निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने क्रिमिनल अपील (एस.जे.) संख्या 3425/2017 और 280/2018 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए गया जिले के एक कथित अपहरण और दुष्कर्म मामले में निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को रद्द कर दिया।
माननीय न्यायमूर्ति बिरेन्द्र कुमार ने कहा कि अभियोजन (Prosecution) द्वारा प्रस्तुत सबूत न केवल असंगत थे बल्कि पीड़िता की उम्र और बयान में गंभीर विरोधाभास थे। इसलिए, आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए दोनों को बरी (acquitted) किया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 3 फरवरी 2011 को दर्ज एक एफआईआर से शुरू हुआ था।
पीड़िता के पिता ने बताया कि उनकी लगभग 15 वर्ष की बेटी 20 जनवरी 2011 को सुबह घर से लापता हो गई थी। बाद में जानकारी मिली कि गांव के दो युवकों ने उसे बहला-फुसलाकर ले जाया।
पुलिस ने जांच के दौरान लड़की और एक आरोपी राजेश चौधरी को बरामद किया। दोनों को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, जहाँ लड़की ने धारा 164 सीआरपीसी के तहत बयान दिया।
उसने बताया कि वह 19 वर्ष की है, आरोपी राजेश के साथ एक साल से प्रेम संबंध में थी, और परिवार के विरोध के कारण उसने स्वेच्छा से घर छोड़ा। दोनों दिल्ली गए, एक कमरे में साथ रहे और बाद में गया कोर्ट में विवाह किया।
लेकिन मुकदमे के दौरान उसने पूरी कहानी बदल दी — अब उसने कहा कि दोनों आरोपियों ने उसे खेत से लौटते वक्त मोटरसाइकिल पर जबरन उठा लिया और दिल्ली ले जाकर दुष्कर्म किया।
निचली अदालत (फास्ट ट्रैक कोर्ट-II, गया) ने दोनों को धारा 366A (नाबालिग लड़की को बहला-फुसलाना) के तहत दोषी ठहराया, और राजेश को धारा 376 (बलात्कार) में भी सजा दी।
राजेश को 7 वर्ष की कठोर कैद, और अनिल चौधरी को 5 वर्ष की कैद सुनाई गई थी।
न्यायालय का विश्लेषण
उच्च न्यायालय ने पूरे साक्ष्य की जांच कर कई गंभीर त्रुटियाँ पाईं —
1. पीड़िता के बयानों में विरोधाभास
- मजिस्ट्रेट के सामने पीड़िता ने कहा कि उसने प्रेमवश घर छोड़ा और राजेश के साथ विवाह किया।
- अदालत में उसने कहा कि उसे जबरन अगवा किया गया और दिल्ली में बलात्कार हुआ।
- न्यायालय ने कहा कि “घटना का तरीका, स्थान और स्वभाव” तीनों में विरोधाभास है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Rai Sandeep v. State (NCT of Delhi) (2012) 8 SCC 21 के अनुसार, केवल “विश्वसनीय और सुसंगत गवाह” को ही sterling witness माना जा सकता है।
यहाँ पीड़िता के बयान इस कसौटी पर खरे नहीं उतरे।
2. पीड़िता की उम्र पर संदेह
- डॉक्टर ने मेडिकल जांच में उम्र 18 वर्ष ±6 माह बताई — यानी वह बालिग भी हो सकती थी।
- स्कूल की ओर से दिया गया पत्र अधूरा था, उसमें स्कूल रजिस्टर या मूल प्रमाणपत्र नहीं जोड़ा गया।
- जिसने रेडियोलॉजिकल जांच (ossification test) की, वह डॉक्टर अदालत में गवाही देने नहीं आया।
न्यायालय ने Jarnail Singh v. State of Haryana (2013) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उम्र सिद्ध करने के लिए सर्वोत्तम साक्ष्य मैट्रिकुलेशन या जन्म प्रमाणपत्र होता है, न कि अनुमान।
इस प्रकार अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि पीड़िता घटना के समय नाबालिग थी।
3. समर्थन करने वाले साक्ष्य का अभाव
- पीड़िता के माता-पिता और बहन सभी सुनी-सुनाई गवाही (hearsay) दे रहे थे।
