पटना उच्च न्यायालय का फैसला: संपत्ति के स्वामित्व और कब्जे से जुड़ा विवाद रिट याचिका में नहीं, सिविल मुकदमे में तय होगा

पटना उच्च न्यायालय का फैसला: संपत्ति के स्वामित्व और कब्जे से जुड़ा विवाद रिट याचिका में नहीं, सिविल मुकदमे में तय होगा

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि भूमि या भवन के स्वामित्व (Ownership) और कब्जे (Possession) से जुड़े विवादों का निपटारा रिट याचिका (Writ Petition) के माध्यम से नहीं किया जा सकता। ऐसे विवादों को साक्ष्य और गवाही के आधार पर केवल सिविल कोर्ट (दीवानी न्यायालय) में तय किया जा सकता है।

यह मामला मोतिहारी (जिला-पूर्वी चंपारण) की एक दो-मंजिला इमारत से जुड़ा था। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह उनकी पुश्तैनी निजी संपत्ति है, जबकि राज्य प्रशासन और कुछ अन्य व्यक्तियों का कहना था कि यह एक धर्मशाला (Dharamshala) है जो मारवाड़ी समाज की सार्वजनिक ट्रस्ट संपत्ति है।

याचिकाकर्ताओं ने पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर यह मांग की थी कि—

  1. उन्हें फिर से उस भवन का कब्जा दिलाया जाए, जिससे उन्हें जबरन बेदखल कर दिया गया।
  2. जिला प्रशासन को उस संपत्ति में हस्तक्षेप करने से रोका जाए।

पृष्ठभूमि

विवादित संपत्ति खाता नंबर 122 के अंतर्गत कई प्लॉटों (474, 472, 475, 447, 458, 459, 466, 470, 461, 462 और 471) पर स्थित है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह जमीन उनके परिवार को 1940 के दशक में रजिस्टर्ड बिक्री विलेखों के माध्यम से मिली थी। उनके दादा ने 1965 में इस पर एक दो-मंजिला इमारत बनाई थी, जिसे मारवाड़ी विवाह भवन के नाम से जाना जाता था।

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह पूरी तरह निजी संपत्ति थी। उन्होंने इसे विवाह और सेमिनार आदि के लिए किराए पर दिया था। बाद में उन्होंने 2016 और 2019 में दो अलग-अलग किरायानामा (rent agreements) भी बनाए।

लेकिन बाद में कुछ लोगों — दीपक अग्रवाल और अनिल अग्रवाल — ने दावा किया कि यह इमारत धर्मशाला है, जिसे याचिकाकर्ता की दादी मनभारी कुवर ने 8 अप्रैल 1952 को मारवाड़ी समाज को एक समर्पणनामा (Samarpannama) के माध्यम से दान में दी थी।

इन लोगों ने 2020 में टाइटल सूट नंबर 176/2020 दाखिल किया, जिसमें यह घोषणा मांगी गई कि यह संपत्ति एक सार्वजनिक ट्रस्ट है।

याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि एक स्थानीय विधायक (जो मंत्री भी थे) के दबाव में जिला प्रशासन ने 30 जुलाई 2020 को पुलिस बल के साथ पहुंचकर उन्हें भवन से जबरन निकाल दिया और उनका सामान सड़क पर फेंक दिया। बाद में बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड ने इस भवन को “मनभारी कुवर धर्मशाला” घोषित कर दिया।

याचिकाकर्ताओं की दलीलें

  • उन्होंने कहा कि उनके पास पुराने स्वामित्व के पक्के दस्तावेज हैं।
  • पुलिस और प्रशासन ने बिना नोटिस और बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के उन्हें बेदखल कर दिया।
  • यह कार्रवाई राजनीतिक प्रभाव में की गई।
  • इससे उनके संविधान के अनुच्छेद 300A के तहत संपत्ति के अधिकार (Right to Property) का उल्लंघन हुआ।

राज्य की दलीलें

राज्य की ओर से सरकारी अधिवक्ता ने कहा—

  • यह मामला स्वामित्व और कब्जे का है, जो पूरी तरह विवादित तथ्य हैं।
  • ऐसे मामलों का फैसला केवल सिविल कोर्ट ही कर सकता है, न कि हाई कोर्ट की रिट याचिका के माध्यम से।
  • चूंकि पहले से ही टाइटल सूट (मुकदमा) लंबित है, इसलिए हाई कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता।

