निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि यदि आवश्यक वस्तु अधिनियम (Essential Commodities Act) के तहत जब्त वाहन या वस्तु पर प्रशासन ने अभी तक ज़ब्ती (confiscation) की कार्यवाही शुरू नहीं की है, तो उस स्थिति में जिला पदाधिकारी को तय समय के भीतर निर्णय लेना होगा — या तो ज़ब्ती कार्यवाही शुरू करें या फिर वाहन की रिहाई का रास्ता साफ करें।
मामले की पृष्ठभूमि इस प्रकार थी: एक लिखित रिपोर्ट के आधार पर 21 अगस्त 2018 को थाना राजेपुर में प्राथमिकी (राजेपुर थाना कांड संख्या 130/2018) दर्ज की गई थी। यह मामला आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 7 के तहत दर्ज हुआ, जिसमें यह आरोप था कि सरकारी राशन (चावल) को काले बाज़ार में बेचने के लिए रखा गया था। छापेमारी के दौरान अधिकारियों ने एक पिकअप वाहन (नं. BR05GA8629) से 37 बोरी चावल जब्त किया।
समस्या यह थी कि वाहन जब्त किए जाने के बाद भी प्रशासन ने कोई ज़ब्ती कार्यवाही शुरू नहीं की थी। इस बात की पुष्टि जिला पदाधिकारी, पूर्वी चंपारण, मोतिहारी के विधि शाखा की चिट्ठी दिनांक 07.06.2019 (पत्र संख्या 2040/Legal) से हुई, जिसमें कहा गया कि वाहन के संबंध में कोई ज़ब्ती मामला लंबित नहीं है। इसी के बाद वाहन स्वामी (याचिकाकर्ता) ने एस.डी.जे.एम., मोतिहारी के समक्ष वाहन की रिहाई के लिए आवेदन भी दायर किया।
उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने अनुरोध किया कि यह मामला “बब्लू कुमार दास बनाम बिहार राज्य” (Cr. WJC No. 246/2016, निर्णय दिनांक 13.05.2016) के समान आधार पर निपटाया जाए। राज्य सरकार की ओर से इस पर कोई आपत्ति नहीं की गई। अदालत ने सहमति से उसी पूर्व निर्णय के आधार पर यह मामला निपटा दिया।
अदालत के मुख्य निर्देश इस प्रकार थे:
- जिला पदाधिकारी, पूर्वी चंपारण, मोतिहारी को निर्देश दिया गया कि वे इस मामले में “कानून के अनुसार” निर्णय लें — और यह निर्णय आदेश की प्रति प्राप्त होने के दो सप्ताह के भीतर दिया जाना चाहिए।
- यदि जिला पदाधिकारी यह पाते हैं कि वाहन या वस्तु की ज़ब्ती उचित है, तो वे आवश्यक रूप से ज़ब्ती की कार्यवाही प्रारंभ करें और उसी के परिणाम के अनुसार वाहन की रिहाई या ज़ब्ती का निर्णय लें।
- यदि जिला पदाधिकारी यह तय करते हैं कि ज़ब्ती कार्यवाही प्रारंभ नहीं करनी है, तो वे यह निर्णय संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट को सूचित करें। इसके बाद मजिस्ट्रेट को वाहन की रिहाई पर विचार करने का अधिकार होगा।
यह व्यवस्था प्रशासनिक देरी या “अनिश्चित ज़ब्ती” की स्थिति को समाप्त करती है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब्त वाहन को बिना विधिक कार्यवाही के अनिश्चित काल तक रोक कर नहीं रखा जा सकता। या तो ज़ब्ती की प्रक्रिया शुरू की जाए या वाहन को मुक्त किया जाए।
यह निर्णय प्रशासन और आम नागरिक — दोनों के लिए संतुलन लाता है।
- एक ओर, सरकारी अनाज की कालाबाज़ारी जैसे गंभीर मामलों पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित होती है।
- दूसरी ओर, वाहन मालिक या व्यवसायी के जीवन-यापन के साधन को अनावश्यक रूप से प्रभावित नहीं होने दिया जाता।
न्यायालय का यह आदेश इस बात को भी दोहराता है कि राज्य का अधिकार नागरिक के अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकता। कानून के तहत हर कदम समयबद्ध और पारदर्शी होना चाहिए।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह आदेश केवल एक व्यक्ति या वाहन तक सीमित नहीं है — बल्कि यह पूरे राज्य प्रशासन और आम जनता दोनों के लिए दिशानिर्देश का काम करता है।
- अब जिला पदाधिकारी को दो सप्ताह की समय-सीमा में निर्णय लेना अनिवार्य है। इससे महीनों या वर्षों तक वाहन जब्त रखे जाने की प्रवृत्ति समाप्त होगी।
- अगर ज़ब्ती की कार्यवाही नहीं शुरू की जाती, तो मजिस्ट्रेट को स्वतः अधिकार मिल जाता है कि वे वाहन रिहा करने पर विचार करें।
- इससे गरीब या छोटे व्यवसायियों को राहत मिलती है, जिनके वाहन रोज़ी-रोटी का साधन होते हैं।
- सरकारी एजेंसियों के लिए यह संदेश है कि वे कार्यवाही “कानून के अनुसार” और “समयबद्ध” करें।
- आम जनता को भी यह समझने में आसानी होगी कि अगर उनका वाहन या संपत्ति प्रशासन ने जब्त किया है, तो वे अनिश्चित प्रतीक्षा में नहीं रहेंगे।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या बिना ज़ब्ती कार्यवाही शुरू किए जब्त वाहन को लंबे समय तक रोका जा सकता है?
❖ निर्णय: नहीं। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि या तो ज़ब्ती की कार्यवाही प्रारंभ की जाए या फिर वाहन की रिहाई पर निर्णय लिया जाए।
❖ तर्क: ऐसा करना “कानून के अनुसार कार्यवाही” की श्रेणी में आता है और यह बब्लू कुमार दास मामले के अनुरूप है। - यदि ज़ब्ती नहीं की जाती, तो वाहन की रिहाई का अधिकार किसे है?
❖ निर्णय: संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट को।
❖ तर्क: जैसे ही जिला पदाधिकारी यह निर्णय लेते हैं कि ज़ब्ती कार्यवाही नहीं होगी, मजिस्ट्रेट को अधिकार प्राप्त होता है कि वे रिहाई पर निर्णय लें। - जब दोनों पक्ष पहले के निर्णय पर सहमत हों, तो अदालत का क्या रुख होना चाहिए?
❖ निर्णय: अदालत उसी निर्णय के अनुसार मामला निपटा सकती है।
❖ तर्क: इससे समय की बचत होती है और कानून का समान रूप से पालन सुनिश्चित होता है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- बब्लू कुमार दास बनाम बिहार राज्य, Cr. WJC No. 246/2016, आदेश दिनांक 13.05.2016 — याचिकाकर्ता द्वारा इस आदेश के समान निर्णय की मांग की गई।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- बब्लू कुमार दास बनाम बिहार राज्य, Cr. WJC No. 246/2016, आदेश दिनांक 13.05.2016 — अदालत ने इसी आधार पर मामला निपटाया।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 25572 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 320
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति प्रभात कुमार सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री करनदीप कुमार — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री अरविंद उज्ज्वल (SC-4) — राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
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