पटना हाई कोर्ट का फैसला: टैक्स विभाग का जुर्माना आदेश रद्द, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत की पुनः पुष्टि

पटना हाई कोर्ट का फैसला: टैक्स विभाग का जुर्माना आदेश रद्द, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत की पुनः पुष्टि

निर्णय की सरल व्याख्या

इस मामले में पटना हाई कोर्ट ने एक बड़ी निर्माण कंपनी (याचिकाकर्ता) और बिहार वाणिज्य कर विभाग (प्रतिवादी) के बीच विवाद पर सुनवाई की। विवाद तब शुरू हुआ जब टैक्स विभाग ने कंपनी पर लगभग ₹14.85 लाख का जुर्माना लगा दिया। विभाग का आरोप था कि कंपनी ने 2016–17 के वित्तीय वर्ष में स्टोन चिप्स खरीदे लेकिन उस पर एंट्री टैक्स नहीं दिया।

5 फरवरी 2019 को सहायक आयुक्त, वाणिज्य कर, पटना (पटलिपुत्र सर्किल) ने बिहार एंट्री टैक्स अधिनियम और बिहार वैट अधिनियम की धारा 31(2) के तहत आदेश पारित किया। इसमें ₹4.95 लाख का टैक्स और अतिरिक्त जुर्माना मिलाकर कुल ₹14.85 लाख की मांग की गई। 7 फरवरी 2019 को वसूली आदेश भी जारी कर दिया गया।

कंपनी ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी और कहा:

  • उसने संबंधित वित्तीय वर्ष में स्टोन चिप्स खरीदे ही नहीं।
  • उसके खातों और रजिस्टर में यह साफ दिखता है।
  • टैक्स विभाग ने बार-बार पूछने के बावजूद यह नहीं बताया कि यह जानकारी उसे कहाँ से मिली।
  • टैक्स चोरी साबित करने का बोझ विभाग पर होता है, न कि करदाता पर।
  • बिना दस्तावेज़ दिखाए और बिना सुनवाई का मौका दिए जुर्माना लगाना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।

अदालत ने पाया कि विभाग ने जरूरी कागज़ात केवल तब दिए जब मामला हाई कोर्ट में पहुँच चुका था। आदेश पारित करने से पहले कंपनी को पूरा अवसर नहीं दिया गया था। जबकि यह आदेश वित्तीय देनदारी तय करता था और इसके गंभीर नागरिक परिणाम थे। इस वजह से अदालत ने इसे असंवैधानिक माना।

नतीजतन, अदालत ने 5 फरवरी 2019 का आदेश और उसके आधार पर जारी वसूली आदेश दोनों को रद्द कर दिया। लेकिन न्यायालय ने यह भी दर्ज किया कि कंपनी ने अपनी ईमानदारी दिखाने के लिए स्वेच्छा से ₹1 लाख जमा करने की सहमति दी है। यह राशि केवल अंतरिम रूप से होगी और बाद में मामले के पुनः निर्णय के आधार पर समायोजित या वापस की जाएगी।

हाई कोर्ट ने मामला वापस सहायक आयुक्त को भेज दिया और कहा:

  • कंपनी 5 अप्रैल 2021 तक ₹1 लाख जमा करे।
  • उसी दिन अधिकारी के सामने पेश होकर अतिरिक्त दस्तावेज़ पेश करे।
  • दोनों पक्षों को पर्याप्त मौका दिया जाए।
  • अधिकारी को 17 मई 2021 तक मामला निपटाना होगा और पूरी तरह प्राकृतिक न्याय का पालन करना होगा।
  • कोविड-19 महामारी की स्थिति में सुनवाई ऑनलाइन भी हो सकती है।
  • अगर जमा की गई राशि अंतिम देय राशि से ज़्यादा हुई तो उसे तुरंत वापस करना होगा।

अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि उसने कर देयता के वास्तविक मुद्दे पर कोई राय नहीं दी है, बल्कि केवल इसलिए आदेश रद्द किया है क्योंकि सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया था।

संक्षेप में, यह फैसला बताता है कि टैक्स विभाग किसी करदाता पर दंड नहीं थोप सकता जब तक कि साक्ष्य साझा न किए जाएं और बचाव का अवसर न दिया जाए।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

  • आम करदाताओं के लिए: यह फैसला उन्हें आश्वस्त करता है कि बिना सुने और बिना प्रमाण दिए टैक्स विभाग जुर्माना नहीं लगा सकता।
  • सरकारी अधिकारियों के लिए: यह याद दिलाता है कि टैक्स की वसूली के नाम पर जल्दबाज़ी या मनमानी नहीं की जा सकती। उचित प्रक्रिया और पारदर्शिता अनिवार्य है।
  • कानून और शासन के लिए: यह निर्णय दिखाता है कि न्यायालयें विभागीय कार्यवाही पर निगरानी रखती हैं और प्राकृतिक न्याय की रक्षा करती हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या टैक्स विभाग बिना दस्तावेज़ दिखाए और सुनवाई का अवसर दिए जुर्माना लगा सकता है?
    ❌ नहीं। यह प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है। आदेश रद्द कर दिया गया।
  • क्या कंपनी को कुछ राशि जमा करनी पड़ी?
    ✅ हाँ। कंपनी ने स्वेच्छा से ₹1 लाख जमा करने की पेशकश की, जिसे अदालत ने स्वीकार किया।
  • पुनः सुनवाई के लिए क्या दिशा-निर्देश दिए गए?
    ✅ अधिकारी को 17 मई 2021 तक निर्णय देना होगा, दोनों पक्षों को पूरा मौका देना होगा और अतिरिक्त जमा राशि जरूरत पड़ने पर लौटानी होगी।

मामले का शीर्षक

M/s Tata Projects Ltd. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 7419 of 2019

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 224

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
  • माननीय न्यायमूर्ति एस. कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अनुराग सौरव, श्री अभिनव आलोक, श्री प्रीयजीत पांडे
  • प्रतिवादी की ओर से: श्री विकास कुमार, SC 11

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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