निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि यदि कोई उम्मीदवार बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) द्वारा प्रकाशित मॉडल आंसर की (provisional answer key) पर निर्धारित समयसीमा में आपत्ति नहीं करता, तो बाद में वह परीक्षा परिणाम को चुनौती नहीं दे सकता।
यह मामला दो याचिकाओं — CWJC No. 7429 of 2021 (मेहा वर्मा बनाम बिहार राज्य) और CWJC No. 7595 of 2021 (विभिन्न उम्मीदवार बनाम बीपीएससी) — से जुड़ा था। दोनों में समान सवाल था, इसलिए न्यायालय ने दोनों को एक साथ सुनकर एक ही आदेश में निपटारा किया।
न्यायमूर्ति शिवाजी पांडे और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ ने इन याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि बीपीएससी द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया न्यायसंगत, पारदर्शी और वैध है।
पृष्ठभूमि
बिहार लोक सेवा आयोग ने दिसंबर 2020 में आयोजित प्रारंभिक परीक्षा (Preliminary Exam) के बाद अपनी वेबसाइट पर 19 दिसंबर 2020 को एक नोटिस जारी किया। इस नोटिस में मॉडल आंसर की जारी की गई थी और उम्मीदवारों से कहा गया था कि यदि किसी उत्तर को लेकर आपत्ति है, तो वे 31 दिसंबर 2020 शाम 5 बजे तक बंद लिफाफे में अपनी आपत्ति भेज सकते हैं।
स्पष्ट किया गया था कि सभी आपत्तियों की जांच एक विशेषज्ञ समिति (Expert Committee) करेगी, और सही पाए जाने पर अंतिम उत्तर सूची (final key) तैयार की जाएगी।
लेकिन इन दोनों याचिकाओं के याचिकाकर्ताओं ने निर्धारित समय में कोई आपत्ति दर्ज नहीं की। जब परिणाम घोषित हुआ, तब उन्होंने अदालत में याचिका दायर कर यह तर्क दिया कि कुछ प्रश्नों के सही उत्तर आयोग ने गलत निर्धारित किए हैं।
- CWJC No. 7429/2021 में प्रश्न संख्या 126 को लेकर विवाद था — याचिकाकर्ता ने विकल्प ‘C’ चुना था, जबकि आयोग ने ‘D’ को सही माना।
- CWJC No. 7595/2021 में प्रश्न संख्या 46 और 128 (‘B’ सीरीज़) को लेकर आपत्ति थी।
याचिकाकर्ताओं के मुख्य तर्क थे:
- विज्ञापन में मॉडल आंसर की जारी करने और आपत्ति आमंत्रित करने का कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए आयोग बीच में नियम नहीं बदल सकता।
- ऐसी प्रक्रिया किसी वैधानिक नियम (statutory provision) में नहीं दी गई है।
- उम्मीदवारों से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे रोज़ वेबसाइट देखते रहें।
उन्होंने 2014 के एक एकल पीठ के निर्णय (CWJC No. 13999/2014) पर भरोसा किया था, जिसमें ऐसी प्रक्रिया पर सवाल उठाया गया था।
न्यायालय के विचार और निष्कर्ष
न्यायालय ने इन सभी तर्कों को अस्वीकार करते हुए कहा कि आयोग की प्रक्रिया पूरी तरह सही और न्यायसंगत थी।
1. यह एक मानक प्रक्रिया (Standard Procedure) है:
न्यायालय ने कहा कि आज लगभग सभी परीक्षा संस्थान — चाहे वह UPSC हो, SSC हो या BPSC — परीक्षा के बाद मॉडल आंसर की जारी करते हैं और आपत्तियाँ आमंत्रित करते हैं। यह एक पारदर्शी प्रणाली है जिससे उम्मीदवारों को यह मौका मिलता है कि वे किसी गलती की ओर ध्यान दिला सकें।
2. समय पर आपत्ति न करने पर बाद में चुनौती नहीं दी जा सकती:
याचिकाकर्ताओं ने जब 19 से 31 दिसंबर 2020 तक का अवसर होने के बावजूद कोई आपत्ति नहीं की, तो अब वे परिणाम आने के बाद सवाल नहीं उठा सकते। न्यायालय ने कहा — “जब कोई प्रक्रिया निर्धारित है और अवसर दिया गया है, तो उसका उपयोग न करने वाले उम्मीदवार बाद में अदालत नहीं आ सकते।”
3. वेबसाइट देखने की जिम्मेदारी उम्मीदवार की है:
कोर्ट ने कहा कि आज के समय में यह हर उम्मीदवार की जिम्मेदारी है कि वह नियमित रूप से आयोग की वेबसाइट देखे। यह कहना कि “हमें जानकारी नहीं थी” कोई वैध बहाना नहीं है।
4. पूर्व निर्णयों का संदर्भ:
