निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने सिविल रिट जुरिस्डिक्शन केस नं. 7528/2020 में यह स्पष्ट किया कि किसी भी सरकारी कर्मचारी को दी गई सजा तभी वैध होती है जब उसमें स्पष्ट और तर्कपूर्ण कारण दिए गए हों। अदालत ने एक डॉक्टर पर लगाए गए अनुशासनात्मक दंड को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि आदेश “बिना कारण” (unreasoned) था और इसमें अधिकारी द्वारा किसी प्रकार का “विचार” या “तर्क” दिखाई नहीं देता।
यह मामला बिहार स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत कार्यरत एक सरकारी डॉक्टर से संबंधित था, जिन पर यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने बिना अनुमति लंबे समय तक अनुपस्थित रहकर सेवा नियमों का उल्लंघन किया।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता एक सरकारी डॉक्टर थे, जो संशोधित कुष्ठ नियंत्रण इकाई, नालंदा में पदस्थापित थे। उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही 8 फरवरी 2013 को शुरू की गई थी। आरोप था कि उन्होंने 1 मई 2012 से 19 अगस्त 2014 तक बिना अनुमति अनुपस्थित रहकर सेवा का उल्लंघन किया।
डॉक्टर का कहना था कि वे अचानक 14 जून 2012 को बीमार पड़ गए थे। उन्हें सदर अस्पताल नालंदा में भर्ती किया गया, जहाँ से उन्हें बेहतर इलाज के लिए इंदिरा गांधी कार्डियोलॉजी संस्थान (IGIC), पटना भेजा गया। वहाँ जांच के बाद उन्हें हृदय रोग और बाद में पीलिया (जॉन्डिस) की भी शिकायत पाई गई। इस कारण उन्होंने छुट्टी के लिए आवेदन किया और समय-समय पर उसे बढ़ाने के लिए आवेदन भी देते रहे।
फिर भी विभाग ने उनकी अनुपस्थिति को “अनधिकृत” मानते हुए विभागीय जांच शुरू कर दी। एक जांच अधिकारी नियुक्त किया गया, जिसने सभी दस्तावेज़ और साक्ष्य देखकर अपनी रिपोर्ट 27 जनवरी 2014 को प्रस्तुत की और डॉक्टर को सभी आरोपों से बरी (exonerated) कर दिया।
इसके बावजूद अनुशासनिक अधिकारी ने 28 जनवरी 2016 को एक दूसरा कारण बताओ नोटिस (second show cause notice) जारी किया और जांच रिपोर्ट से असहमति जताई। डॉक्टर ने इसका विस्तृत उत्तर 9 मार्च 2016 को दिया। लेकिन विभाग ने बिना उनके उत्तर पर विचार किए 31 अक्टूबर 2016 को आदेश जारी कर दिया जिसमें दो दंड दिए गए—
- एक वेतनवृद्धि (increment) रोकना (बिना संचयी प्रभाव के), और
- अनुपस्थिति अवधि का वेतन रोकना।
न्यायालय की टिप्पणियाँ और निष्कर्ष
माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने कहा कि दंडादेश (punishment order) का अवलोकन करने पर यह स्पष्ट हुआ कि—
- उसमें कोई तर्क या कारण नहीं लिखा गया,
- डॉक्टर द्वारा दिए गए उत्तर का कोई उल्लेख नहीं है, और
- अधिकारी ने यह नहीं बताया कि उन्होंने जांच अधिकारी की रिपोर्ट को क्यों अस्वीकार किया।
अदालत ने कहा कि किसी भी सरकारी निर्णय में तर्कसंगत कारण (reasoned order) देना अनिवार्य है। यह प्राकृतिक न्याय (natural justice) का मूल तत्व है।
न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले Oryx Fisheries Pvt. Ltd. v. Union of India, (2010) 13 SCC 427 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि “बिना कारण दिए गए आदेश पारदर्शिता और निष्पक्षता के सिद्धांतों के विपरीत होते हैं।”
इसलिए, पटना उच्च न्यायालय ने 31.10.2016 का आदेश अवैध घोषित करते हुए रद्द कर दिया। हालांकि, अदालत ने विभाग को यह स्वतंत्रता दी कि यदि वह चाहे तो दूसरे कारण बताओ नोटिस से आगे की प्रक्रिया कानून के अनुसार दोबारा शुरू कर सकता है।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
यह फैसला बिहार सरकार और उसके कर्मचारियों दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अदालत ने दो प्रमुख सिद्धांतों को दोहराया —
- सजा देने से पहले कारण बताना जरूरी है।
- जांच अधिकारी की रिपोर्ट को अस्वीकार करने पर अधिकारी को लिखित रूप से कारण बताने होंगे।
सरकारी कर्मचारियों के लिए यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि—
- यदि वे किसी विभागीय जांच में बरी हो जाते हैं, तो अधिकारी मनमाने ढंग से सजा नहीं दे सकता।
- हर निर्णय “कारण सहित” होना चाहिए।
सरकारी विभागों के लिए यह निर्णय एक चेतावनी है कि—
- किसी भी अनुशासनात्मक कार्यवाही में “आवेदन का मन” और “तर्कसंगत आदेश” अनिवार्य हैं।
- बिना कारण दिए गए आदेश अदालत में टिक नहीं सकते।
यह फैसला प्रशासनिक न्याय की पारदर्शिता को मजबूत करता है और सरकारी सेवा में निष्पक्षता का संदेश देता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या बिना कारण दिए गया दंडादेश वैध है?
✦ नहीं। अदालत ने कहा कि बिना तर्क या कारण के दिया गया आदेश अवैध है। - क्या विभाग जांच अधिकारी की रिपोर्ट को बिना कारण अस्वीकार कर सकता है?
✦ नहीं। ऐसा करने के लिए स्पष्ट कारण दर्ज करना आवश्यक है। - क्या विभाग दोबारा कार्यवाही कर सकता है?
✦ हाँ, अदालत ने विभाग को स्वतंत्रता दी है कि वह दूसरी शो-कॉज नोटिस से आगे की प्रक्रिया फिर से शुरू कर सकता है।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Oryx Fisheries Pvt. Ltd. v. Union of India, (2010) 13 SCC 427 — बिना कारण और पूर्वाग्रहपूर्ण आदेशों को अमान्य घोषित किया गया।
मामले का शीर्षक
Dr. Narendra Prasad Singh v. The State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 7528 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 409
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री सुनील कुमार, अधिवक्ता; श्री पंकज कुमार, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री अजय बिहारी सिन्हा (GA-8), श्री नीरज राज (AC to GA-8)
निर्णय का लिंक
MTUjNzUyOCMyMDIwIzEjTg==-UIE2AMTLy7g=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।