पटना उच्च न्यायालय का फैसला: मृत सरकारी कर्मचारी के परिजनों को एसीपी लाभ देने का आदेश

पटना उच्च न्यायालय का फैसला: मृत सरकारी कर्मचारी के परिजनों को एसीपी लाभ देने का आदेश

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने सिविल रिट जुरिस्डिक्शन केस नं. 948/2021 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि एश्योर्ड करियर प्रोग्रेशन (ACP) का लाभ मृत सरकारी कर्मचारी के परिवार को भी दिया जाएगा, भले ही कर्मचारी ने विभागीय लेखा परीक्षा (departmental accounts examination) पास न की हो।

याचिकाकर्ता, जो मृत कर्मचारी का पुत्र है, ने यह याचिका दायर की थी कि उनके दिवंगत पिता को एसीपी (ACP) का लाभ 09.08.1999 से दिया जाए और उसके अनुसार सभी बकाया राशि का भुगतान किया जाए।

याचिकाकर्ता के पिता ने 1 अप्रैल 1970 को सेवा ज्वाइन की थी और 16 अक्टूबर 2005 को सेवा के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई थी। वे ग्रामीण विकास विभाग, समस्तीपुर में Correspondence Clerk के पद पर कार्यरत थे। विभाग ने यह कहते हुए एसीपी लाभ देने से इंकार कर दिया कि उन्होंने विभागीय लेखा परीक्षा पास नहीं की थी।

पहले याचिकाकर्ता की माता ने भी इस संबंध में CWJC No. 12832/2013 दायर किया था, लेकिन उसे वापस ले लिया गया क्योंकि उस समय यह कहा गया था कि उनके पति की सेवा “कन्फर्म” नहीं हुई थी। बाद में पता चला कि उनकी सेवा पक्की हो चुकी थी, फिर भी विभाग ने एसीपी का लाभ नहीं दिया।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि एसीपी का लाभ विभागीय परीक्षा पास करने पर निर्भर नहीं है। इसके लिए उन्होंने State of Bihar v. Jivachi Devi (2020) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें उच्च न्यायालय ने कहा था कि केवल परीक्षा न पास करने के आधार पर एसीपी रोकी नहीं जा सकती।

न्यायालय की विश्लेषणात्मक टिप्पणियाँ

माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह विषय अब विवाद का नहीं रहा क्योंकि इस पर कई बार उच्च न्यायालय और खंडपीठें फैसला दे चुकी हैं। इनमें प्रमुख हैं — Jivachi Devi (2020), Bishwanath Prasad (2011), Avinash Chandra Singh (2012), Uday Shankar Prasad (2017) और Ramadhar Thakur (2018)

इन फैसलों में यह साफ कहा गया था कि:

  • विभागीय लेखा परीक्षा केवल “सेलेक्शन ग्रेड” में पदोन्नति या “इफिशिएंसी बार” पार करने के लिए आवश्यक है।
  • लेकिन एसीपी का लाभ पाने के लिए ऐसी परीक्षा पास करना अनिवार्य नहीं है, जब तक कि किसी विभागीय नियम में इसका स्पष्ट उल्लेख न हो।

खंडपीठ ने Ramadhar Thakur v. State of Bihar (LPA No. 599/2015) में नियम 157(3)(J) (Bihar Boards Miscellaneous Rules, 1958) की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा था कि एसीपी लाभ केवल परीक्षा न पास करने के आधार पर नहीं रोका जा सकता।

इन सिद्धांतों को अपनाते हुए, पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के पिता को एसीपी का लाभ न देना कानून के विरुद्ध है।

अतः अदालत ने निर्देश दिया कि —

  • याचिकाकर्ता के पिता को एसीपी का लाभ उस तिथि से दिया जाए जिस दिन से वह देय हुआ था, और
  • उनके परिजनों को सभी आर्थिक लाभ आठ सप्ताह के भीतर दे दिए जाएं।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

यह फैसला बिहार के सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि एसीपी एक वित्तीय उन्नति योजना है, न कि पदोन्नति। इसलिए इसे केवल विभागीय परीक्षा पास न करने के आधार पर रोका नहीं जा सकता।

आम जनता और कर्मचारियों के परिवारों के लिए यह निर्णय यह भरोसा देता है कि किसी कर्मचारी की दशकों की सेवा का सम्मान तकनीकी कारणों से नहीं छीना जा सकता।

सरकारी विभागों के लिए यह निर्णय एक दिशा-निर्देश है कि—

  • एसीपी लाभ सेवा अवधि पर आधारित है, न कि परीक्षा पर।
  • विभागों को समान नियमों का पालन करना चाहिए ताकि अनावश्यक मुकदमेबाजी से बचा जा सके।
  • यह फैसला सेवा नियमों की समान व्याख्या सुनिश्चित करता है और कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा करता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या विभागीय परीक्षा न पास करने से एसीपी रोकी जा सकती है?
    ✦ नहीं। परीक्षा पास करना एसीपी के लिए अनिवार्य नहीं है।
  • क्या मृत कर्मचारी के परिजन एसीपी का लाभ पा सकते हैं?
    ✦ हाँ। मृत कर्मचारी के कानूनी वारिसों को एसीपी का लाभ और सभी बकाया राशि प्राप्त करने का अधिकार है।
  • अदालत ने सरकार को क्या आदेश दिया?
    ✦ संबंधित विभाग आठ सप्ताह के भीतर एसीपी लाभ और सभी बकाया राशि परिजनों को दे।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • State of Bihar v. Jivachi Devi, 2020 (2) BLJ 471
  • Bishwanath Prasad v. State of Bihar, (2011) 2 PLJR 136
  • Avinash Chandra Singh v. State of Bihar, (2012) 1 PLJR 663
  • Uday Shankar Prasad v. State of Bihar, (2017) 3 PLJR 824
  • Ramadhar Thakur v. State of Bihar, LPA No. 599/2015
  • Mithilesh Kumar Sinha v. State of Bihar, (2006) 1 PLJR 282
  • Syed Mozammil Ashraf v. State of Bihar, (2007) 1 PLJR 438
  • Shashi Shekhar Ambasta v. State of Bihar, (2011) 3 PLJR 474
  • Maheshwar Prasad Singh v. State of Bihar, (2000) 4 PLJR 262
  • Rameshwar Roy v. State of Bihar, (2017) 2 PLJR 127
  • Daya Shankar Singh v. State of Bihar, (2010) 3 PLJR 220
  • Md. Shamsuddin v. State of Bihar, 1983 PLJR 347
  • Masomat Indu Devi v. State of Bihar, (2019) 2 PLJR 241

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • State of Bihar v. Jivachi Devi, 2020 (2) BLJ 471
  • Ramadhar Thakur v. State of Bihar, LPA No. 599/2015
  • Masomat Indu Devi v. State of Bihar, (2019) 2 PLJR 241

मामले का शीर्षक

Vijay Kumar Mishra v. The State of Bihar & Ors.

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 948 of 2021

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 404

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री कुंदन कुमार, अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से: श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता (AG)

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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