पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: नाबालिग से दुष्कर्म और उकसावे (Abetment) के आरोपों पर 2021 का फैसला

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: नाबालिग से दुष्कर्म और उकसावे (Abetment) के आरोपों पर 2021 का फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने 8 अप्रैल 2021 को Criminal Appeal (SJ) No. 2459 of 2017 और Criminal Appeal (SJ) No. 1850 of 2017 — दोनों अपीलों पर एक साथ फैसला सुनाया। ये अपीलें नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म के एक मामले से जुड़ी थीं, जो Nautan थाना कांड सं. 118/2015 (जिला पश्चिम चंपारण) पर आधारित थी।

निचली अदालत ने मुख्य अभियुक्त को POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 4, 6 और 8 (गंभीर लैंगिक उत्पीड़न और बलात्कार) के तहत दोषी ठहराया था और उसे 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी थी।

अन्य चार अभियुक्तों को धारा 17 (उकसावे/सहयोग) के तहत दोषी मानते हुए समान सजा दी गई थी।
इन सभी ने पटना उच्च न्यायालय में सजा के खिलाफ अपील की।

मामले की पृष्ठभूमि

घटना 1 मई 2015 की है। पीड़िता की माँ की लिखित शिकायत के अनुसार, जब वह वाराणसी गई हुई थी, तब उसकी 10 वर्षीय बेटी घर में अकेली थी। उसी दौरान पड़ोस में रहने वाले शर्मा सहनी ने घर में घुसकर बच्ची के साथ दुष्कर्म किया

अगले दिन जब माँ लौटी, तो बच्ची की तबीयत बहुत खराब थी। उसने बताया कि शर्मा सहनी ने उसके साथ जबरदस्ती की थी।

शिकायत के अनुसार, अभियुक्त के रिश्तेदार — मदन सहनी, मुन्ना सहनी, जगदीश सहनी और नितीश सहनी — ने परिवार को धमकाया और कहा कि पुलिस में शिकायत करने की ज़रूरत नहीं है, वे “पंचायत में सुलह” करा देंगे।

पुलिस को जब घटना की जानकारी मिली, तो उसने बच्ची और उसके परिवार को कैथवलिया गांव से मुक्त कराया और एम.जे.के. अस्पताल, बेतिया में मेडिकल जांच कराई। इसके बाद एफआईआर दर्ज हुई।

ट्रायल कोर्ट का निर्णय

सत्र न्यायालय ने माना कि —

  • मुख्य अभियुक्त शर्मा सहनी ने बच्ची के साथ बलात्कार किया
  • अन्य चार अभियुक्तों ने अपराध को छिपाने और परिवार को धमकाने में सहयोग किया।

इसलिए, शर्मा सहनी को POCSO अधिनियम की धारा 4, 6, 8 के तहत और बाकी चारों को धारा 17 (Abetment) के तहत दोषी ठहराया गया।

अपील में रखे गए तर्क

अपीलकर्ताओं की ओर से:

  • एफआईआर दर्ज करने में दो दिन की देरी हुई, जिससे मामला संदिग्ध लगता है।
  • मेडिकल रिपोर्ट में कोई हालिया चोट नहीं पाई गई।
  • घटना को लेकर परिवार के बीच भूमि विवाद चल रहा था, इसलिए झूठा मुकदमा दायर किया गया।
  • गवाहों के बयानों में कई विरोधाभास हैं।
  • चार अन्य अभियुक्तों के खिलाफ कोई सीधा सबूत नहीं था कि उन्होंने अपराध में सहयोग किया।

राज्य और सूचनाकर्ता की ओर से:

  • नाबालिग पीड़िता के बयान में कोई विरोधाभास नहीं था और उसकी गवाही पूरी तरह विश्वसनीय थी।
  • चिकित्सीय प्रमाण की अनुपस्थिति से अपराध झूठा नहीं हो जाता।
  • परिवार पर दबाव डालने और डराने की वजह से एफआईआर में देरी स्वाभाविक थी।

अदालत की टिप्पणियाँ

माननीय न्यायमूर्ति बीरेन्द्र कुमार ने अपने विस्तृत निर्णय में कई अहम बातें कही:

1. पीड़िता की गवाही पर भरोसा

अदालत ने कहा कि बलात्कार पीड़िता की गवाही का दर्जा किसी घायल प्रत्यक्षदर्शी गवाह के समान होता है।

  • भारतीय समाज में महिलाएँ अक्सर सामाजिक भय और कलंक के कारण ऐसे मामलों की रिपोर्ट नहीं करतीं।
  • इसलिए, यदि कोई बच्ची या महिला साहसपूर्वक अदालत में बयान देती है और उसका बयान संगत है, तो अतिरिक्त साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया —

  • State of Punjab v. Gurmit Singh (1996) 2 SCC 384
  • Motilal v. State of M.P. (2008) 11 SCC 20
  • Rai Sandeep @ Deepu v. State (NCT of Delhi) (2012) 8 SCC 21

2. एफआईआर में देरी

पीड़िता और उसके परिवार को अभियुक्तों ने धमकाकर दो दिन तक बंधक बनाकर रखा, जिससे वे पुलिस तक नहीं पहुँच सके। इसलिए, एफआईआर में हुई देरी को अदालत ने संतोषजनक कारण माना।

