निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 23 फरवरी 2022 को एक साझा मौखिक निर्णय (common oral judgment) दिया, जिसमें दो याचिकाओं को एक साथ निपटाया गया। दोनों याचिकाएं इस मांग से जुड़ी थीं कि याचिकाकर्ताओं को मोतिहारी के भगत सिंह मार्केट में दुकान या स्थान आवंटित किया जाए। न्यायालय ने पाया कि दोनों याचिकाओं के तथ्य समान हैं और मांगी गई राहत भी एक जैसी है। इसलिए दोनों को एक साथ सुना गया और अंत में खारिज कर दिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने पहले दिए गए एक आदेश पर भरोसा किया था — यह आदेश 11 फरवरी 2021 को CWJC No. 10351 of 2013 में दिया गया था (Ranjan Kumar Sinha व अन्य बनाम बिहार राज्य व अन्य)। उस आदेश में अदालत ने जिला पदाधिकारी, मोतिहारी को यह निर्देश दिया था कि जिन छोटे दुकानदारों की दुकानें अवैध अतिक्रमण हटाओ अभियान में हटा दी गई थीं, उन्हें कठिनाई से बचाने के लिए छह महीने के भीतर कहीं और उचित स्थान देने की संभावना तलाशें।
वर्तमान मामले में याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे भी उसी इलाके के दुकानदार हैं, जिन्हें सरकारी कार्रवाई के कारण हटाया गया, इसलिए उन्हें भी उसी तरह से वैकल्पिक दुकान मिलनी चाहिए। लेकिन अदालत ने पाया कि ये दावे तथ्यात्मक रूप से सही नहीं हैं। न तो किसी अतिक्रमण हटाओ कार्यवाही में इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई थी, और न ही उन्होंने यह साबित किया कि वे उसी स्थान पर व्यवसाय कर रहे थे, जहाँ से पहले वाले मामले के दुकानदार हटाए गए थे।
इस कारण से अदालत ने स्पष्ट कहा कि — जब याचिकाकर्ता समान स्थिति साबित नहीं कर सके, तो उन्हें समान राहत भी नहीं मिल सकती। पहले वाले आदेश में केवल यह कहा गया था कि जिला पदाधिकारी “संभावना तलाशें” — यह कोई कानूनी अधिकार नहीं देता। इसलिए अदालत ने दोनों याचिकाएं निराधार मानते हुए खारिज कर दीं।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बिहार के छोटे दुकानदारों और असंगठित व्यापारियों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि सिर्फ समानता का दावा करना काफी नहीं है। अगर कोई व्यक्ति यह कहता है कि उसे भी वही राहत मिलनी चाहिए जो किसी और को मिली, तो उसे पहले यह साबित करना होगा कि उसकी स्थिति और परिस्थितियाँ बिल्कुल समान हैं।
इस निर्णय से प्रशासन और सरकार को भी एक दिशा मिलती है। यदि किसी पिछले आदेश में अदालत ने सिर्फ “संभावना तलाशने” या “उचित विचार करने” की बात कही हो, तो यह बाध्यकारी आदेश नहीं होता। इसलिए हर नया दावा प्रशासन को यह परख कर ही देखना चाहिए कि क्या वास्तव में वह व्यक्ति किसी अतिक्रमण हटाओ कार्रवाई में प्रभावित हुआ था या नहीं।
अदालत ने एक प्रकार से उन लोगों के लिए भी संदेश दिया है जो केवल पूर्व के आदेशों का हवाला देकर बिना प्रमाण के लाभ लेना चाहते हैं। अब प्रशासन और न्यायालय दोनों यह देखेंगे कि क्या कोई वास्तविक विस्थापन हुआ था, क्या कोई नोटिस या कार्रवाई हुई थी, और क्या उस व्यक्ति का व्यापार वाकई उसी क्षेत्र में था जहाँ कार्रवाई हुई थी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या याचिकाकर्ता पहले वाले मामले (CWJC No. 10351 of 2013) के दुकानदारों के समान स्थिति में थे?
❌ नहीं। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ किसी भी प्रकार की अतिक्रमण हटाओ कार्रवाई नहीं हुई थी, इसलिए वे “समान परिस्थिति” में नहीं थे। - क्या 11 फरवरी 2021 के आदेश के आधार पर जिला प्रशासन पर दुकानों का आवंटन करना अनिवार्य था?
❌ नहीं। अदालत ने कहा कि वह आदेश केवल “संभावना तलाशने” की बात करता था, यह कोई बाध्यकारी आदेश नहीं था। - मामले का अंतिम परिणाम:
✅ दोनों याचिकाएं (CWJC No. 9720/2021 और CWJC No. 9762/2021) निराधार पाई गईं और खारिज कर दी गईं।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- CWJC No. 10351 of 2013, दिनांक 11.02.2021 (Ranjan Kumar Sinha & Ors v. State of Bihar & Ors) — इस मामले में अदालत ने जिला पदाधिकारी, मोतिहारी को प्रभावित दुकानदारों के लिए वैकल्पिक स्थान की संभावना तलाशने को कहा था।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- अदालत ने उपरोक्त Ranjan Kumar Sinha मामले का उल्लेख किया, लेकिन कहा कि वर्तमान याचिकाकर्ताओं की परिस्थितियाँ उससे अलग हैं, इसलिए उन्हें वही लाभ नहीं दिया जा सकता।
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार राज्य व अन्य (Common Oral Judgment)
केस नंबर
CWJC No. 9720 of 2021 with CWJC No. 9762 of 2021
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 702
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह तथा माननीय न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद
निर्णय की तिथि: 23 फरवरी 2022
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री बिनोद कुमार मिश्रा, अधिवक्ता
- प्रतिवादी (CWJC 9720/2021) की ओर से: श्री रवीश चंद्र, AC to SC VI
- प्रतिवादी (CWJC 9762/2021) की ओर से: श्री ज़ाकी हैदर, AC to SC IX
निर्णय का लिंक
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