- चिकित्सक (P.W. 5) ने पाया कि कोई हालिया बलात्कार का संकेत नहीं था, बल्कि यह पुराने संबंध का मामला प्रतीत होता था।
- किसी गवाह ने अपहरण या जबरदस्ती होते नहीं देखा।
न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियाँ
- पीड़िता की गवाही भरोसेमंद नहीं:
उसके अलग-अलग बयानों से यह साबित हुआ कि घटना की सच्चाई संदिग्ध है। - उम्र का प्रमाण अधूरा:
अभियोजन ने कोई ठोस दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं किया। केवल मेडिकल अनुमान पर सजा नहीं दी जा सकती। - कोई ठोस corroboration नहीं:
अन्य साक्ष्य न मिलने से अभियोजन की कहानी अधूरी रही। - संदेह का लाभ अभियुक्तों को:
जब घटना के हर महत्वपूर्ण पहलू पर संदेह हो, तो कानूनन आरोपी को benefit of doubt दिया जाता है।
न्यायालय ने Rajak Mohammad v. State of Himachal Pradesh (2018) 9 SCC 248 के सिद्धांत को दोहराया कि —
“यदि पीड़िता की उम्र को लेकर संदेह हो, तो उसका लाभ आरोपी को मिलना चाहिए।”
अंतिम निर्णय
- दोनों आरोपियों की सजा और दोषसिद्धि रद्द की गई।
- अनिल चौधरी, जो जमानत पर था, को सभी बांड दायित्वों से मुक्त किया गया।
- राजेश चौधरी, जो जेल में था, को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
यह फैसला बताता है कि किसी भी आपराधिक मुकदमे में सजा केवल तभी दी जा सकती है जब:
- साक्ष्य स्पष्ट, सुसंगत और विश्वसनीय हों;
- अभियोजन यह साबित कर दे कि घटना बिना संदेह हुई;
- उम्र या सहमति जैसे महत्वपूर्ण तथ्यों पर कोई संदेह न हो।
न्यायालय ने कहा कि करुणा (sympathy) या भावना (emotion) के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती —
न्याय का आधार केवल सत्य और प्रमाण होना चाहिए।
इस फैसले से पुलिस और अभियोजन एजेंसियों को यह सीख मिलती है कि ऐसे मामलों में गवाही दर्ज करने, उम्र प्रमाण जुटाने और जांच की शुद्धता पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।
कानूनी मुद्दे और न्यायालय का निर्णय
- क्या पीड़िता नाबालिग थी?
➤ नहीं। उम्र का कोई ठोस प्रमाण नहीं था। - क्या पीड़िता की गवाही पर्याप्त थी?
➤ नहीं। उसके बयान असंगत और अविश्वसनीय थे। - क्या अभियोजन ने अपहरण और दुष्कर्म साबित किया?
➤ नहीं। कोई प्रत्यक्ष या सहायक साक्ष्य नहीं मिला। - अंतिम परिणाम:
➤ दोनों आरोपियों को बरी किया गया।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Rai Sandeep v. State (NCT of Delhi), (2012) 8 SCC 21
- Santosh Prasad v. State of Bihar, (2020) 3 SCC 443
- State of M.P. v. Munna @ Shambhu Nath, (2016) 1 SCC 696
- Sunil v. State of Haryana, AIR 2010 SC 392
- Jarnail Singh v. State of Haryana, (2013) Cri LJ 3976
- Rajak Mohammad v. State of Himachal Pradesh, (2018) 9 SCC 248
मामले का शीर्षक
अपीलकर्ता बनाम बिहार राज्य
केस नंबर
Criminal Appeal (SJ) No. 3425 of 2017
साथ में
Criminal Appeal (SJ) No. 280 of 2018
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 347
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति बिरेन्द्र कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ताओं की ओर से: श्री धीरेंद्र कुमार सिन्हा, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री बिनोद बिहारी सिंह, ए.पी.पी.
निर्णय का लिंक
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