निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने 25 फरवरी 2021 को एक महत्वपूर्ण आदेश दिया जिसमें एक सेवानिवृत्त सरकारी शिक्षिका के मामले में लंबित सेवानिवृत्ति लाभ (पेंशन, ग्रेच्युटी और लीव एनकैशमेंट) जारी करने का निर्देश दिया गया।
याचिकाकर्ता, जो 30 नवंबर 2018 को बैंकिपुर गर्ल्स हाई स्कूल, पटना से सीनियर टीचर के पद से सेवानिवृत्त हुई थीं, ने हाई कोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर पेंशन, ग्रेच्युटी और लीव एनकैशमेंट का भुगतान ब्याज सहित कराने की मांग की।
याचिकाकर्ता की दलील:
- सेवानिवृत्ति के समय उनके खिलाफ न तो कोई विभागीय जांच लंबित थी और न ही कोई आपराधिक मामला।
- इसके बावजूद, विभागीय अधिकारियों ने उनका पूरा सेवानिवृत्ति लाभ रोक रखा था।
राज्य सरकार और विभाग की दलील:
- शिक्षा विभाग ने कहा कि सीबीआई रिपोर्ट के आधार पर शिक्षक नियुक्ति में कथित अनियमितताओं के कारण उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू की गई थी।
- इसलिए उन्हें 90% प्रोविजनल पेंशन और 90% प्रोविजनल ग्रेच्युटी ही दी गई।
- बाद में, 09 अक्टूबर 2020 को विभागीय कार्यवाही समाप्त होने पर उन्हें 100% पेंशन की स्थायी रोक (पूर्ण जब्ती) की सजा दी गई। इसी आधार पर ट्रेजरी ऑफिसर ने पेंशन, ग्रेच्युटी और लीव एनकैशमेंट का भुगतान रोक दिया।
लेखा महानियंत्रक (Accountant General) का पक्ष:
- उन्होंने कोर्ट को बताया कि 04 जून 2020 को ही ट्रेजरी ऑफिसर को आदेश भेज दिया गया था कि 90% पेंशन और ग्रेच्युटी का भुगतान किया जाए।
- लेकिन ट्रेजरी ऑफिसर ने कोई भुगतान नहीं किया।
हाई कोर्ट की टिप्पणियाँ और निष्कर्ष
- पेंशन रोकने का कोई आधार नहीं:
- कोर्ट ने कहा कि 30.11.2018 (सेवानिवृत्ति की तिथि) से लेकर 09.10.2020 (सजा की तिथि) तक पूरा पेंशन मिलना चाहिए था।
- बिना स्पष्ट आदेश के पेंशन को पिछली तिथि से रोकना अवैध है।
- ग्रेच्युटी रोकना गलत:
- कोर्ट ने अरविंद कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य, 2018 (2) PLJR 933 (फुल बेंच का फैसला) का हवाला दिया।
- इसमें कहा गया है कि बिहार पेंशन नियमावली में 2012 से किए गए संशोधन (Rule 43(c)) के बाद, सरकार बिना विशेष प्रावधान के ग्रेच्युटी रोक नहीं सकती।
- चूंकि विभागीय सजा आदेश में ग्रेच्युटी की जब्ती का उल्लेख नहीं था, इसलिए पूरा ग्रेच्युटी भुगतान करना होगा।
- लीव एनकैशमेंट भी मिलना चाहिए:
- सरकार कुछ मामलों में लीव एनकैशमेंट रोक सकती है, लेकिन इस मामले में सजा आदेश में ऐसा कोई निर्देश नहीं था।
- इसलिए शिक्षिका को पूरा लीव एनकैशमेंट भी मिलेगा।
- ट्रेजरी ऑफिसर की लापरवाही:
- आदेश मिलने के बावजूद ट्रेजरी ऑफिसर ने भुगतान नहीं किया।
- कोर्ट ने इसे गंभीर लापरवाही मानते हुए ट्रेजरी ऑफिसर पर ₹20,000 का व्यक्तिगत जुर्माना लगाया।
- यह राशि दो महीने में जमा करनी होगी, अन्यथा इसे उनसे फाइन की तरह वसूल किया जाएगा।
अंतिम आदेश
- पूरा पेंशन 30.11.2018 से 09.10.2020 तक दिया जाए।
- पूरा ग्रेच्युटी और पूरा लीव एनकैशमेंट दिया जाए।
- आदेश दो महीने में लागू किया जाए।
- ट्रेजरी ऑफिसर व्यक्तिगत रूप से ₹20,000 का भुगतान करें।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
- यह फैसला सरकारी कर्मचारियों और खासकर शिक्षकों के लिए राहत भरा है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि सेवानिवृत्ति लाभ अनावश्यक रूप से नहीं रोके जा सकते।
- कोर्ट ने साफ किया कि पेंशन कर्मचारी का अधिकार है, कोई दया या कृपा नहीं।
- इस निर्णय से हजारों सेवानिवृत्त कर्मचारियों को राहत मिलेगी, जिनके पेंशन और अन्य लाभ विभागीय कार्यवाहियों या अफसरों की लापरवाही से रोके जाते हैं।
- ट्रेजरी ऑफिसर पर व्यक्तिगत जुर्माना लगाकर कोर्ट ने यह संदेश दिया कि यदि अधिकारी आदेशों की अनदेखी करेंगे तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या पेंशन को पिछली तिथि से रोका जा सकता है?
- निर्णय: नहीं। यह केवल prospective (आगे से) ही रोका जा सकता है।
- क्या ग्रेच्युटी रोकना वैध था?
- निर्णय: नहीं। कानून के अनुसार ग्रेच्युटी रोकी नहीं जा सकती थी।
- क्या लीव एनकैशमेंट भी रोका जा सकता है?
- निर्णय: नहीं। चूंकि सजा आदेश में उल्लेख नहीं था, इसलिए भुगतान करना होगा।
- क्या ट्रेजरी ऑफिसर की कार्रवाई सही थी?
- निर्णय: नहीं। यह लापरवाही थी, इसलिए व्यक्तिगत जुर्माना लगाया गया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- अरविंद कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य, 2018 (2) PLJR 933 (फुल बेंच, पटना हाई कोर्ट)
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता (सेवानिवृत्त शिक्षिका) बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 22042 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 189
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति बिरेंद्र कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री शिव कुमार, अधिवक्ता
- लेखा महानियंत्रक (AG) की ओर से: श्रीमती निवेदिता निर्विकार, अधिवक्ता; श्री सुधांशु शेखर, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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