्रीम कोर्ट का फैसला State of Punjab v. Rafiq Masih (2015) कहता है कि क्लास-III और क्लास-IV के सेवानिवृत्त कर्मचारियों से कोई वसूली नहीं की जा सकती, जब तक कर्मचारी ने खुद गलत सूचना देकर भुगतान न लिया हो।

राज्य सरकार ने कहा कि कर्मचारी की नियुक्ति तिथि (20.03.1980) उस परिपत्र में वर्णित तिथि सीमा (01.05.1980 से 27.09.1999) से बाहर थी, इसलिए लाभ नहीं मिलना चाहिए। साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले High Court of Punjab & Haryana v. Jagdev Singh (2016) का हवाला दिया और कहा कि अगर किसी ने लिखित सहमति दी हो तो वसूली की जा सकती है।

हाई कोर्ट ने राज्य की दलीलें खारिज कर दीं। न्यायालय ने कहा:

  • जिस 14.09.2015 परिपत्र पर वसूली का आधार रखा गया था, उसे पहले ही कोर्ट ने रद्द कर दिया था।
  • कर्मचारी को लाभ नियमों के तहत दिया गया था, इसमें कोई धोखाधड़ी या गलत जानकारी नहीं थी।
  • कर्मचारी ने कभी कोई लिखित सहमति नहीं दी थी कि बाद में पैसा लौटाएंगे। इसलिए Jagdev Singh केस लागू नहीं होता।
  • Rafiq Masih केस साफ तौर पर कहता है कि सेवानिवृत्त क्लास-III कर्मचारी से वसूली नहीं की जा सकती।

कोर्ट ने यह भी देखा कि सातवें वेतन आयोग (2017) की सिफारिशें लागू होने के बाद अकाउंट्स क्लर्क, भंडारपाल, पत्राचार लिपिक और अन्य क्लर्क कैडर को एक सामान्य क्लेरिकल कैडर में मिला दिया गया है। इसलिए किसी एक पद को अलग कर वसूली करना अनुचित है।

अंत में, कोर्ट ने वसूली पत्र (11.04.2019) को रद्द कर दिया और विभाग को आदेश दिया कि पूरा ग्रेच्युटी 30 दिन बाद से ब्याज सहित दिया जाए।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बिहार सरकार के वर्क्स और जल संसाधन विभाग के क्लर्कों और अन्य कर्मचारियों के लिए महत्वपूर्ण है।

  • यह साफ करता है कि अगर कोई सरकारी परिपत्र कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया है, तो उसके आधार पर कोई वसूली नहीं हो सकती।
  • सेवानिवृत्त कर्मचारियों से ग्रेच्युटी या पेंशन में कटौती करना अनुचित है, जब तक कर्मचारी ने खुद कोई गलती या धोखाधड़ी नहीं की हो।
  • यह फैसला उन हजारों कर्मचारियों को राहत देता है जो सेवानिवृत्ति के बाद विभागीय वसूली के डर में रहते हैं।
  • यह सरकार को भी संकेत देता है कि एक बार दिए गए लाभ को वर्षों बाद वापस लेना कर्मचारियों के अधिकारों और गरिमा के खिलाफ है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या 14.09.2015 परिपत्र के आधार पर ग्रेच्युटी से वसूली की जा सकती है?
    • निर्णय: नहीं। यह परिपत्र पहले ही हाई कोर्ट ने 2019 में रद्द कर दिया था।
  • क्या नियुक्ति तिथि (20.03.1980) के आधार पर लाभ रोका जा सकता है?
    • निर्णय: राज्य की दलील अस्वीकृत। लाभ पहले ही वैधानिक रूप से दिया गया था और बाद में नियमों में भी क्लर्क कैडर एकीकृत कर दिया गया।
  • क्या बिना लिखित सहमति (undertaking) वसूली संभव है?
    • निर्णय: नहीं। सुप्रीम कोर्ट का Rafiq Masih केस लागू होता है, जो वसूली से रोकता है।
  • राहत:
    • वसूली पत्र (11.04.2019) रद्द।
    • पूरा ग्रेच्युटी ब्याज सहित भुगतान का आदेश।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • High Court of Punjab & Haryana v. Jagdev Singh, (2016) 14 SCC 267

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • State of Punjab & Others v. Rafiq Masih (White Washer), 2015 AIR SCW 501
  • पटना हाई कोर्ट, CWJC No. 9633/2016, निर्णय दिनांक 27.02.2019
  • पटना हाई कोर्ट, LPA No. 124/2018 (Vinit/Binit Kumar केस), निर्णय दिनांक 11.07.2018

मामले का शीर्षक

याचिकाकर्ता (सेवानिवृत्त पत्राचार लिपिक) बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (जल संसाधन विभाग)

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 12040 of 2019 (Patna High Court)

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 157

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: डॉ. हरेंद्र नाथ ओझा, अधिवक्ता; श्री जितेंद्र कुमार, अधिवक्ता
  • प्रतिवादी/राज्य की ओर से: श्री हरीश कुमार, सरकारी अधिवक्ता (GP-8)

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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