निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 7 अप्रैल 2021 को एक अत्यंत संवेदनशील मामले पर फैसला सुनाया — यह था मुंगेर दुर्गा विसर्जन गोलीकांड, जिसमें एक 18 वर्षीय युवक की मौत पुलिस फायरिंग में हो गई थी।
याचिकाकर्ता, मृत युवक के पिता, ने अदालत से दो मुख्य बातें मांगीं —
- जांच को सीबीआई (CBI) को सौंपा जाए ताकि निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच हो सके,
- और राज्य सरकार को निर्देश दिया जाए कि वे ₹5 करोड़ मुआवजा दें।
इस निर्णय में अदालत ने न केवल घटना की जांच की स्थिति पर ध्यान दिया बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि सीबीआई जांच कब और किन परिस्थितियों में उचित मानी जाएगी। अदालत ने कहा कि “निष्पक्ष जांच” हर पीड़ित परिवार का संवैधानिक अधिकार है।
मामले की पृष्ठभूमि
- 26 अक्टूबर 2020 को मुंगेर में माँ दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन यात्रा के दौरान पुलिस और श्रद्धालुओं के बीच विवाद हुआ।
- याचिकाकर्ता का 18 वर्षीय बेटा उस समय शांतिपूर्वक जुलूस देख रहा था। तभी गोली चली और वह मौके पर ही मारा गया।
- परिजन का आरोप था कि मुंगेर पुलिस, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में, बिना चेतावनी दिए और बिना मजिस्ट्रेट की उपस्थिति के अनुचित रूप से गोलीबारी की।
- मृतक के पिता का कहना था कि पोस्टमार्टम के दौरान पुलिस ने उनसे छलपूर्वक हस्ताक्षर करवा लिए और बाद में उसी कागज का उपयोग एक “फर्जी एफआईआर” दर्ज करने में किया, जिसमें आरोपियों का नाम “अज्ञात” लिखा गया।
- पुलिस ने घटना को “भीड़ द्वारा हिंसा” बताया, जबकि परिवार ने इसे “पुलिस हत्या” कहा।
याचिकाकर्ता की दलीलें
- अधिवक्ता श्री आलख आलोक श्रीवास्तव ने कहा कि जब खुद पुलिस पर हत्या का आरोप हो, तब स्थानीय पुलिस द्वारा जांच निष्पक्ष नहीं हो सकती।
- याचिकाकर्ता ने कहा कि तत्कालीन एस.पी. का संबंध सत्ताधारी दल से था, इसलिए निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं है।
- मुंगेर रेंज के डीआईजी द्वारा दिए गए वैज्ञानिक जांच के निर्देशों (जैसे CCTV फुटेज, फोरेंसिक सबूत, और चश्मदीद गवाहों के बयान) की पूरी तरह अनदेखी की गई।
- उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया — जैसे R.S. Sodhi v. State of U.P. (1994), Narmada Bai v. State of Gujarat (2011), Ramesh Kumari v. State (NCT of Delhi) (2006) — जिनमें कहा गया है कि जब पुलिस खुद आरोपी हो, तो CBI द्वारा जांच ही न्यायसंगत मानी जाएगी।
- साथ ही, उन्होंने अपने बेटे की मौत के लिए ₹5 करोड़ मुआवजे की मांग की।
राज्य सरकार का पक्ष
- राज्य की ओर से महाधिवक्ता श्री ललित किशोर ने स्वीकार किया कि मुंगेर पुलिस की प्रारंभिक जांच त्रुटिपूर्ण और अधूरी थी।
- उन्होंने बताया कि अब यह मामला Crime Investigation Department (CID) को सौंप दिया गया है, जो स्वतंत्र रूप से कार्य करती है और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (ADG) के अधीन है।
- राज्य ने भरोसा दिलाया कि सीआईडी स्वयं इस मामले की निगरानी करेगी, और किसी भी स्थानीय अधिकारी को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं होगी।
- साथ ही, जो अधिकारी सबूत नष्ट करने या निर्देशों की अवहेलना करने में शामिल पाए जाएंगे, उन पर कार्रवाई की जाएगी।
- राज्य ने कहा कि मुआवजा देने का निर्णय जांच पूरी होने के बाद लिया जाएगा।
अदालत की टिप्पणियाँ
माननीय न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद ने अपने 64-पृष्ठीय निर्णय में कई महत्वपूर्ण बातें कहीः
- मुंगेर पुलिस की बड़ी लापरवाही:
- जांच अधूरी, लापरवाह और कानून के विपरीत की गई।
- रक्त के नमूने, CCTV फुटेज और फोरेंसिक सबूत एकत्र नहीं किए गए।
- पुलिस के हथियारों की जाँच नहीं की गई।
- केस डायरी हफ्तों तक खाली रही, जो बिहार पुलिस मैनुअल के नियम 164 का उल्लंघन था।
- डीआईजी द्वारा दिए गए 16 बिंदुओं वाले जांच आदेशों की पूरी तरह अनदेखी की गई।
- प्रशासनिक सुधार और हस्तांतरण:
- अदालत के हस्तक्षेप के बाद कई पुलिस अधिकारियों का स्थानांतरण मुंगेर से बाहर किया गया।
- सीआईडी ने 3 मार्च 2021 से जांच शुरू की, और 53 बिंदुओं पर विस्तृत एक्शन प्लान बनाया।
- सीबीआई जांच पर न्यायिक सावधानी:
- अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि सीबीआई जांच सामान्य रूप से नहीं दी जानी चाहिए, बल्कि केवल “अत्यंत असाधारण परिस्थितियों” में ही दी जा सकती है।
- State of West Bengal v. CPDR (2010) मामले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट को अधिकार है, पर उसे संयम से प्रयोग करना चाहिए।
- सीआईडी पर भरोसा और न्यायिक निगरानी:
- चूंकि राज्य सरकार ने अदालत को यह आश्वासन दिया कि सीआईडी स्वतंत्र रूप से जांच करेगी, अदालत ने फिलहाल सीबीआई जांच का आदेश नहीं दिया।
- हालांकि, अदालत ने कहा कि जांच की प्रगति पर उसकी निगरानी रहेगी, और यदि सीआईडी की जांच पक्षपाती या धीमी पाई गई तो सीबीआई को सौंपा जा सकता है।
निर्णय का परिणाम
- अदालत ने तत्काल सीबीआई जांच से इनकार किया, परंतु सीआईडी को स्वतंत्र और समयबद्ध जांच के निर्देश दिए।
- राज्य को निर्देश दिया गया कि वह किसी भी ऐसे अधिकारी को हटाए जो जांच में बाधा डाले।
- मुआवजे के मुद्दे पर अदालत ने कहा कि जांच पूरी होने के बाद सरकार को उचित निर्णय लेना चाहिए।
- अदालत ने यह भी कहा कि यह निर्णय पीड़ित के अधिकारों, निष्पक्ष जांच और प्रशासनिक जवाबदेही को संतुलित करने वाला है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
- निष्पक्ष जांच एक मौलिक अधिकार:
अदालत ने दोहराया कि अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को निष्पक्ष जांच का अधिकार है, खासकर जब पुलिस पर ही आरोप हो। - न्यायिक संयम और निगरानी:
अदालत ने दिखाया कि अदालतें जांच की निगरानी कर सकती हैं, परंतु राज्य एजेंसियों के अधिकारों का भी सम्मान करना चाहिए। - प्रशासनिक जवाबदेही:
फैसले के बाद बिहार सरकार को कई अधिकारियों को हटाना पड़ा और सीआईडी को सीधे जवाबदेह बनाया गया। - जन विश्वास की पुनर्स्थापना:
यह फैसला इस बात का आश्वासन देता है कि संवेदनशील मामलों में न्यायपालिका जनता के भरोसे को बनाए रखेगी। - भविष्य के पुलिस फायरिंग मामलों के लिए मार्गदर्शन:
यह निर्णय बताता है कि पहले सीआईडी जांच न्यायिक निगरानी में की जानी चाहिए, और यदि संतोषजनक न हो तो सीबीआई को सौंपा जा सकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या जांच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए थी?
❌ नहीं, फिलहाल नहीं। अदालत ने सीआईडी को जांच जारी रखने और अदालत की निगरानी में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। - क्या मुंगेर पुलिस की प्रारंभिक जांच वैध थी?
❌ नहीं। अदालत ने इसे “लापरवाह और असंतोषजनक” बताया। - क्या मुआवजा तुरंत दिया जाना चाहिए?
⏳ नहीं। अदालत ने कहा कि पहले जांच पूरी हो, फिर सरकार निर्णय ले। - क्या न्यायिक निगरानी सीबीआई जांच का विकल्प हो सकती है?
✅ हाँ, जब तक सीआईडी स्वतंत्र रूप से काम कर रही है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- R.S. Sodhi v. State of U.P. (1994 Supp (1) SCC 143)
- Mohammed Anis v. Union of India (1994 Supp (1) SCC 145)
- West Bengal v. CPDR (2010) 3 SCC 571
- Narmada Bai v. State of Gujarat (2011) 5 SCC 79
- Ramesh Kumari v. State (NCT of Delhi) (2006) 2 SCC 677
- Rubabuddin Sheikh v. State of Gujarat (2010) 2 SCC 200
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- State of West Bengal v. CPDR (2010) 3 SCC 571
- Sujatha Ravi Kiran v. State of Kerala (2016) 7 SCC 597
- Bimal Gurung v. Union of India (2018) 15 SCC 480
- Vinay Tyagi v. Irshad Ali (2013) 5 SCC 762
- K. Saravanan Karuppasamy v. State of Tamil Nadu (AIR 2015 SC 214)
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (मुंगेर गोलीकांड और सीबीआई जांच की मांग से संबंधित मामला)
केस नंबर
Criminal Writ Jurisdiction Case No. 68 of 20
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 571
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
(निर्णय दिनांक: 7 अप्रैल 2021)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री आलख आलोक श्रीवास्तव एवं श्री मानस प्रकाश — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता; श्री अंजनी कुमार (AAG-4); श्री नदिम सिराज (GP-5); श्री शैलेश कुमार एवं श्री शैलेंद्र कुमार सिंह — राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
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