न्यायालय की टिप्पणियाँ और तर्क

माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह ने कहा कि याचिका में खुद यह स्वीकार किया गया है कि संपत्ति को लेकर टाइटल सूट पहले से ही चल रहा है। दोनों पक्षों में स्वामित्व और कब्जे का विवाद है, जिसे साक्ष्य के आधार पर ही तय किया जा सकता है।

न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार के विवाद में गवाहों की गवाही, दस्तावेजों की जांच और साक्ष्य की आवश्यकता होती है, जो रिट याचिका के दायरे में नहीं आती।

न्यायालय ने कई सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया—

  1. Union of India v. Ghaus Mohammad (AIR 1961 SC 1526) — जहाँ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन मामलों में तथ्यों पर विवाद हो, उन्हें सिविल सूट में तय किया जाना चाहिए, रिट याचिका में नहीं।
  2. D.L.F. Housing Construction (P) Ltd. v. Delhi Municipal Corporation (AIR 1976 SC 386) — इसमें कहा गया कि जब मूल तथ्य विवादित हों, तो हाई कोर्ट को रिट याचिका में दखल नहीं देना चाहिए।
  3. State of Rajasthan v. Bhawani Singh (1993 Supp (1) SCC 306) — संपत्ति के स्वामित्व से जुड़े विवाद रिट प्रक्रिया में नहीं सुलझाए जा सकते।
  4. State of Bihar v. Chandrabanshi Singh (2015 SCC OnLine Pat 10048) — पटना हाई कोर्ट ने भी यही सिद्धांत दोहराया कि ऐसे विवाद केवल दीवानी अदालत में तय होंगे।

इन निर्णयों के आधार पर पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि—

  • यह तय करना कि संपत्ति निजी है या धर्मशाला, साक्ष्य पर निर्भर प्रश्न है।
  • जब मामला पहले से दीवानी अदालत में लंबित है और धार्मिक न्यास बोर्ड ने संपत्ति को सार्वजनिक ट्रस्ट घोषित कर दिया है, तब इस रिट याचिका पर कोई राहत नहीं दी जा सकती।

इसलिए अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया।

न्यायालय की स्पष्टता

न्यायालय ने यह भी कहा कि इस आदेश को किसी भी पक्ष के हक या अधिकार के संबंध में अंतिम राय न माना जाए। याचिकाकर्ता चाहे तो अपने अधिकारों के लिए उचित दीवानी न्यायालय में मुकदमा दायर कर सकते हैं या लंबित वाद में अपनी दलीलें रख सकते हैं।

निर्णय का महत्व और प्रभाव

  • यह फैसला बताता है कि संपत्ति और स्वामित्व विवादों का समाधान केवल सिविल कोर्ट में हो सकता है।
  • रिट अदालत (हाई कोर्ट) का दायरा सीमित है — यह केवल कानूनी अधिकारों की सुरक्षा करती है, लेकिन स्वामित्व या कब्जे का फैसला नहीं कर सकती।
  • आम जनता के लिए यह संदेश है कि यदि किसी संपत्ति पर विवाद है, तो सही रास्ता दीवानी मुकदमा (Civil Suit) है, न कि रिट याचिका।
  • यह प्रशासनिक कार्रवाई के खिलाफ न्यायिक संयम (judicial restraint) का भी उदाहरण है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या संपत्ति के स्वामित्व और कब्जे से जुड़े विवाद रिट याचिका में तय हो सकते हैं?
    निर्णय: नहीं, ऐसे विवाद साक्ष्य-आधारित होते हैं और केवल सिविल कोर्ट ही तय कर सकता है।
  • क्या उच्च न्यायालय जबरन बेदखली के मामले में तत्काल कब्जा बहाल कर सकता है?
    निर्णय: नहीं, क्योंकि मामला पहले से सिविल कोर्ट में लंबित है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  1. Union of India v. Ghaus Mohammad, AIR 1961 SC 1526
  2. D.L.F. Housing Construction (P) Ltd. v. Delhi Municipal Corporation, AIR 1976 SC 386
  3. State of Rajasthan v. Bhawani Singh, 1993 Supp (1) SCC 306
  4. State of Bihar v. Chandrabanshi Singh, 2015 SCC OnLine Pat 10048

मामले का शीर्षक

  • याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (Patna High Court)

केस नंबर

  • Civil Writ Jurisdiction Case No. 8844 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 413

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय श्री न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ताओं की ओर से: सुश्री महास्वेता चटर्जी
  • राज्य की ओर से: श्री नस्रुल होदा खान, सरकारी अधिवक्ता (SC-1)

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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