निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण (BIADA) किसी औद्योगिक इकाई की भूमि रद्द करने से पहले यह जांच कैसे करे कि वह इकाई वास्तव में काम कर रही है या नहीं। न्यायालय ने कहा कि किसी भी फैक्ट्री का उत्पादन हमेशा “पूर्ण क्षमता” (full capacity) पर नहीं चलता — यह बाज़ार की मांग, रखरखाव (maintenance) और काम के आदेशों (work orders) पर निर्भर करता है।
मामले में याचिकाकर्ता को पटना के पटलीपुत्र औद्योगिक क्षेत्र में 6,250 वर्गफुट का औद्योगिक भूखंड आवंटित किया गया था, जहाँ उसे निर्माण इकाई स्थापित करनी थी। बाद में, 21 जुलाई 2022 को परियोजना में परिवर्तन की अनुमति दी गई ताकि वहाँ स्टेनलेस स्टील पाइप, शटर पट्टी और लाथ का निर्माण किया जा सके।
लेकिन 22 जनवरी 2024 को BIADA के उप-महाप्रबंधक ने भूखंड का आवंटन रद्द कर दिया, और क्षेत्रीय प्रबंधक ने 8 फरवरी 2024 को नोटिस जारी कर दिया कि यदि याचिकाकर्ता भूमि खाली नहीं करेगा, तो बलपूर्वक कब्जा लिया जाएगा। इस आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि रद्दीकरण का आदेश बिना उचित जांच और तथ्यों को देखे जारी किया गया है। उसने बिजली बिल, जीएसटी रिटर्न और जॉब-वर्क एग्रीमेंट जैसे दस्तावेज़ प्रस्तुत किए थे, जिनसे यह सिद्ध होता था कि इकाई वास्तव में चालू थी। वकील का कहना था कि कोई भी उद्योग पूरे साल 100% क्षमता पर काम नहीं कर सकता, क्योंकि उत्पादन बाज़ार की स्थिति और रखरखाव के कारण घटता-बढ़ता रहता है।
वहीं BIADA का कहना था कि कई बार मौका देने के बावजूद इकाई ने “पूर्ण उत्पादन” शुरू नहीं किया। उन्होंने बिजली खपत की तुलना एक अन्य इकाई से की और कहा कि कम बिजली उपयोग यह दर्शाता है कि फैक्ट्री पूरी तरह से काम नहीं कर रही है।
न्यायालय ने रिकॉर्ड और दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पाया कि —
- प्रस्तुत दस्तावेज़ों जैसे बिजली बिल, जीएसटी रिटर्न, जॉब-वर्क एग्रीमेंट और फ़ोटो से स्पष्ट है कि इकाई स्थापित है और उत्पादन कर रही है।
- परियोजना रिपोर्ट के अनुसार, फैक्ट्री की क्षमता लगभग 75 मीट्रिक टन प्रति माह थी।
- न्यायालय ने यह भी माना कि हर महीने उत्पादन एक समान नहीं रह सकता — कभी मांग कम होगी, कभी मशीन की सर्विसिंग करनी होगी।
इसलिए न्यायालय ने कहा कि यदि औसत उत्पादन 75% से अधिक है तो उसे संतोषजनक माना जाना चाहिए और केवल इस आधार पर रद्दीकरण नहीं किया जा सकता कि इकाई “पूर्ण क्षमता” पर नहीं चल रही।
इस आधार पर, उच्च न्यायालय ने अपीलीय आदेश को रद्द करते हुए मामला दोबारा विचार के लिए संबंधित प्राधिकरण को भेज दिया। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि —
- याचिकाकर्ता चार सप्ताह के भीतर सभी दस्तावेज़ों सहित विस्तृत अभ्यावेदन (representation) दे।
- प्राधिकरण सभी दस्तावेज़ों को देखते हुए, सुनवाई का अवसर प्रदान करे और बारह सप्ताह के भीतर कारणयुक्त आदेश (speaking order) पारित करे।
- निर्णय की सूचना याचिकाकर्ता को दी जाए।
