निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला एक पूर्व विधायक से जुड़ा है, जिन्होंने पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सरकारी विभाग द्वारा माँगे गए मकान किराए को चुनौती दी थी। मामला इस प्रकार था—
जब वे बिहार विधानसभा के सदस्य थे, तब उन्हें सरकारी आवास मिला था। उन्होंने मार्च 2014 में सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद भी वे उस आवास में बने रहे। इसी को “अवैध रूप से सरकारी मकान में रहना” माना गया और विभाग ने उनके खिलाफ ₹20,98,757/- (बीस लाख अठानवे हज़ार सात सौ सत्तावन रुपये) का मकान किराया माँगा।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि उन्हें यह मकान केवल विधायक के नाते ही नहीं मिला था, बल्कि वे राज्य विधायी अध्ययन एवं प्रशिक्षण ब्यूरो (Rajya Vidhayee Adhyayan evam Prashikshan Bureau) से जुड़े थे, इस कारण से वे मकान रखने के हकदार थे।
लेकिन यह पहली बार नहीं था जब उन्होंने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। इससे पहले भी 2015 में जब ₹14,14,118/- का किराया माँगा गया था, तब उन्होंने एक रिट याचिका (CWJC No. 19237/2015) दायर की थी। मगर उस याचिका को उन्होंने जनवरी 2016 में बिना शर्त वापस ले लिया और यह अधिकार सुरक्षित नहीं किया कि भविष्य में वही मुद्दा फिर से उठा सकेंगे।
अब 2016 में दूसरी बार, उन्होंने उसी मकान और उसी मुद्दे (अवैध कब्ज़ा और किराया माँगने) को चुनौती दी। अंतर केवल इतना था कि इस बार रकम ज़्यादा थी क्योंकि समय बीत चुका था।
राज्य की ओर से दलील दी गई कि जब पहले वाली याचिका वापस ले ली गई और कोई अधिकार सुरक्षित नहीं किया गया, तो दूसरी बार वही मुद्दा कोर्ट में लाना सही नहीं है।
हाई कोर्ट ने इस पर विचार करते हुए साफ कहा कि—
- एक ही मुद्दे पर बार-बार रिट याचिका दाखिल करना सही नहीं है।
- अगर पहली याचिका वापस लेते समय कोर्ट से अनुमति नहीं ली गई, तो दूसरी याचिका चल नहीं सकती।
- यह कानून का सिद्धांत है कि कोई भी पक्ष एक साथ “दो बातें” नहीं कह सकता—पहले कुछ और कहना और बाद में वही मुद्दा दोबारा उठाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
कोर्ट ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Joint Action Committee of Airline Pilots’ Associations of India v. DGCA, (2011) 5 SCC 435 पर भरोसा किया। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि यदि याचिका बिना अनुमति वापस ली जाती है, तो वही मुद्दा दूसरी बार उठाना संभव नहीं है।
इसलिए, पटना हाई कोर्ट ने 13 जनवरी 2021 को यह दूसरी याचिका खारिज कर दी। हालांकि, कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि याचिकाकर्ता द्वारा दाखिल सिविल मुकदमे (Title Suit No. 03/2016) पर इस आदेश का कोई असर नहीं होगा और वह मुकदमा अपने गुण-दोष के आधार पर तय किया जाएगा।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- पूर्व विधायकों और अधिकारियों के लिए संदेश: सरकारी आवास केवल कार्यकाल तक के लिए दिया जाता है। उसके बाद उसमें रहने से भारी-भरकम किराया वसूला जा सकता है।
- आम जनता और याचिकाकर्ताओं के लिए सीख: अगर कोर्ट में कोई याचिका वापस लेते हैं, तो दोबारा उसी मुद्दे पर याचिका दाखिल नहीं की जा सकती। अगर ज़रूरी हो तो पहली बार ही “भविष्य में दोबारा याचिका दाखिल करने का अधिकार सुरक्षित” करना चाहिए।
- सरकारी विभागों के लिए महत्व: यह फैसला सरकारी मकानों और संपत्तियों से जुड़े विवादों में राज्य के अधिकार को मज़बूत करता है। जो भी सरकारी मकान का दुरुपयोग करेगा, उससे वसूली की जा सकती है।
- न्यायिक व्यवस्था के लिए संकेत: अदालतें चाहती हैं कि लोग बार-बार एक ही विवाद को अलग-अलग मुकदमों में न घसीटें। इससे समय और संसाधनों की बर्बादी होती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या एक ही मुद्दे पर दूसरी बार रिट याचिका दाखिल की जा सकती है, अगर पहली बार बिना अनुमति याचिका वापस ली गई हो?
❌ नहीं। कोर्ट ने कहा कि यह “estoppel” और “waiver” के सिद्धांत के खिलाफ है। - क्या सरकारी आवास छोड़ने के बाद भी उसमें रहना और किराया न देना जायज़ है?
❌ नहीं। इस पर कोर्ट ने सीधा फैसला नहीं दिया क्योंकि याचिका ख़ारिज कर दी गई, लेकिन यह मुद्दा सिविल मुकदमे में तय होगा।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Joint Action Committee of Airline Pilots’ Associations of India v. DGCA, (2011) 5 SCC 435
मामले का शीर्षक
Avanish Kumar Singh बनाम State of Bihar एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 19359 of 2016
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 251
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद (दिनांक 13.01.2021, अपलोड 06.03.2021)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री विजय कुमार, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री महेंद्र प्रसाद वर्मा, AC to SC-20
- बिहार विधान परिषद की ओर से (प्रतिवादी 7 और 8): श्री कौशल कुमार झा, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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