न्यायालय ने अपने पुराने निर्णय Ravindra Kumar Singh v. State of Bihar [2016 (1) PLJR 865] का उल्लेख किया। इस मामले में स्पष्ट किया गया था कि बीपीएससी जैसी संस्थाओं को चाहिए कि —
- परीक्षा के बाद मॉडल आंसर की प्रकाशित करें।
- उम्मीदवारों से निर्धारित समय सीमा में आपत्तियाँ आमंत्रित करें।
- विशेषज्ञ समिति आपत्तियों की जांच कर अंतिम उत्तर तय करे।
न्यायालय ने कहा कि यही प्रक्रिया आज मानक (standardized) बन चुकी है और यह पूरी तरह पारदर्शी है। इसलिए 2014 वाले एकल पीठ के निर्णय का कोई प्रभाव अब नहीं रह गया है।
5. परिणाम:
कोर्ट ने कहा कि आयोग ने नियमों का पालन किया है और याचिकाकर्ताओं के तर्क निराधार हैं। इसलिए दोनों याचिकाएँ “अवास्तविक और निराधार” बताते हुए खारिज कर दी गईं।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
यह फैसला सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं के अभ्यर्थियों और आयोगों (BPSC, UPSC आदि) दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
- उम्मीदवारों के लिए:
यह निर्णय यह सिखाता है कि परीक्षा प्रक्रिया में दिए गए हर अवसर का उपयोग समय पर करना आवश्यक है। यदि कोई उम्मीदवार आपत्ति दर्ज नहीं करता, तो बाद में परिणाम के खिलाफ याचिका दाखिल नहीं कर सकता। - आयोगों के लिए:
न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि “मॉडल आंसर की – आपत्ति आमंत्रण – विशेषज्ञ समीक्षा – अंतिम कुंजी” वाली प्रणाली पूरी तरह वैध और पारदर्शी है। इससे परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता बनी रहती है। - सरकार और जनता के लिए:
यह फैसला दिखाता है कि न्यायपालिका ऐसे मामलों में बार-बार मुकदमेबाज़ी को रोकना चाहती है ताकि चयन प्रक्रिया समय पर पूरी हो सके और अनावश्यक देरी न हो।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा 1: क्या बीपीएससी बिना विज्ञापन में उल्लेख किए मॉडल आंसर की जारी कर आपत्तियाँ मंगा सकता है?
निर्णय: हाँ, यह मानक और वैध प्रक्रिया है। - मुद्दा 2: क्या जिन्होंने समय पर आपत्ति नहीं की, वे बाद में अदालत जा सकते हैं?
निर्णय: नहीं। उन्हें बाद में चुनौती देने का अधिकार नहीं रहेगा। - मुद्दा 3: क्या मॉडल आंसर की प्रक्रिया किसी वैधानिक कानून में होना जरूरी है?
निर्णय: नहीं। यह न्यायिक रूप से स्वीकृत प्रशासनिक प्रक्रिया है। - मुद्दा 4: क्या विवादित प्रश्नों के सही उत्तर पर अदालत विचार करेगी?
निर्णय: नहीं, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने समय रहते आपत्ति नहीं की।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- CWJC No. 13999 of 2014 (पटना उच्च न्यायालय, एकल पीठ)
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Ravindra Kumar Singh v. State of Bihar, 2016 (1) PLJR 865
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय, जिनमें परीक्षा प्रक्रिया की निष्पक्षता को मान्यता दी गई है।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं बिहार लोक सेवा आयोग (नाम गोपनीय)
केस नंबर
- Civil Writ Jurisdiction Case No. 7429 of 2021
- Civil Writ Jurisdiction Case No. 7595 of 2021
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 554
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति शिवाजी पांडे
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता (7429/2021): श्री मनोज कुमार, श्रीमती ऐश्वर्या श्री, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री सरोज कुमार शर्मा, सहायक अधिवक्ता (AC to AAG-3)
- आयोग की ओर से: श्री संजय पांडे, श्री निशांत कुमार झा, अधिवक्ता
- याचिकाकर्ता (7595/2021): श्री रंजन कुमार श्रीवास्तव, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
MTUjNzQyOSMyMDIxIzEjTg==-Hy3OJsHymBg=
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