निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि जिन कर्मचारियों को सहानुभूति (compassionate ground) के आधार पर नौकरी दी गई है, उन्हें उस पद का वही वेतनमान मिलेगा जो उनकी नियुक्ति की तारीख पर लागू था। वे यह दावा नहीं कर सकते कि उन्हें नियमित भर्ती वाले कर्मचारियों के समान (उच्च) वेतनमान दिया जाए।
यह फैसला माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह ने 6 अप्रैल 2021 को सुनाया। यह दो मामलों पर आधारित था —
- अभय कुमार बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (CWJC No. 7988 of 2020)
- दिग्विजय कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (CWJC No. 7965 of 2020)
दोनों याचिकाएँ एक जैसे मुद्दों से जुड़ी थीं, इसलिए अदालत ने इन्हें एक साथ निपटाया।
मामले की पृष्ठभूमि
बिहार सरकार ने 7 अप्रैल 1977 को लोअर डिवीजन क्लर्क (LDC) और अपर डिवीजन क्लर्क (UDC) के पदों को मिलाकर “असिस्टेंट” नामक एक साझा पद बना दिया था। बाद में 20 दिसंबर 2000 को वित्त विभाग के आदेश (संख्या 8826) के जरिए इन दोनों पदों को फिर से अलग कर दिया गया।
- LDC का वेतनमान तय हुआ ₹3050–₹4590
- UDC का वेतनमान तय हुआ ₹4000–₹6000
और सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि अब उच्च वेतनमान ₹4000–₹6000 वाले पद पर कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी, तथा चल रही चयन प्रक्रियाएँ तुरंत रद्द की जाएँगी।
याचिकाकर्ताओं का मामला
अभय कुमार और दिग्विजय कुमार सिंह — दोनों को 2001 में अपने दिवंगत पिता की सेवा मृत्यु के बाद सहानुभूति नियुक्ति के तहत क्लर्क पद पर नौकरी दी गई थी।
- शुरू में उन्हें ₹4000–₹6000 का वेतनमान दिया गया।
- कुछ समय बाद जिला प्रशासन ने सरकार के 2000 के आदेश का हवाला देते हुए उनका वेतनमान घटाकर ₹3050–₹4590 कर दिया।
दोनों ने इस बदलाव को चुनौती दी और कहा कि उनके समान अन्य कर्मचारी ₹4000–₹6000 पा रहे हैं, इसलिए उन्हें भी समान लाभ मिलना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं के तर्क
याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि
- अविनाश कुमार चक्रवर्ती बनाम बिहार राज्य (LPA No. 167/2016) में हाईकोर्ट ने समान स्थिति में नियुक्त लोगों को ₹4000–₹6000 का वेतनमान देने का आदेश दिया था।
- उन्होंने कई अन्य फैसलों जैसे पंकज कुमार बनाम बिहार राज्य (2018), शालिनी प्रियदर्शिनी बनाम बिहार राज्य (2019), और कुंदन कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य (2021) का भी हवाला दिया।
उनका कहना था कि एक जैसे काम करने वाले कर्मचारियों को अलग-अलग वेतन देना अनुच्छेद 14 के समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
राज्य सरकार का पक्ष
राज्य की ओर से सरकारी अधिवक्ता ने कहा कि:
- 1998 में बीपीएससी द्वारा निकाली गई भर्ती और बाद में हुई सहानुभूति नियुक्तियाँ अलग-अलग वर्ग हैं।
- बीपीएससी की चयन प्रक्रिया 20 दिसंबर 2000 से पहले शुरू हुई थी, इसलिए उन्हें पुराना वेतनमान मिला।
- सहानुभूति नियुक्ति कोई “अधिकार” नहीं है; यह केवल आर्थिक कठिनाई से राहत के लिए दी जाती है।
- इस प्रकार के कर्मचारियों को नियमित भर्ती वालों के समान待遇 नहीं दिया जा सकता।
उन्होंने स्मत. मोस्सरत अरा खानम बनाम बिहार राज्य (LPA No. 100/2012, निर्णय दिनांक 19 फरवरी 2014) का हवाला दिया, जिसमें हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि सहानुभूति नियुक्त कर्मचारियों को केवल ₹3050–₹4590 का वेतनमान मिलेगा।
न्यायालय का विश्लेषण