3. भूमि विवाद का तर्क

रक्षा पक्ष द्वारा दिए गए भूमि विवाद के दस्तावेज़ों का पीड़िता के परिवार से कोई संबंध नहीं था। इसलिए, अदालत ने इस तर्क को अस्वीकार कर दिया

4. चिकित्सीय साक्ष्य

डॉक्टरों ने पाया कि पीड़िता का हाइमन पुराना फटा हुआ था, परंतु कोई ताजा चोट नहीं थी। अदालत ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट में चोट का अभाव केवल इसलिए नहीं हो सकता कि अपराध नहीं हुआ, क्योंकि बच्ची को कई दिनों बाद अस्पताल ले जाया गया था।

5. पीड़िता की उम्र

मेडिकल बोर्ड ने उसकी उम्र 11 से 13 वर्ष बताई, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि वह POCSO अधिनियम के तहत बच्ची (Child) थी।

6. उकसावे (Abetment) का मामला

अदालत ने कहा कि POCSO की धारा 17 के तहत उकसावे या सहयोग साबित करने के लिए यह दिखाना जरूरी है कि अभियुक्त ने अपराध के घटित होने से पहले या दौरान सक्रिय रूप से मदद की हो।

  • यहाँ पर चारों सह-अभियुक्तों की कथित भूमिका घटना के बाद की थी — उन्होंने केवल परिवार को धमकाया।
  • इसलिए, यह “अपराध में सहयोग” नहीं माना जा सकता।

अदालत का निर्णय

  • मुख्य अभियुक्त शर्मा सहनी:
    उसकी सजा और दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया। अदालत ने कहा कि बच्ची की गवाही विश्वसनीय है और उसके बयान में कोई विरोधाभास नहीं है।
    → दोषसिद्धि कायम रही (धारा 4, 6, 8 POCSO), सजा 10 वर्ष कठोर कारावास
  • अन्य चार अभियुक्त (मदन, मुन्ना, जगदीश, नितीश):
    अदालत ने कहा कि उनका कार्य अपराध के बाद का था, इसलिए यह उकसावे की परिभाषा में नहीं आता
    → दोषसिद्धि रद्द की गई, चारों को बरी (Acquitted) कर दिया गया।

निर्णय का महत्व और प्रभाव

  • बाल पीड़ितों के लिए न्यायिक सुरक्षा:
    अदालत ने दोहराया कि यदि बच्ची का बयान सुसंगत और सच्चा है, तो उसे ही पर्याप्त साक्ष्य माना जाएगा।
  • निष्पक्षता और न्याय का संतुलन:
    अदालत ने मुख्य अपराधी को सजा दी, परंतु अन्य को केवल “संबंधी” होने के कारण दोषी नहीं ठहराया।
  • POCSO की धारा 17 पर स्पष्टता:
    घटना के बाद किया गया भय दिखाना या धमकी देना “उकसावा” नहीं कहलाता जब तक अपराध के दौरान कोई भूमिका न हो।
  • पुलिस के लिए संदेश:
    पुलिस को ऐसे मामलों में तुरंत मेडिकल जांच करानी चाहिए और साक्ष्य सुरक्षित रखने चाहिए ताकि कोई प्रक्रिया संबंधी कमी न रहे।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या केवल पीड़िता के बयान के आधार पर सजा दी जा सकती है?
    ✅ हाँ, यदि बयान विश्वसनीय और सुसंगत हो।
  • क्या एफआईआर में देरी से मामला कमजोर होता है?
    ❌ नहीं, जब देरी का कारण उचित हो।
  • क्या चार सह-अभियुक्तों ने अपराध में सहयोग किया था?
    ❌ नहीं, उनका कार्य घटना के बाद का था, इसलिए वे निर्दोष हैं।
  • अंतिम परिणाम:
    • मुख्य अभियुक्त की अपील अस्वीकृत।
    • चार अन्य अभियुक्तों की अपील मंज़ूर — उन्हें बरी किया गया।

संदर्भित निर्णय

  • State of Punjab v. Gurmit Singh (1996) 2 SCC 384
  • Motilal v. State of Madhya Pradesh (2008) 11 SCC 20
  • Rai Sandeep @ Deepu v. State (NCT of Delhi) (2012) 8 SCC 21
  • Raju & Ors. v. State of M.P. (2008) 15 SCC 133

मामले का शीर्षक

अपीलकर्ता बनाम बिहार राज्य
(नौतन थाना कांड सं. 118/2015, जिला पश्चिम चंपारण से संबंधित)

केस नंबर

  • Criminal Appeal (SJ) No. 2459 of 2017
  • Criminal Appeal (SJ) No. 1850 of 2017

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 612

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति बीरेन्द्र कुमार
(निर्णय दिनांक: 8 अप्रैल 2021)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री बशिष्ठ नारायण मिश्रा — अपीलकर्ताओं की ओर से
  • श्री ज़ेड. होदा एवं श्री सुजीत कुमार सिंह — राज्य की ओर से
  • श्री सच्चिदानंद राय — सूचनाकर्ता की ओर से

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

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