इस प्रकार, न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि किसी भी औद्योगिक इकाई के विरुद्ध कार्रवाई करने से पहले प्रशासनिक निष्पक्षता और तथ्यों का समुचित मूल्यांकन किया जाए।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
यह फैसला बिहार के औद्योगिक क्षेत्रों में काम कर रहे उद्यमियों और प्रशासनिक अधिकारियों दोनों के लिए मार्गदर्शक है।
- व्यावहारिक यथार्थ की स्वीकृति: न्यायालय ने स्वीकार किया कि किसी उद्योग का उत्पादन लगातार समान नहीं रह सकता। बाज़ार की स्थिति, बिजली कटौती या मशीन मरम्मत जैसी परिस्थितियाँ उत्पादन पर प्रभाव डालती हैं। अब अधिकारी केवल अस्थायी गिरावट देखकर कठोर कार्रवाई नहीं कर पाएंगे।
- 75% क्षमता का मानक: न्यायालय ने कहा कि यदि औसत उत्पादन 75% से अधिक है तो यह पर्याप्त है। इससे उद्यमियों को एक स्पष्ट दिशानिर्देश मिल गया कि “पूर्ण उत्पादन” का अर्थ 100% नहीं है।
- निष्पक्ष प्रक्रिया पर जोर: न्यायालय ने निर्देश दिया कि बिजली बिल, जीएसटी रिटर्न, जॉब-वर्क एग्रीमेंट जैसे दस्तावेज़ों की जांच जरूरी है। अब किसी भी रद्दीकरण या ज़ब्ती आदेश से पहले उचित सुनवाई और कारणयुक्त आदेश देना अनिवार्य होगा।
- यांत्रिक आदेशों पर रोक: अदालत ने कहा कि केवल अनुमान या तुलना के आधार पर निर्णय नहीं लिया जा सकता; वास्तविक उत्पादन के ठोस प्रमाण देखने होंगे।
यह फैसला बिहार में औद्योगिक विकास और प्रशासनिक पारदर्शिता दोनों को मजबूत करता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या केवल “पूर्ण क्षमता” पर उत्पादन न होने के कारण भूमि रद्द की जा सकती है?
❖ नहीं। न्यायालय ने कहा कि उत्पादन में उतार-चढ़ाव सामान्य बात है। औसत 75% या उससे अधिक उत्पादन पर्याप्त माना जाएगा। - क्या अपीलीय आदेश ने तथ्यों की अनदेखी की?
❖ हाँ। अदालत ने कहा कि अपीलीय प्राधिकारी ने बिजली बिल, जीएसटी रिटर्न आदि दस्तावेज़ों पर ध्यान नहीं दिया, इसलिए आदेश रद्द किया गया। - अब आगे क्या प्रक्रिया होगी?
❖ याचिकाकर्ता चार सप्ताह में सभी दस्तावेज़ देगा, और प्राधिकरण 12 सप्ताह में सुनवाई कर कारणयुक्त निर्णय देगा। - भविष्य में उत्पादन क्षमता कैसे आंकी जाएगी?
❖ बिजली खपत, बिक्री (जीएसटी रिटर्न), जॉब-वर्क अनुबंध आदि के आधार पर। प्राधिकरण को बाज़ार स्थिति और रखरखाव जैसे व्यावहारिक पहलुओं को भी ध्यान में रखना होगा।
मामले का शीर्षक
Work Brigade Venture LLP बनाम राज्य बिहार एवं अन्य (BIADA विवाद)
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 2777 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति ए. अभिषेक रेड्डी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्रीमती निवेदिता निर्विकार (वरिष्ठ अधिवक्ता), सुप्रज्ञा (अधिवक्ता)
BIADA की ओर से: श्री अविनाश कुमार, श्री अजय कुमार मेहता
राज्य की ओर से: सरकारी अधिवक्ता संख्या 20
निर्णय का लिंक
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