न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह ने दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद पाया कि:
- मोस्सरत अरा खानम बनाम बिहार राज्य (2014) में दिया गया निर्णय ही प्रमुख और बाध्यकारी (binding) है।
- बाद के कई फैसलों (जैसे अविनाश कुमार चक्रवर्ती) में इस पहले के निर्णय पर ध्यान नहीं दिया गया, इसलिए वे per incuriam (कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण) हैं।
- सहानुभूति नियुक्तियाँ “विशेष परिस्थिति” में दी जाती हैं और इन्हें सामान्य भर्ती के बराबर नहीं माना जा सकता।
- नियुक्ति की तिथि पर लागू नियम ही वेतनमान तय करेगा, न कि कर्मचारी के पिता की मृत्यु की तिथि।
इसलिए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता केवल LDC के वेतनमान ₹3050–₹4590 के हकदार हैं, न कि ₹4000–₹6000 के।
कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ
- सहानुभूति नियुक्ति का उद्देश्य परिवार को तुरंत राहत देना है, न कि नियमित भर्ती जैसा लाभ देना।
- अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) इस पर लागू नहीं होता।
- नियमित भर्ती वाले और सहानुभूति वाले दो अलग वर्ग (distinct classes) हैं।
- “कृपा पर कृपा” (compassion upon compassion) नहीं दी जा सकती।
न्यायालय ने दोनों याचिकाएँ खारिज कर दीं और कहा कि इसमें कोई लागत (cost) नहीं लगेगी।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
यह फैसला बिहार सरकार और उसके कर्मचारियों दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- स्पष्ट नीति: अब यह स्पष्ट हो गया है कि 20 दिसंबर 2000 के बाद सहानुभूति नियुक्त कर्मचारियों को ₹4000–₹6000 का वेतनमान नहीं मिलेगा।
- नियमों की एकरूपता: सभी जिलों में एक समान मानक लागू रहेगा।
- वित्तीय अनुशासन: सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा।
- कानूनी स्थिरता: पहले के विरोधाभासी आदेशों पर पूर्णविराम लग गया है।
- कर्मचारियों के लिए स्पष्टता: यह फैसला बताता है कि सहानुभूति नियुक्ति रोजगार देती है, परंतु यह उच्च वेतनमान का अधिकार नहीं देती।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या सहानुभूति नियुक्त कर्मचारी ₹4000–₹6000 का वेतनमान पा सकते हैं?
→ नहीं। उन्हें केवल ₹3050–₹4590 मिलेगा। - क्या समानता का अधिकार (Article 14) लागू होता है?
→ नहीं। सहानुभूति नियुक्तियाँ समानता के दायरे में नहीं आतीं। - क्या पहले के फैसले बाध्यकारी थे?
→ केवल मोस्सरत अरा खानम (2014) का निर्णय ही बाध्यकारी है। - क्या बीपीएससी चयनित उम्मीदवारों से तुलना की जा सकती है?
→ नहीं। दोनों वर्ग अलग हैं।
न्यायालय द्वारा उद्धृत निर्णय
- Smt. Mosarrat Arra Khanam v. State of Bihar, LPA No. 100/2012 (Patna HC, 2014)
- Satish Kumar v. State of Bihar, CWJC No. 3438/2019 (Patna HC, 2020)
- State Bank of India v. Vindhwashini Devi, 2008 (4) PLJR 668
मामले का शीर्षक
Abhay Kumar v. State of Bihar & Ors.
(संयुक्त रूप से Digvijay Kumar Singh v. State of Bihar & Ors. के साथ सुना गया)
केस नंबर
CWJC No. 7988 of 2020 और CWJC No. 7965 of 2020
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 471
न्यायमूर्ति गण
माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ताओं की ओर से: श्री किशोर कुमार ठाकुर, श्री राजेश कुमार, श्री ब्रज किशोर सिंह
- राज्य की ओर से: श्री अजय कुमार रस्तोगी (AAG-10), श्री हरीश कुमार (GP-8), श्री बिनोद कुमार सिंह, श्री शुभम प्रकाश
निर्णय का लिंक
MTUjNzk2NSMyMDIwIzEjTg==-pmboE2DvWDU=
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