निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बलात्कार (Section 376 IPC) के मामले में सजा पाए व्यक्ति को बरी (acquit) कर दिया। अदालत ने कहा कि जब पीड़िता की उम्र का पक्का प्रमाण नहीं है और यह भी साबित नहीं होता कि सहमति धोखे से ली गई थी, तो ऐसे मामले में दोषसिद्धि (conviction) नहीं की जा सकती।
यह मामला क्रिमिनल अपील (SJ) संख्या 1448/2018 से जुड़ा था, जिसमें एक युवक को सत्र न्यायालय, भागलपुर द्वारा सात साल की सजा दी गई थी।
माननीय न्यायमूर्ति बिरेन्द्र कुमार ने 12 मार्च 2021 को फैसला सुनाते हुए कहा कि पीड़िता और अभियुक्त के बीच संबंध सहमति से था, और अभियोजन (prosecution) यह साबित करने में विफल रहा कि पीड़िता उस समय नाबालिग थी। इसलिए, अभियुक्त को दोषमुक्त किया गया और तत्काल रिहा करने का आदेश दिया गया।
पृष्ठभूमि
मामला भागलपुर जिले के सनौखर थाना का है। एफआईआर के अनुसार, एक किशोरी (लगभग 14–15 वर्ष बताई गई) ने आरोप लगाया था कि अभियुक्त ने शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। यह संबंध लगभग छह महीने तक दोनों के घरों में चलता रहा।
जब लड़की गर्भवती हुई (लगभग चार महीने का गर्भ), उसने अभियुक्त से शादी करने को कहा। अभियुक्त ने इंकार कर दिया और उसके परिवार ने गर्भपात कराने को कहा। तब लड़की ने पुलिस में शिकायत दी, पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। बाद में उसने एसपी, भागलपुर को आवेदन दिया, जिसके निर्देश पर सनौखर थाना केस नंबर 36/2010 दर्ज किया गया।
निचली अदालत का फैसला
सत्र न्यायालय ने अभियुक्त को धारा 376 (बलात्कार) के तहत दोषी ठहराया और सात साल की सजा दी। न्यायालय ने माना कि पीड़िता नाबालिग थी, इसलिए उसकी सहमति का कोई मूल्य नहीं।
अपील में दिए गए तर्क
अभियुक्त की ओर से:
- अभियोजन ने यह साबित नहीं किया कि पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से कम थी।
- पीड़िता ने खुद माना कि उसने अपनी मर्जी से संबंध बनाए और परिवार भी इस बात से अवगत था।
- कोई मेडिकल या स्कूल का प्रमाण नहीं दिया गया कि वह नाबालिग थी।
- शादी का झांसा देना धोखाधड़ी नहीं कहलाता, जब तक यह साबित न हो कि शुरुआत से ही धोखा देने की नीयत थी।
राज्य की ओर से:
- अभियोजन पक्ष ने कहा कि पीड़िता ने अपनी उम्र 16 वर्ष से कम बताई और बचाव पक्ष ने इस पर जिरह नहीं की।
- इसलिए यह माना जाए कि अभियुक्त ने नाबालिग लड़की का फायदा उठाया और शादी का झूठा वादा किया।
साक्ष्यों का विश्लेषण
- पीड़िता (PW-7): शुरू में कहा कि जबरदस्ती की गई, पर बाद में स्वीकार किया कि संबंध उसकी मर्जी से था। दोनों के परिवार को पता था और किसी ने आपत्ति नहीं की।
- माँ (PW-1): माना कि रिश्ता दोनों के बीच था और मामला तभी दर्ज हुआ जब लड़का शादी से मुकर गया।
- डॉक्टर (PW-9): कोई बलात्कार का निशान नहीं मिला। उम्र 17–18 वर्ष आंकी गई।
- तीन गवाह (PW-2, PW-3, PW-8): अभियोजन के पक्ष में नहीं बोले (hostile declared)।
- बचाव गवाह (DW-1): बताया कि पीड़िता ने 2015 में किसी और से शादी कर ली।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- सहमति और धोखाधड़ी:
न्यायालय ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 25 के अनुसार धोखा तभी माना जाएगा जब शुरुआत से ही धोखाधड़ी की नीयत हो। यहाँ ऐसा कोई प्रमाण नहीं है। बाद में शादी न होना अपने आप में धोखा नहीं कहा जा सकता। - पीड़िता की उम्र का प्रमाण:
अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि पीड़िता घटना के समय 16 वर्ष से कम थी।- कोई स्कूल रिकॉर्ड, जन्म प्रमाण पत्र या मेडिकल रिपोर्ट नहीं दी गई।
- डॉक्टर ने केवल अनुमान लगाया (17–18 वर्ष)।
- सुप्रीम कोर्ट के फैसलों (Sunil v. State of Haryana, AIR 2010 SC 392 और Jarnail Singh v. State of Haryana, 2013 CrLJ 3976) में स्पष्ट है कि उम्र का अनुमान दोषसिद्धि का आधार नहीं बन सकता।
- साक्ष्य का भार (Burden of Proof):
अभियोजन को अपराध साबित करना होता है ‘संदेह से परे’ (beyond reasonable doubt)। यहाँ ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं था। - पूर्ववर्ती निर्णयों का हवाला:
- State of M.P. v. Munna @ Shambhoo Nath (2016) 1 SCC 696 — जब सहमति हो और उम्र साबित न हो, तो दोषसिद्धि नहीं की जा सकती।
- Rajak Mohammad v. State of Himachal Pradesh (2018) 9 SCC 248 — यदि पीड़िता की नाबालिगता साबित नहीं होती, तो बलात्कार का आरोप अस्थिर है।
न्यायालय का निष्कर्ष
- अदालत ने पाया कि पीड़िता अपनी इच्छा से संबंध में थी और वह सहमति देने में सक्षम थी क्योंकि उसकी नाबालिगता साबित नहीं हुई।
- अभियोजन की कहानी में कई कानूनी कमियाँ थीं और निचली अदालत ने साक्ष्यों की सही व्याख्या नहीं की।
- इसलिए दोषसिद्धि और सजा दोनों रद्द कर दी गईं और अभियुक्त को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
- यह फैसला बताता है कि सहमति से बने संबंध को बलात्कार नहीं कहा जा सकता, जब तक यह साबित न हो कि सहमति धोखे, जबरदस्ती या नाबालिगता के कारण अमान्य थी।
- न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि पीड़िता की उम्र साबित करने की जिम्मेदारी अभियोजन की होती है — बिना प्रमाण के किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
- यह फैसला कानून के उस मूल सिद्धांत को दोहराता है कि आपराधिक मामलों में सजा तभी दी जा सकती है जब सबूत संदेह से परे हों।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या पीड़िता घटना के समय 16 वर्ष से कम थी?
➤ नहीं, कोई प्रमाण नहीं मिला। उम्र 17–18 वर्ष आंकी गई। - क्या शादी का वादा कर बनाए गए संबंध को बलात्कार माना जा सकता है?
➤ नहीं, जब तक यह साबित न हो कि वादा शुरू से ही झूठा था। - क्या केवल अनुमानित उम्र पर सजा दी जा सकती है?
➤ नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कई मामलों में इसे अस्वीकार किया है।
अंतिम निर्णय: अभियुक्त को दोषमुक्त किया गया, सजा रद्द कर दी गई, और तत्काल रिहाई का आदेश हुआ।
न्यायालय द्वारा उद्धृत निर्णय
- Sunil v. State of Haryana, AIR 2010 SC 392
- Jarnail Singh v. State of Haryana, 2013 CrLJ 3976
- State of M.P. v. Munna @ Shambhoo Nath, (2016) 1 SCC 696
- Rajak Mohammad v. State of Himachal Pradesh, (2018) 9 SCC 248
मामले का शीर्षक
- अपीलकर्ता बनाम बिहार राज्य (Patna High Court)
केस नंबर
- Criminal Appeal (SJ) No. 1448 of 2018
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 417
न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय श्री न्यायमूर्ति बिरेन्द्र कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ता की ओर से: श्री प्रतीक मिश्रा, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री बिनोद बिहारी सिंह, एपीपी
निर्णय का लिंक
MjQjMTQ0OCMyMDE4IzEjTg==-moPdDV9XjNY=
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