निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है जिसमें स्टोन चिप्स और गिट्टी हटाने के अधिकार, खनन पट्टा (lease) की समाप्ति के बाद भी, साफ किए गए हैं। मामला नवादा जिले की दो खनन ब्लॉकों से जुड़ा था।
एक बड़ी निर्माण कंपनी, जो राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों का काम कर रही थी, ने यह याचिका दायर की थी। कंपनी का कहना था कि पट्टा अवधि खत्म होने के बाद भी खदान में लाखों घनफीट स्टोन चिप्स और गिट्टी पड़ी हुई है। अगर उसे हटाने की अनुमति नहीं मिली तो राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण कार्य रुक जाएगा और उसे भारी आर्थिक नुकसान होगा।
पट्टा 30.12.2020 को खत्म हो गया था। उसके बाद 2 जून 2021 को जिला खनन कार्यालय ने निरीक्षण किया और पाया कि करीब 13,45,400 घनफीट टूटी हुई गिट्टी और पत्थर साइट पर पड़े हैं। उसी दिन जारी आदेश से कंपनी को 6 महीने का समय (3 दिसंबर 2021 तक) दिया गया कि वह ये गिट्टी और मशीनें हटा सकती है।
बाद में 17 अगस्त 2021 को कलेक्टर, नवादा ने भी लिखित अनुमति दी कि कंपनी 19 फरवरी 2022 तक सारी गिट्टी, बोल्डर और मशीनें हटा सकती है। लेकिन अचानक 31 अगस्त 2021 को एक और आदेश आया जिसमें यह अनुमति वापस ले ली गई और सिर्फ मशीनें हटाने की इजाजत दी गई, गिट्टी या पत्थर नहीं।
इसके बाद, 15 सितंबर 2021 को निदेशक, खान (Director, Mines) ने आदेश दिया कि पट्टा खत्म होने के छह महीने बाद खदान में बचा कोई भी सामान सरकार जब्त कर सकती है।
इस उलझन में कंपनी को काम रुकने का खतरा था, क्योंकि गिट्टी नहीं हटाई गई तो सड़क निर्माण भी रुक जाएगा।
सरकार की ओर से कहा गया कि अगर कंपनी को गिट्टी ले जाने दिया गया तो जीएसटी का नुकसान हो सकता है। कंपनी ने कहा कि उसने पहले ही रॉयल्टी जमा कर दी है और कोविड-19 के कारण देरी हुई।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह फैसला दिया।
न्यायालय ने कहा:
- खनन नियमों (Bihar Minor Mineral Concession Rules, 1972) के अनुसार खनन पट्टा देने या हटाने का अधिकार सिर्फ जिला कलेक्टर के पास है। निदेशक या सहायक निदेशक इस प्रक्रिया में दखल नहीं दे सकते।
- पहले कलेक्टर ने गिट्टी हटाने की अनुमति दी थी, लेकिन अचानक उसे बिना कारण वापस ले लेना “मनमाना और गलत” है।
- इस तरह की मनमानी से राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण में देरी हुई और कंपनी को भी भारी नुकसान हुआ।
- इसलिए कंपनी को दो महीने के भीतर साइट से सारी गिट्टी हटाने की अनुमति दी जाती है।
- अगर गिट्टी की मात्रा दोबारा नापने की जरूरत पड़ी तो यह काम एक हफ्ते में पूरा करना होगा।
- कंपनी को यह सुनिश्चित करना होगा कि रॉयल्टी और जीएसटी, जो भी देय है, वह इसी अवधि में चुका दिया जाए।
- खान विभाग और राज्य कर विभाग को निर्देश दिया गया है कि भविष्य में ऐसे मामलों में सतर्क रहें ताकि सरकार का राजस्व सुरक्षित रहे।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
इस फैसले का असर न सिर्फ इस कंपनी पर बल्कि पूरे राज्य की खनन और सड़क निर्माण व्यवस्था पर पड़ेगा।
- सार्वजनिक परियोजनाओं की सुरक्षा – राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों जैसे सार्वजनिक कामों में देरी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने साफ किया कि जब गिट्टी पहले से निकाली जा चुकी है, तो उसे हटाने से रोकना गैरकानूनी है।
- राजस्व की रक्षा – सरकार की चिंता सही थी कि जीएसटी या रॉयल्टी का नुकसान न हो। कोर्ट ने संतुलन बनाया कि कंपनी गिट्टी हटा सकती है, लेकिन टैक्स और रॉयल्टी की अदायगी समय पर करनी होगी।
- प्रशासनिक पारदर्शिता – इस फैसले से यह साफ हुआ कि केवल कलेक्टर को खनन पट्टा और उससे जुड़े आदेश जारी करने का अधिकार है। ऊंचे पद पर बैठे अधिकारी भी बिना अधिकार के हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
- जनहित पर जोर – कोर्ट ने माना कि सरकारी आदेशों की मनमानी से जनता के काम, जैसे सड़क निर्माण, प्रभावित नहीं होने चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या पट्टा खत्म होने के बाद भी गिट्टी हटाने का अधिकार दिया जा सकता है?
✔ हाँ। अगर गिट्टी पहले ही निकाली जा चुकी है तो उसे हटाने से रोकना गैरकानूनी है। - क्या निदेशक या सहायक निदेशक, कलेक्टर के आदेश को बदल सकते हैं?
✘ नहीं। कानून के अनुसार सिर्फ कलेक्टर के पास यह अधिकार है। - राजस्व की सुरक्षा कैसे होगी?
✔ कंपनी को गिट्टी हटाने की अनुमति मिली लेकिन शर्त रखी गई कि वह दो महीने के भीतर रॉयल्टी और जीएसटी चुका दे। - अगर गिट्टी की मात्रा पर विवाद हुआ तो?
✔ एक हफ्ते के भीतर दोबारा नापने का आदेश दिया गया है और कंपनी के प्रतिनिधि की मौजूदगी जरूरी होगी।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- India Cement Ltd. v. State of Tamil Nadu, 1990 AIR 85 (7-Judge Bench)
- State of West Bengal v. Kesoram Industries Ltd., AIR 2005 SC 1646 (5-Judge Bench)
- Bharat Sanchar Nigam Ltd. v. Union of India, (2006) 3 SCC 1
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- State of U.P. v. Mohd. Nooh, 1958 SC 86
- E.P. Royappa v. State of Tamil Nadu, AIR 1974 SC 555
- R.D. Shetty v. International Airport Authority, 1979 (3) SCC 489
- Maneka Gandhi v. Union of India, 1978 (1) SCC 248
- State of NCT of Delhi v. Sanjeev @ Bittoo, 2005 (5) SCC 181
मामले का शीर्षक
एम/एस बी.एस.सी.पी.एल. इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (खनन विभाग)
केस नंबर
CWJC No. 12414 of 2023
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायाधीश श्री पुर्नेंदु सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याची की ओर से: श्री उमेश प्रसाद सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता
- खान विभाग की ओर से: श्री नरेश दीक्षित, श्री उतर्व आनंद, श्री बृज बिहारी तिवारी
- राज्य की ओर से: श्री विकास कुमार (SC-11), श्री ज्ञान प्रकाश ओझा (GA-7)
निर्णय का लिंक
MTUjMTI0MTQjMjAyMyMxI04=-tRKCxccgse4=
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