पटना हाईकोर्ट का फैसला: आपराधिक सजा के बाद सरकारी नौकरी से बर्खास्तगी सही ठहराई गई (2024)

पटना हाईकोर्ट का फैसला: आपराधिक सजा के बाद सरकारी नौकरी से बर्खास्तगी सही ठहराई गई (2024)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट कर दिया कि अगर किसी सरकारी कर्मचारी को आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया है, तो विभाग उसे नौकरी से बर्खास्त कर सकता है और इसके लिए अलग से विभागीय जांच चलाने की आवश्यकता नहीं है।

इस मामले में एक कर्मचारी, जो बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (BSEB) में सेक्शन ऑफिसर के पद पर कार्यरत था, पर सीबीआई ने मुकदमा दर्ज किया था। आरोप था कि उसने प्रमाणपत्र सत्यापन के दौरान अनियमितता और धोखाधड़ी की। 2014 में ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी ठहराते हुए जेल की सजा और जुर्माना लगाया। 2019 में उसकी अपील भी खारिज हो गई। इसके बाद बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया।

कर्मचारी ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर कर बर्खास्तगी को चुनौती दी। उसका कहना था कि –

  1. बर्खास्तगी का आदेश सचिव ने जारी किया, जबकि नियमानुसार यह अधिकार केवल अध्यक्ष के पास है।
  2. उसे विभागीय जांच का मौका नहीं दिया गया।
  3. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने उसकी सजा पर रोक (suspension of sentence) लगा दी है, इसलिए बर्खास्तगी उचित नहीं है।
  4. 2007 की सरकारी परिपत्र (circular) के अनुसार विभागीय जांच आवश्यक थी।

पटना हाईकोर्ट ने इन सभी दलीलों को खारिज कर दिया।

कोर्ट का विश्लेषण

  • सबसे पहले अदालत ने रिकॉर्ड देखा और पाया कि सचिव ने बर्खास्तगी का आदेश अध्यक्ष की पूर्व अनुमति से जारी किया था। इसलिए आदेश वैध है।
  • दूसरा, अदालत ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311(2)(a) के तहत यदि किसी कर्मचारी को आपराधिक मामले में सजा हुई है, तो उसके खिलाफ विभागीय जांच अनिवार्य नहीं है। सीधे बर्खास्त किया जा सकता है। हाँ, उचित प्रक्रिया के तहत उसे कारण बताओ नोटिस (show-cause notice) और जवाब देने का अवसर दिया जा सकता है।
  • तीसरा, सजा पर रोक (suspension of sentence) का मतलब यह नहीं है कि दोषसिद्धि (conviction) खत्म हो गई। जब तक दोषसिद्धि बनी हुई है, विभाग उसे सेवा में रखने को बाध्य नहीं है। अगर बाद में ऊपरी अदालत से बरी हो जाता है, तो पुनः बहाली और लाभ मिल सकते हैं।
  • चौथा, अदालत ने यह भी कहा कि सरकारी परिपत्र (2007) केवल दिशा-निर्देश है, यह संविधान और कानून से ऊपर नहीं हो सकता।
  • अंत में अदालत ने याचिका खारिज करते हुए बर्खास्तगी को सही ठहराया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सरकारी सेवाओं में ईमानदारी और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।

  • आम जनता के लिए संदेश यह है कि सरकारी नौकरी में रहते हुए भ्रष्टाचार या धोखाधड़ी जैसे गंभीर अपराधों में दोषी पाए जाने पर नौकरी सुरक्षित नहीं रहेगी।
  • सरकारी विभागों के लिए यह फैसला एक गाइडलाइन है कि अगर कोई कर्मचारी अपराध में दोषी पाया जाता है, तो विभाग उसे बिना लंबी विभागीय जांच के हटा सकता है, बशर्ते कि उसे अपनी बात रखने का अवसर दिया गया हो।
  • यह भी स्पष्ट किया गया कि केवल सजा पर रोक लग जाने से नौकरी नहीं बचाई जा सकती। दोषसिद्धि जब तक कायम है, तब तक विभाग कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या सचिव को बर्खास्तगी का आदेश जारी करने का अधिकार था?
    ✔ हाँ, क्योंकि अध्यक्ष की पूर्व अनुमति थी।
  • क्या विभागीय जांच अनिवार्य थी?
    ✔ नहीं। अनुच्छेद 311(2)(a) के अनुसार दोषसिद्धि के बाद विभागीय जांच की आवश्यकता नहीं।
  • क्या सजा पर रोक का मतलब दोषसिद्धि खत्म होना है?
    ✔ नहीं। दोषसिद्धि बनी रहती है, इसलिए विभाग कार्रवाई कर सकता है।
  • क्या सरकारी परिपत्र (2007) कानून से ऊपर है?
    ✔ नहीं। यह केवल मार्गदर्शन है, संविधान और कानून प्रभावी रहेंगे।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • शिओ बिहारी राय बनाम बिहार राज्य एवं अन्य, LPA No. 1111 of 2000 – जिसमें कहा गया था कि अनुच्छेद 311 का संरक्षण दोषसिद्धि पर लागू नहीं होता।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • S. Nagoor Meera (1995) 3 SCC 377 – सजा पर रोक का मतलब दोषसिद्धि पर रोक नहीं है।
  • Shankar Dass v. Union of India (1985) 2 SCC 358 – सजा उचित और न्यायसंगत होनी चाहिए।
  • State of Tamil Nadu v. K. Guruswamy (1996) 7 SCC 114 – दोषसिद्धि के बाद कार्रवाई संभव।
  • Union of India v. Ramesh Kumar (1997) 7 SCC 514 – दोषसिद्धि कायम रहते हुए बर्खास्तगी वैध।
  • Suryadeo Singh v. State of Bihar (2011) 1 PLJR 28 – बिना विभागीय जांच के भी दंड दिया जा सकता है, पर जवाब देने का अवसर जरूरी है।
  • Subrata Basu v. State of Bihar (2013) 3 PLJR 608 – आचरण नियमों का उल्लंघन दोषसिद्धि पर सिद्ध।
  • Sarju Prasad Singh v. State of Bihar (1987 PLJR 285) – गंभीर अपराध नैतिक पतन (moral turpitude) की श्रेणी में आता है।

मामले का शीर्षक

मिथिलेश प्रसाद बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 5099 of 2020

उद्धरण (Citation)

2025 (1) PLJR 574

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति हरीश कुमार (निर्णय दिनांक 19.12.2024)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

याचिकाकर्ता की ओर से – श्री मनीक वेदसेन, अधिवक्ता
प्रतिवादी (BSEB) की ओर से – श्री सिद्धार्थ प्रसाद, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

MTUjNTA5OSMyMDIwIzEjTg==-AnY1tORsRVg=

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News