निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 30 अप्रैल 2021 को Civil Writ Jurisdiction Case No. 675 of 2021 में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। यह मामला बिहार ज़िला परिषद माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालय सेवा नियम, 2020 में बताई गई कुछ धाराओं की वैधता को लेकर दायर किया गया था।
याचिकाकर्ता शिक्षक थे जिन्होंने इन नियमों में मौजूद विसंगतियों, असमानता और संवैधानिक उल्लंघन का मुद्दा उठाया था।
वे वेतन वृद्धि, पदोन्नति, हेडमास्टर नियुक्ति, भविष्य निधि (EPF) और स्थानांतरण नीति से संबंधित संशोधन चाहते थे।
हालांकि, अदालत ने कहा कि इन मांगों पर राहत देना न्यायालय का अधिकार क्षेत्र नहीं है क्योंकि अदालत कानून नहीं बना सकती। यह काम सरकार या विधानमंडल का होता है।
फिर भी, न्यायालय ने शिक्षकों को राहत का रास्ता सुझाया — उन्हें यह निर्देश दिया गया कि वे अपनी शिकायतें शिक्षा विभाग, बिहार सरकार के समक्ष प्रस्तुत करें, जो चार महीने के भीतर उस पर निर्णय लेगा।
मामले की पृष्ठभूमि
साल 2020 में बिहार सरकार ने बिहार ज़िला परिषद माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालय सेवा नियम अधिसूचित किए। इन नियमों में नियुक्ति, पदोन्नति, वेतनमान, और सेवा शर्तें तय की गईं।
लेकिन कुछ शिक्षक संघों ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि इन नियमों में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षकों के बीच भेदभाव है, और कुछ धाराएँ संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 16 (समान अवसर का अधिकार) का उल्लंघन करती हैं।
इसी विवाद को लेकर याचिकाकर्ताओं ने पटना उच्च न्यायालय में यह रिट याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ताओं की प्रमुख मांगें
- वेतन और पदोन्नति में समानता:
माध्यमिक शिक्षकों को चार वर्ष की सेवा के बाद ₹2400 से ₹2800 ग्रेड पे का लाभ दिया गया है। याचिकाकर्ताओं ने माँग की कि उच्च माध्यमिक शिक्षकों को भी यही लाभ मिले (Rule 7(2)(1))। - हेडमास्टर नियुक्ति में समान अवसर:
नियम 8 में हेडमास्टर की नियुक्ति की प्रक्रिया “बड़ी इकाई” जैसे ज़िला परिषद स्तर पर आधारित है। छोटे इकाई (जैसे पंचायत या ब्लॉक स्तर) के शिक्षक इससे वंचित रह जाते हैं। यह अनुच्छेद 16 के विरुद्ध है। - EPF नियम में सुधार:
नियम 12(v) में EPF का लाभ केवल उन शिक्षकों को देने की बात कही गई है जिनका वेतन ₹15,000 प्रति माह है, जबकि EPF अधिनियम, 1952 में ऐसी कोई सीमा नहीं है। - स्थानांतरण नीति में समान अधिकार:
नियम 16(iv) में महिला शिक्षकों को स्वैच्छिक स्थानांतरण का अधिक अधिकार दिया गया है, जबकि पुरुष शिक्षकों को नहीं। यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। - शब्द-संशोधन:
नियमों के प्रस्तावना भाग में “प्रधान अध्यापक” शब्द को हिंदी व्याकरण के अनुसार “प्रधानाध्यापक” किया जाए। - अन्य विसंगतियों का निराकरण:
27 अगस्त 2020 को दी गई लिखित आपत्ति में जिन विसंगतियों का उल्लेख किया गया था, उन सभी को दूर करने का निर्देश दिया जाए।
अदालत की टिप्पणियाँ
- जब मामला सुनवाई के लिए आया, तो याचिकाकर्ता की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ, जबकि वीडियो लिंक भेजा गया था।
- इसके बावजूद, अदालत ने याचिका की लिखित सामग्री पर विचार किया।
- अदालत ने कहा कि न्यायालय न तो कानून बना सकता है और न ही सरकार को कानून बनाने का आदेश दे सकता है।
- यदि किसी नियम में असमानता या प्रशासनिक त्रुटि है, तो उसका समाधान सरकार के प्रशासनिक स्तर पर किया जा सकता है, न कि न्यायिक स्तर पर।
अदालत का निर्णय
- न्यायालय की सीमाएँ:
अदालत ने दोहराया कि न्यायालय कानून नहीं बना सकता और किसी नियम में संशोधन करने का आदेश नहीं दे सकता। - विकल्पिक उपाय:
याचिकाकर्ताओं को कहा गया कि वे अपनी शिकायतें शिक्षा विभाग, बिहार सरकार के समक्ष रखें। - राज्य का उत्तरदायित्व:
राज्य की ओर से उपस्थित श्री शशि शेखर तिवारी (AC to AAG-10) ने आश्वासन दिया कि जब भी कोई ऐसा आवेदन आएगा, उसे कानून के अनुसार शीघ्र और चार महीने के भीतर निपटाया जाएगा। - परिणाम:
याचिका को निस्तारित (Disposed) कर दिया गया।
साथ ही, सभी मुद्दों को खुले छोड़ा गया ताकि विभाग उचित कदम उठा सके।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
- नीति निर्माण में न्यायिक संयम:
अदालत ने कहा कि सेवा नियमों में संशोधन या नीति बनाना सरकार का काम है। अदालत केवल यह देखेगी कि कोई नियम संविधान के विपरीत तो नहीं है। - शिक्षकों के लिए उचित प्रक्रिया:
शिक्षकों को सीधे अदालत आने के बजाय शिक्षा विभाग को आवेदन देकर अपनी शिकायत दर्ज करनी चाहिए। - समय सीमा तय की गई:
सरकार को चार महीने में निर्णय लेना होगा, जिससे प्रशासनिक जवाबदेही बढ़ेगी। - समानता के प्रश्न पर ध्यान:
अदालत ने यह माना कि याचिकाकर्ताओं की कुछ आपत्तियाँ जैसे ग्रेड पे और स्थानांतरण नीति पर विचार योग्य हैं, और सरकार को इन्हें देखना चाहिए। - संवाद की राह खोली गई:
अदालत ने टकराव के बजाय संवाद और सुधार का रास्ता सुझाया, ताकि नियमों में व्यावहारिक सुधार हो सकें।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या अदालत सरकार को सेवा नियम संशोधित करने का आदेश दे सकती है?
❌ नहीं, अदालत कानून बनाने या संशोधित करने का आदेश नहीं दे सकती। - शिक्षकों की शिकायत कहाँ की जानी चाहिए?
✅ शिक्षा विभाग, बिहार सरकार को आवेदन देकर। - क्या अदालत ने कोई विशेष राहत दी?
⚖️ अदालत ने केवल यह निर्देश दिया कि सरकार चार महीने के भीतर ऐसे आवेदन पर निर्णय ले।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
कोई विशेष निर्णय उद्धृत नहीं; संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और शक्तियों के विभाजन के सिद्धांतों पर भरोसा किया गया।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
(बिहार ज़िला परिषद माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालय सेवा नियम 2020 से संबंधित मामला)
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 675 of 2021
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 599
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री संजय करोल
एवं
माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. कुमार
(मौखिक निर्णय दिनांक 30 अप्रैल 2021)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: कोई उपस्थित नहीं
- राज्य की ओर से: श्री शशि शेखर तिवारी (AC to AAG-10)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNjc1IzIwMjEjMSNO-XvBWyl0OlOo=
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