निर्णय की सरल व्याख्या
मार्च 2021 में पटना हाई कोर्ट ने एक आपराधिक अपील पर फैसला सुनाया, जिसमें निचली अदालत द्वारा एक व्यक्ति को बलात्कार के प्रयास और अन्य अपराधों में दोषी ठहराया गया था। यह मामला दिखाता है कि आपराधिक मामलों में विशेषकर यौन अपराधों में गवाही की विश्वसनीयता और आरोपी की पहचान कितनी महत्वपूर्ण होती है।
मामले की पृष्ठभूमि
- अपीलकर्ता पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376/511 (बलात्कार का प्रयास), धारा 354 (महिला की मर्यादा भंग करने हेतु हमला) और धारा 354(B) के तहत मुकदमा चला।
- निचली अदालत ने उसे दोषी ठहराया और सजा सुनाई:
- धारा 376/511 के तहत 7 साल की कठोर कैद और ₹5,000 जुर्माना।
- धारा 354 के तहत 3 साल की कठोर कैद और ₹1,000 जुर्माना।
- धारा 354(B) के तहत 5 साल की कठोर कैद और ₹2,000 जुर्माना।
- सभी सजाएँ एक साथ चलनी थीं।
मामला 2014 की एक रात का था। पीड़िता ने आरोप लगाया कि आरोपी उसके घर की दीवार फाँदकर कमरे में घुसा, हथियार दिखाया, उसके शरीर को छुआ और कपड़े उतारने की कोशिश की। शोर मचाने पर पड़ोसी पहुँचे और आरोपी भाग गया।
निचली अदालत का निर्णय
ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता की प्रारंभिक गवाही पर भरोसा कर दोषसिद्धि दी। अदालत ने कहा कि ऐसे गंभीर मामलों में पक्षकारों के बीच समझौते को आधार बनाकर आरोपी को राहत नहीं दी जा सकती।
हाई कोर्ट का विश्लेषण
अपील सुनते हुए पटना हाई कोर्ट ने सबूतों की बारीकी से जाँच की और निम्न बातें सामने आईं:
- अंधेरे में पहचान न हो पाना:
- जिरह में पीड़िता ने खुद कहा कि रात अंधेरी थी और वह पहचान नहीं पाई कि कमरे में कौन आया था।
- इससे आरोपी की पहचान पर गंभीर संदेह पैदा हुआ।
- पड़ोसियों की गवाही अविश्वसनीय:
- गवाह (PW 1, PW 2, PW 3) प्रत्यक्षदर्शी नहीं थे। वे केवल पीड़िता से सुनी-सुनाई बात बता रहे थे।
- PW 3 ने स्वीकार किया कि वह घटना के 10 मिनट बाद पहुँचा, जिससे उसका दावा कमजोर हुआ।
- समझौते का मुद्दा:
- पीड़िता और आरोपी के परिवार के बीच इस मामले और एक प्रतिवाद मामले में समझौता हुआ था।
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में समझौते को आधार नहीं बनाया जा सकता, लेकिन यहाँ असली वजह सबूतों की कमजोरी थी।
- संदेह का लाभ:
- अदालत ने कहा कि जब पीड़िता खुद पहचान नहीं कर पाई और अन्य गवाहियों में विरोधाभास था, तो आरोपी को संदेह का लाभ देना जरूरी है।
हाई कोर्ट का अंतिम निर्णय
- दोषसिद्धि और सजा दोनों रद्द कर दी गईं।
- आरोपी, जो 2019 से जेल में था, को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
- आपराधिक न्याय व्यवस्था के लिए: यह फैसला दोहराता है कि दोषसिद्धि तभी संभव है जब आरोप संदेह से परे साबित हों। पहचान न होना आरोपी के बचाव का मजबूत आधार है।
- पीड़ितों और गवाहों के लिए: बयानबाजी में विरोधाभास या पहचान में असमर्थता से मुकदमे की नींव कमजोर हो सकती है।
- निचली अदालतों के लिए: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समझौते के बावजूद फैसला सबूतों पर आधारित होना चाहिए, न कि अनुमान या दबाव पर।
- आरोपी के अधिकारों के लिए: यह निर्णय दिखाता है कि कमजोर या विरोधाभासी सबूतों पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या पीड़िता की गवाही दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त थी?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: पीड़िता ने खुद कहा कि वह अंधेरे में आरोपी की पहचान नहीं कर सकी।
- क्या पड़ोसियों की गवाही से घटना साबित हुई?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: वे प्रत्यक्षदर्शी नहीं थे और उनकी गवाही विरोधाभासी थी।
- क्या समझौता आरोपी को बरी करने का आधार बना?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: आरोपी को बरी करने का कारण सबूतों की कमी थी, केवल समझौता नहीं।
- अंतिम परिणाम
- दोषसिद्धि और सजाएँ रद्द।
- आरोपी को तुरंत रिहा करने का आदेश।
मामले का शीर्षक
Appellant v. State of Bihar
केस नंबर
Criminal Appeal (SJ) No. 3154 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 246
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति बीरेन्द्र कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ता की ओर से: श्री विक्रम देव सिंह, अधिवक्ता; श्री शंकर कुमार, अधिवक्ता; श्री सदा नंद राय, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री सैयद अशफाक अहमद, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
MjQjMzE1NCMyMDE5IzEjTg==-OuxSsbdNUjM=
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