निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 12 अप्रैल 2021 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें यह तय किया गया कि किसी सेवानिवृत्त कर्मचारी की पेंशन को बिना सुनवाई के घटाया नहीं जा सकता, और यह भी कि उसके एसीपी (Assured Career Progression) लाभ को बिना अवसर दिए रद्द या संशोधित करना अनुचित है। यह मामला बिहार के जल संसाधन विभाग के एक सेवानिवृत्त पंप ऑपरेटर से जुड़ा था, जिन्होंने विभाग और लेखा महालेखाकार द्वारा की गई कार्रवाई को चुनौती दी थी।
मामले की पृष्ठभूमि
- याचिकाकर्ता 1968 में कार्यचार्ज कर्मी के रूप में पंप अटेंडेंट पद पर नियुक्त हुए। बाद में 1974 में उन्हें पंप ऑपरेटर ग्रेड-I के रूप में काम करने का आदेश दिया गया और 1977 में सेवा नियमित हो गई।
- वे 30 अप्रैल 2004 को सेवानिवृत्त हुए। उस समय उनके पेंशन भुगतान आदेश (PPO) में वेतनमान ₹3050–4590 अंकित था, और पेंशन उसी के आधार पर जारी हुई।
- सेवानिवृत्ति के तीन वर्ष बाद, 2007 में विभाग ने उन्हें प्रथम और द्वितीय एसीपी का लाभ दिया तथा संशोधित पीपीओ जारी करने के लिए सेवा पुस्तिका लेखा महालेखाकार को भेजी।
- महालेखाकार ने आपत्ति की कि पंप ऑपरेटर का सही वेतनमान ₹2650–4000 है और उसी आधार पर पेंशन निर्धारित की जानी चाहिए।
- इसके बाद विभाग ने 2003 और 2019 में कई आदेश पारित किए, जिनसे याचिकाकर्ता की एसीपी और पेंशन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, परंतु इन आदेशों से पहले उन्हें कोई सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।
याचिकाकर्ता का पक्ष
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उन्हें 2007 में मिले एसीपी लाभ के आधार पर पेंशन तय की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि विभाग या महालेखाकार किसी भी स्थिति में उनकी पेंशन घटाने या एसीपी रद्द करने का आदेश बिना पूर्व सुनवाई के नहीं दे सकते। उन्होंने अखिलेश्वर प्रसाद बनाम बिहार राज्य और महेंद्र नाथ चौधरी बनाम बिहार राज्य जैसे मामलों का हवाला दिया, जिनमें अदालत ने पेंशन और सेवा अवधि से जुड़े अधिकारों की रक्षा की थी।
राज्य और महालेखाकार का पक्ष
राज्य सरकार का तर्क था कि याचिकाकर्ता को कार्यकाल के दौरान कई बार पदोन्नति मिल चुकी थी—पंप अटेंडेंट से पंप ऑपरेटर ग्रेड-I तक—इसलिए उन्हें एसीपी का लाभ नहीं मिल सकता, क्योंकि एसीपी केवल उन्हीं कर्मचारियों को दिया जाता है जिन्हें समय पर पदोन्नति नहीं मिलती।
महालेखाकार ने यह भी कहा कि पहले दिया गया वेतनमान ₹3050–4590 गलत था और उसे संशोधित करना जरूरी था।
न्यायालय का निर्णय
न्यायालय ने पाया कि विभाग द्वारा जारी तीनों आदेश—दिनांक 08.12.2003, 10.04.2019, और 15.04.2019—बिना किसी सुनवाई के पारित किए गए थे।
अदालत ने स्पष्ट कहा कि कोई भी प्रशासनिक आदेश जो किसी कर्मचारी के वेतन, एसीपी, या पेंशन को प्रभावित करता है, उसे पारित करने से पहले संबंधित व्यक्ति को “प्राकृतिक न्याय” के सिद्धांत के तहत सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है।
इस आधार पर न्यायालय ने उक्त सभी आदेशों को रद्द कर दिया और मामले को मुख्य अभियंता (Chief Engineer) को पुनर्विचार हेतु भेज दिया। मुख्य अभियंता को यह निर्देश दिया गया कि वे चार माह के भीतर याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर देकर नया आदेश पारित करें।
