पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: बिना अनुमति साझेदारी करने पर एलपीजी डीलरशिप की एल.ओ.आई. रद्द — 2021

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: बिना अनुमति साझेदारी करने पर एलपीजी डीलरशिप की एल.ओ.आई. रद्द — 2021

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने 25 जनवरी 2021 को एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि यदि किसी व्यक्ति को एलपीजी डीलरशिप के लिए Letter of Intent (एल.ओ.आई.) जारी किया गया है, तो वह तब तक केवल प्रारंभिक सहमति पत्र है, जब तक सभी शर्तें पूरी नहीं हो जातीं। यदि एल.ओ.आई. प्राप्त करने वाला व्यक्ति कंपनी की पूर्व अनुमति के बिना किसी साझेदारी में प्रवेश करता है, तो यह एल.ओ.आई. की शर्तों का सीधा उल्लंघन है, और कंपनी को इसे रद्द करने का पूरा अधिकार है।

मामला यह था कि एक आवेदक ने भारतीय तेल निगम (IOC) द्वारा 2017 में निकाली गई ग्रामीण एलपीजी वितरण योजना के तहत ओ.बी.सी. श्रेणी में आवेदन किया था। उसे 27 जून 2019 को मौरखास (सीवान) के लिए एल.ओ.आई. जारी किया गया।

एल.ओ.आई. मिलने के बाद, आवेदक ने 31 जुलाई 2019 को दो अन्य व्यक्तियों के साथ एक पंजीकृत साझेदारी बना ली ताकि डीलरशिप संयुक्त रूप से चलाई जा सके। यह कार्य भारतीय तेल निगम की पूर्व अनुमति के बिना किया गया था।

बाद में इन साझेदारों में लाभ के बंटवारे को लेकर विवाद हुआ, और आवेदक ने 9 सितंबर, 29 अक्टूबर 2019 और 4 जनवरी 2020 को कानूनी नोटिस देकर साझेदारी समाप्त करने की बात कही। इस बीच, भारतीय तेल निगम को शिकायत मिली कि एल.ओ.आई. प्राप्तकर्ता ने अनधिकृत रूप से साझेदारी बना ली है। कंपनी ने 4 दिसंबर 2019 को शो-कॉज नोटिस जारी किया और जवाब मांगा। आवेदक ने 30 दिसंबर 2019 को उत्तर देते हुए अपनी गलती स्वीकार की और सहानुभूति की मांग की।

भारतीय तेल निगम ने तथ्यों की जांच के बाद 3 फरवरी 2020 को एल.ओ.आई. वापस ले ली और ₹30,000 की सुरक्षा राशि जब्त कर ली।

न्यायालय ने एल.ओ.आई. की शर्तों का विशेष उल्लेख किया — खासकर धारा 5.4, जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि जब तक अंतिम नियुक्ति नहीं होती, किसी भी प्रकार की साझेदारी या संरचना में बदलाव भारतीय तेल निगम की पूर्व अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने यह भी माना कि आवेदक का यह तर्क कि साझेदारी बाद में समाप्त हो गई, अप्रासंगिक है क्योंकि उल्लंघन पहले ही हो चुका था। एल.ओ.आई. के तहत कंपनी को अधिकार है कि किसी भी शर्त के उल्लंघन या गलत जानकारी पाए जाने पर वह पत्र रद्द कर सकती है।

न्यायालय ने इस आधार पर याचिका को खारिज कर दिया कि एल.ओ.आई. केवल सशर्त स्वीकृति होती है, न कि स्थायी नियुक्ति। भारतीय तेल निगम द्वारा किया गया कदम नियमसंगत और उचित था।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

इस फैसले का महत्व बहुत व्यावहारिक है, खासकर उन लोगों के लिए जो सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र की योजनाओं में आवेदन करते हैं।

  1. आवेदकों के लिए संदेश:
    एल.ओ.आई. मिलने के बाद किसी भी प्रकार का साझेदारी समझौता या स्वामित्व में बदलाव बिना संबंधित विभाग की पूर्व अनुमति के नहीं किया जा सकता। अन्यथा, आवेदन निरस्त हो सकता है और जमा राशि भी जब्त हो सकती है।
  2. सरकारी कंपनियों के लिए मार्गदर्शन:
    यह निर्णय यह सिद्ध करता है कि यदि किसी एल.ओ.आई. की शर्तों का उल्लंघन होता है, तो कंपनी को उसे रद्द करने का पूर्ण अधिकार है। न्यायालय ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा यदि कंपनी ने उचित प्रक्रिया (जैसे शो-कॉज नोटिस और जवाब का अवसर) का पालन किया हो।
  3. लोक प्रशासन और पारदर्शिता के लिए संकेत:
    यह निर्णय बताता है कि श्रेणी आधारित चयन (जैसे ओ.बी.सी. आरक्षण) की निष्पक्षता तभी बनी रह सकती है जब बाद में भी सभी शर्तों का पालन सख्ती से किया जाए। बिना अनुमति साझेदारी करने की अनुमति देना चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता को नुकसान पहुँचा सकता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • प्रश्न: क्या भारतीय तेल निगम किसी व्यक्ति की एल.ओ.आई. वापस ले सकता है यदि उसने बिना अनुमति साझेदारी कर ली हो?
    उत्तर: हाँ। एल.ओ.आई. की धारा 5.4 स्पष्ट रूप से ऐसी साझेदारी पर रोक लगाती है। आवेदक ने 31.07.2019 को पंजीकृत साझेदारी कर के इसका उल्लंघन किया। इसलिए, निगम द्वारा 03.02.2020 को एल.ओ.आई. वापस लेना कानूनी रूप से उचित था।
  • प्रश्न: क्या बाद में साझेदारी समाप्त करने से उल्लंघन मिट जाता है?
    उत्तर: नहीं। न्यायालय ने कहा कि साझेदारी पहले ही हो चुकी थी और विवाद केवल लाभ बाँटने को लेकर था। इस कारण बाद में दिया गया नोटिस उल्लंघन को निरस्त नहीं कर सकता।
  • प्रश्न: एल.ओ.आई. क्या एक अंतिम नियुक्ति पत्र है?
    उत्तर: नहीं। एल.ओ.आई. केवल एक सशर्त इच्छा पत्र है, जो तय शर्तों पर आधारित होता है और कंपनी को इसे वापस लेने का अधिकार रहता है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Indian Oil Corporation Ltd. v. Raj Kumar Jha, 2012 (2) PLJR 783 — जिसमें यह कहा गया था कि यदि एल.ओ.आई. की शर्तों का उल्लंघन होता है, तो कंपनी द्वारा उसे वापस लेना उचित है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • कोई विशेष बाहरी निर्णय नहीं; न्यायालय ने एल.ओ.आई. की अपनी शर्तों का ही आधार लिया।

मामले का शीर्षक

याचिकाकर्ता बनाम इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन एंड अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 5228 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 476

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री प्रशांत सिन्हा — याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री अंकित कटियार — प्रतिवादी (भारतीय तेल निगम) की ओर से

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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