निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक बेहद संवेदनशील मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं, जहाँ 16 साल की एक लड़की के कथित अपहरण और उसके बाद की पुलिस कार्रवाई पर सवाल उठे। लड़की के पिता ने हाईकोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दायर कर कहा कि उनकी बेटी को अवैध रूप से एक व्यक्ति के साथ रखा गया है और उसे तत्काल मुक्त कराया जाए।
मामले की पृष्ठभूमि
- पिता ने पटलिपुत्र थाना कांड संख्या 273/2020 दर्ज कराया था, जिसमें धारा 366A IPC (नाबालिग लड़की को बहकाना या ले जाना) का आरोप लगाया गया।
- कई महीनों तक पुलिस लड़की को ढूँढ नहीं सकी।
- अंततः कार्यवाही के दौरान लड़की को दरभंगा से आरोपी के साथ बरामद किया गया। उसका बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 164 दंप्रसं (CrPC) के तहत दर्ज किया गया।
लड़की ने बताया कि वह घर छोड़कर इसलिए गई क्योंकि उसके माता-पिता उसे प्रताड़ित करते थे। उसने यह भी कहा कि उसने आरोपी के साथ अपनी मर्जी से मंदिर में विवाह कर लिया है और यदि वह घर लौटी तो माता-पिता उसे नुकसान पहुँचा सकते हैं।
लड़की का मेडिकल परीक्षण कराया गया, लेकिन बाल कल्याण समिति (Child Welfare Committee – CWC) के सामने उसे प्रस्तुत करने के बजाय, उसे दो रातों तक पुलिस अभिरक्षा में रखा गया और फिर माता-पिता को सौंप दिया गया। कुछ समय बाद लड़की दोबारा आरोपी के साथ चली गई।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कई गंभीर गड़बड़ियों की ओर इशारा किया—
- जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (JJ Act) का उल्लंघन:
- कानून के अनुसार लड़की को “सुरक्षा और देखभाल की जरूरत वाली बच्ची” (Child in Need of Care and Protection) माना जाना चाहिए था।
- उसे 24 घंटे के भीतर बाल कल्याण समिति के सामने प्रस्तुत करना आवश्यक था।
- लेकिन पुलिस ने उसे थाने में दो रातों तक रखा, जो पूरी तरह गलत था।
- POCSO एक्ट की अनदेखी:
- लड़की का बयान बच्चों के अनुकूल माहौल (child-friendly manner) में दर्ज नहीं किया गया।
- मेडिकल परीक्षण में देरी हुई, जबकि POCSO की धारा 27 में तुरंत मेडिकल जांच का प्रावधान है।
- कानून में साफ लिखा है कि बच्चों को रात भर थाने में नहीं रखा जा सकता, लेकिन इस मामले में ऐसा ही हुआ।
- पुलिस और न्यायिक अधिकारियों की प्रशिक्षण की कमी:
- कोर्ट ने कहा कि पुलिस और मजिस्ट्रेट दोनों ही JJ Act और POCSO Act की अनिवार्य प्रक्रियाओं से अनजान लगे।
- सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसले (Independent Thought बनाम Union of India; Sampurna Behura बनाम Union of India) में यह स्पष्ट किया गया है कि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ किसी भी तरह का यौन संबंध बलात्कार की श्रेणी में आता है, भले ही वह विवाह का दावा करे।
कोर्ट के निर्देश
हाईकोर्ट ने व्यापक सुधारात्मक निर्देश दिए—
- राज्य सरकार को निर्देश:
- JJ Act की धारा 106 के तहत राज्य बाल संरक्षण समिति (State Child Protection Society) और जिला बाल संरक्षण इकाइयाँ (District Child Protection Units) स्थापित करें।
- पुलिस विभाग को निर्देश:
- हर थाने में एक प्रशिक्षित बाल कल्याण पुलिस अधिकारी (Child Welfare Police Officer) नियुक्त हो।
- हर ज़िले में विशेष किशोर पुलिस इकाई (Special Juvenile Police Unit) बनाई जाए, जिसमें पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ता (कम से कम एक महिला) शामिल हों।
- सभी अधिकारियों को बच्चों से जुड़े मामलों को संभालने का विशेष प्रशिक्षण दिया जाए।
- न्यायपालिका को निर्देश:
- बिहार न्यायिक अकादमी (Bihar Judicial Academy) नियमित रूप से न्यायिक अधिकारियों को JJ और POCSO कानून पर प्रशिक्षण दे।
- सामान्य संवेदनशीलता:
- बिहार के पुलिस महानिदेशक (DGP) यह सुनिश्चित करें कि बच्चों से जुड़े मामलों की जांच करने वाले सभी पुलिस अधिकारी समय-समय पर प्रशिक्षण लें।
कोर्ट का अंतिम फैसला
- हैबियस कॉर्पस याचिका का निपटारा किया गया लेकिन व्यवस्था सुधार के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए।
- कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह टिप्पणियाँ केवल प्रारंभिक स्तर की हैं और चल रहे आपराधिक मुकदमे को प्रभावित नहीं करेंगी।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
- माता-पिता और परिवारों के लिए:
- यदि कोई बच्चा घर से चला जाए, तो उसे वापस लाने में भी कानून की निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करना जरूरी है।
- बच्चा सीधे माता-पिता को नहीं सौंपा जा सकता, बल्कि पहले CWC के सामने पेश करना होगा।
- पुलिस अधिकारियों के लिए:
- JJ और POCSO एक्ट का पालन करना अनिवार्य है।
- बच्चों को थाने में रातभर रखना पूरी तरह से अवैध है।
- न्यायपालिका और सरकार के लिए:
- यह मामला बताता है कि बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रशिक्षण और जागरूकता जरूरी है।
- सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेशों को अमल में लाने की आवश्यकता है ताकि बाल संरक्षण प्रणाली मज़बूत हो सके।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या लड़की “देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाली बच्ची” थी?
✔ हाँ। JJ Act की धारा 2(14) के अनुसार यह परिभाषा लागू होती है। - क्या उसे पुलिस अभिरक्षा में रखना और सीधे माता-पिता को सौंपना कानूनी था?
❌ नहीं। उसे CWC के सामने पेश करना अनिवार्य था। - क्या POCSO और JJ Act के प्रावधानों का पालन हुआ?
❌ नहीं। मेडिकल परीक्षण में देरी, बयान दर्ज करने की गलत प्रक्रिया और पुलिस हिरासत सभी कानून के खिलाफ थे। - क्या व्यवस्था सुधार के निर्देश जरूरी थे?
✔ हाँ। कोर्ट ने राज्य, पुलिस और न्यायपालिका सभी को ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Independent Thought बनाम Union of India, (2017) 10 SCC 800
- Prakash Singh बनाम Union of India, (2006) 8 SCC 1
- Sampurna Behura बनाम Union of India, (2018) 4 SCC 433
मामले का शीर्षक
Gopal Gupta बनाम The State of Bihar एवं अन्य
केस नंबर
Criminal Writ Jurisdiction Case No. 394 of 2020
(पटलिपुत्र थाना कांड संख्या 273/2020 से संबंधित)
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 207
न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
- माननीय न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री विकास कुमार पंकज, अधिवक्ता
- अमिकस क्यूरी: श्री अशुतोष सिंह, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री पी.एन. शर्मा, एसी टू एजी
निर्णय का लिंक
MTYjMzk0IzIwMjAjMSNO-6LquAHEuXcI=
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