जब तक नया आदेश पारित नहीं हो जाता, तब तक याचिकाकर्ता को उसी पेंशन का भुगतान जारी रहेगा, जो उन्हें सेवानिवृत्ति के समय उनके मूल PPO के तहत मिल रही थी।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला किसी अनुशासनात्मक कार्रवाई से जुड़ा नहीं था, बल्कि एक प्रशासनिक विवाद था कि किस वेतनमान पर पेंशन तय की जानी चाहिए। अतः पेंशन को “सजा” के रूप में घटाया नहीं जा सकता।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- प्राकृतिक न्याय का पुनः सुदृढ़ीकरण: अदालत ने दोहराया कि किसी भी सरकारी आदेश से पहले, जिससे किसी कर्मचारी के वेतन, एसीपी या पेंशन पर असर पड़ता हो, संबंधित व्यक्ति को सुनवाई का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए।
- पेंशन की सुरक्षा: जब तक नया वैध आदेश पारित न हो, विभाग या महालेखाकार पेंशन में कोई कटौती नहीं कर सकते।
- प्रशासनिक पारदर्शिता: यह फैसला विभागों को चेतावनी देता है कि महालेखाकार की आपत्ति के आधार पर किसी कर्मचारी के हित में नुकसानदेह आदेश बिना सुनवाई जारी न करें।
- कार्यचार्ज कर्मियों के लिए राहत: अदालत ने माना कि कार्यचार्ज कर्मचारियों के मामले में सेवा गणना और एसीपी के निर्धारण में कई विसंगतियाँ होती हैं। इसलिए, इस प्रकार के सभी मामलों में सुनवाई आवश्यक है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या विभाग सेवानिवृत्ति के बाद बिना सुनवाई एसीपी रद्द या वेतन पुनर्निर्धारित कर सकता है?
❌ नहीं। न्यायालय ने कहा कि ऐसा कोई आदेश “प्राकृतिक न्याय” के सिद्धांत के विरुद्ध है और इसे रद्द किया जाएगा। - क्या पेंशन को अस्थायी रूप से घटाया जा सकता है जब विवाद लंबित हो?
❌ नहीं। जब तक नया निर्णय पारित न हो, सेवानिवृत्त व्यक्ति को मूल PPO के अनुसार ही पेंशन दी जाएगी। - क्या मामला पुनर्विचार हेतु भेजा गया?
✅ हाँ। मुख्य अभियंता को चार माह के भीतर सुनवाई कर नया आदेश पारित करने का निर्देश दिया गया।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- अखिलेश्वर प्रसाद बनाम बिहार राज्य, सीडब्ल्यूजेसी नं. 14287/2008 — पेंशन निर्धारण और अंतिम वेतन के आधार पर लाभों से संबंधित।
- महेंद्र नाथ चौधरी बनाम बिहार राज्य, सीडब्ल्यूजेसी नं. 9254/2006 — कार्यचार्ज सेवा अवधि की गणना को पेंशन और एसीपी के लिए मान्यता देने वाला निर्णय।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (सेवा एवं पेंशन विवाद – एसीपी और वेतन पुनर्निर्धारण)
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 4511 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 596
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति प्रभात कुमार झा
(एकल पीठ निर्णय, दिनांक 12 अप्रैल 2021)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री अजय कुमार — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री रेवती कांत रमन, सहायक अधिवक्ता, एससी-11 — राज्य की ओर से
- श्री एस. एम. एहतेशाम — लेखा महालेखाकार (ए.एंड ई.), बिहार की ओर से
निर्णय का लिंक
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